विजय जोशी
(पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल )
1
प्यार तो एक फूल है
फूल तो एक प्यार है
हम- तुम :
इसकी दो पंखुरियाँ हैं
समय रहते न रहते
पंखुरियाँ झर जाएँगी
शेष रह जाएगी
महक :
हमारे- तुम्हारे प्यार की
दिल के इसरार की
मन के इकरार की
जो रच- बसकर वातावरण में
छा जाएगी अरसों तक
महकेगी बरसों तक
प्यार तो एक फूल है .....
-0-
2-मैं हूँ ना !
भयावह आँधी
प्रबल झंझावात
उखड़ते महावृक्ष
विपथगा महानदियाँ
घनघोर अँधेरी रात
श्मशान- सा समाँ
वृक्ष के कोटर में
डरा- सहमा
चिड़िया का नन्हा
बच्चा
डर से काँपता,
माँ से बोला :
माँ !
हमारा क्या होगा
माँ ने
अपने पंखों में
उसे समेटते हुए कहा :
“डरो
मत, मैं हूँ ना!”
-0-
हालांकि 'प्रेम 'के बजाय भी इन दिनों कविता आगे बढ़ी है, परन्तु सर जी!प्रेम तो प्रेम है इसका होना इसके बाद भी हमारा होना है, बहुत सुन्दर कविता, हार्दिक शुभकामनाएँ।
ReplyDelete- भीकम सिंह
आदरणीय भीकम जी
Deleteप्रेम तो दैविक अनुभूति का दूसरा नाम है। हार्दिक आभार। सादर
प्यार तो एक क फूल है।बहुत सुंदर भाव। दोनों कविताएँ बेहतरीन। विजय जोशी जी को हार्दिक बधाई। सुदर्शन रत्नाकर
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Deleteआदरणीया
Deleteआपके स्नेह के प्रति हार्दिक आभार सहित सादर
बहुत सुंदर कविताएँ
ReplyDeleteहार्दिक आभार
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ReplyDeleteदोनों कविताएँ प्रेम के कोमल भाव को य्रस्तुत कर रही हैं । कोमल भाव बेहतरीन
ReplyDeleteतरीके बन पड़ा है । जिससे कविता में भाव सौंदर्य उभर के आया है । हार्दिक बधाई आ. विजय जोशी जी को ।
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आदरणीया
Deleteबहुत मनोयोग से पढ़कर प्रतिक्रिया प्रदान की आपने। कोमलतम भाव समझने के लिये हार्दिक आभार। सादर
ReplyDeleteयह कविता "प्यार तो एक फूल है" अत्यंत कोमल और भावनात्मक अभिव्यक्ति है। इसमें प्रेम को एक फूल के रूप में चित्रित किया गया है, जिसकी दो पंखुड़ियाँ "हम" और "तुम" हैं — एक गहरी आत्मीयता और जुड़ाव का प्रतीक। समय के साथ पंखुड़ियाँ झर सकती हैं, परंतु उस प्रेम की महक, जो दिल की गहराइयों से निकली है, वह वातावरण में रच-बस जाती है और लंबे समय तक बनी रहती है।
कविता की सबसे खास बात यह है कि यह क्षणिकता और स्थायित्व — दोनों को एक साथ दर्शाती है। प्रेम भले ही भौतिक रूप में न रहे, पर उसकी अनुभूति, उसकी सुगंध — सदा बनी रहती है। यह एक अत्यंत संवेदनशील, गूढ़ और सौंदर्यपूर्ण काव्य रचना है, जो पाठक के मन को छू जाती है।
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आदरणीया प्रोफेसर
Deleteआपने तो मंतव्य को नई ऊंचाई तक पहुंचा दिया। सारगर्भित सत्व एवं तत्व सहित। एक पावन अनुभूति के स्तर पर। हार्दिक आभार सहित सादर
विजय जोशी जी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं
ReplyDeleteविजय जोशी जी की दोनों ही कविताएँ बेहद खूबसूरत हैं , हार्दिक बधाई स्वीकारें . सविता अग्रवाल “ सवि “
ReplyDeleteआदरणीया
Deleteपसंदगी के लिये हार्दिक आभार। सादर
पिताश्री अप्रतिम कविताएँ । मेरे पिताश्री का कोई जवाब नहीं । सादर प्रणाम पिताश्री🙏
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर कविताएं
ReplyDeleteप्रिय मनीष
Deleteहार्दिक आभार। सस्नेह
प्रिय हेमंत
ReplyDeleteहार्दिक आभार सहित सस्नेह
बहुत ही सुंदर कविताएं लिखी हैं आपने सर। इन कविताओं की खुशबू हमेशा वातावरण को महाकाएगी।
ReplyDeleteराजीव भाई
Deleteआप तो स्नेह के धनी हैं। सदा यही स्नेह बनाए रखियेगा। हार्दिक आभार। सादर
दोनों कविताएं अति सुन्दर हैl आपके निर्मल ह्रदय के समान ही सरल दिलों को छू लेने वाली कविता में मानो आपने अपना मन खोल कर रख दिया, जो अपने स्नेह की महक तथा निर्बल का संबल हैl
ReplyDeleteआदरणीय
Deleteआपके साथ सत्संग का प्रतिफल है ये दोनों। सज्जनो का आशीर्वाद भक्ति का पहला प्रकार। हार्दिक आभार सहित सादर
बहुत ही बढ़िया कविताएं हुई सर 🌹💐
ReplyDeleteयथार्थ एवं समसामयिक 👍
प्रिय रजनीकांत
Deleteहार्दिक आभार। सस्नेह
आदरणीय सर,
ReplyDeleteअत्यंत ही सुंदर और सारगर्भित कविताएं।
धन्यवाद।
दोनों कविताएं उमदा लिखी हैं, बहुत दिनों के बाद आप के द्वारा रचित कविता पढ़ने का मौका मिला बहुत बहुत शुभकामनाएं सर जी 🙏💐
Deleteमहेश भाई
Deleteआप बहुत ख़्याल रखते हैं मेरा। यह बात अंतर्मन को छूती है। हार्दिक आभार सहित। सस्नेह
बहुत ही सुंदर कविताएं सर।
ReplyDeleteमुकेश
अति सुन्दर कविताएं।
ReplyDeleteमुकेश श्रीवास्तव
प्रिय बंधु मुकेश
ReplyDeleteहार्दिक आभार। सादर
प्रेम तो अनन्त है जन्म जन्मांतरों साथ है बहुत सुंदर रचनाएं आदरणीय सर
ReplyDeleteडी सी भावसार
आदरणीय भावसार जी
Deleteहार्दिक आभार।सादर
Ati Sundar Rachna
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteफूल तो एक प्यार है प्यार तो एक फूल दिल को छूती एक सच्ची अनुभूति
ReplyDeleteआदरणीया
Deleteहार्दिक आभार सादर
आदरणीय भाई साहब,
ReplyDeleteदोनों कविताये बहुत ही सुन्दर, सारगर्भित जहां एक और प्यार की अभिव्यक्ति हैं, वही दूसरी और माँ का आत्मविश्वास अपने बच्चो के लिए अत्यंत विषम परिस्तिथियो में, मुझे आपका छोटा भाई होने पर गर्व हैं, आपका आभार।
प्रिय संदीप
Deleteजीवन में स्नेह का भाव तुमसे सीखा है। आचरण में मुझसे बड़े जो हो। सस्नेह
विजय जोशी सर की दोनों ही कविताएँ बेहद खूबसूरत हैं , हार्दिक बधाई आपको ।
ReplyDeleteआदरणीया
Deleteआपकी पसंदगी बहुत मायने रखती है। सो हार्दिक आभार। सादर
वास्तव में प्यार फूल की तरह होता है,नाजुक मखमली अहसास सा, उसकी खुशबू वातावरण को पवित्र व खुशमय बना देती है और माँ का हाथ जब सिर पर होता है तो कोई अला-बला फटक ही नहीं सकती । दोनों ही कविताएं बहुत सुन्दर..,जीवंत सी...., बधाई आदरणीय
ReplyDeleteहार्दिक आभार मित्र
ReplyDeleteअद्भुत , शाश्वत ,जो निरंतरता लिये हुए
ReplyDeleteसाधुवाद आनंद की सृष्टि के लिये
धन्य है मित्र, जिसका आप जैसा मित्र है
सुगंध आ रही है ....श्रीकृष्ण
प्रिय बंधु
Deleteहार्दिक आभार सहित सादर
आपकी दोनों कविताएं मन को छूने वाली मार्मिक कृतियां हैं। पढ़ने के बाद जो भाव मन में है उन्हें लिपी बद्ध करना सम्भव नहीं हो पा रहा। पर एक अहसास जरुर मन को यादों के झरोखें से महसूस करा रहा है। सादर
ReplyDeleteप्रिय राजेश भाई
Deleteयह आपका भावुक एवं संवेदनशील मन है जिसने भाव पक्ष को परख लिया और वह भी कामकाजी use and throw वाले दौर में। हार्दिक आभार सहित सादर
आपकी दोनों ही कविताएं बहुत सुन्दर हैं। माँ का साथ हो तो हर अला-बला टल जाती है और प्यार तो वास्तव में फूल की तरह होता है,नर्म,नाजुक,मखमली अहसास सा, जितना संभालो उतना ही महकता है। बधाई आदरणीय
ReplyDeleteशीला मिश्रा
आदरणीया
ReplyDeleteप्यार का भाव दैहिक नहीं अपितु दैविक होता है। आपने सही परख लिया। हार्दिक आभार सहित सादर
सटीक उपमा है। मन को छू गई।
ReplyDeleteआदरणीय
ReplyDeleteआपकी आशीर्वाद स्वरूपी प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार। सादर