पथ के साथी

Saturday, March 15, 2025

1456-करूँ क्या होली है

 

करूँ क्या होली है/ शशि पाधा

 


सुनो रे वन के पंछी मोर

सखा! न आज मचाना शोर

चुराने आई तेरे रंग

करूँ क्याहोली है

 

रंगरेज की हुई मनाही

सब ढूँढे हाट-बाज़ार

इन्द्रधनु का दूर बसेरा

 करे नखरे लाख हजार  

छिड़ी है तितली से भी जंग

करूँ क्या होली है |

 

अम्बर बदरा रंग उढ़ेले

बूँदें बरसें सावन की

होरी चैती अधर सजें फिर

सुध-बुध खो दूँ तन-मन की

 ज़रा- सी चख ली मैंने भंग

  करूँ क्याहोली है |

 

चुनरी टाँकूँ मोर पाँखुरी

माथे बिंदिया चन्दन की

चन्द्रकला का हार पिरो लूँ

रुनझुन छेडूँ कंगन की  

 बजाऊँ जी भर ढोल मृदंग

 सुनो जीहोली है |

 

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12 comments:

  1. शशिजी की रचनाएं होली की नई-नई छटाएँ बिखेर रही हैं । रंगपर्व की शुभकामनाएं 💐💐

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  2. होली की रंग भरी मनुहार से शोभित बहुत सुंदर कविता।हार्दिक बधाई मैम।

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  3. होली के अवसर पर रची सुंदर रचना है शशि जी , हार्दिक बधाई । सविता अग्रवाल “ सवि”

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  4. आपके गीतों में एक नयापन होता है बहुत प्यार गीत 🙏

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  5. शशि पाधा16 March, 2025 08:41

    आप सब ने मेरे गीत को सराहा , हार्दिक आभार ।इसे सही साहित्य में प्रकाशित करने के लिए काम्बोज भैया का धन्यवाद ।

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  6. गुंजन अग्रवाल16 March, 2025 10:11

    बहुत ही सुंदर,, आनंद आ गया पढ़कर, रंगोत्सव की बहुत शुभकामनाएं आपको 🌺🌺

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  7. बहुत सुंदर,सरस गीत। सुदर्शन रत्नाकर

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  8. होली है! बहुत सुन्दर गीत. हार्दिक बधाई शशि जी.

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  9. बहुत सुन्दर

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  10. रश्मि विभा त्रिपाठी20 March, 2025 12:53

    बहुत सुंदर गीत।
    हार्दिक बधाई दीदी को 💐

    सादर

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  11. रश्मि विभा त्रिपाठी20 March, 2025 13:27

    बहुत सुंदर।
    हार्दिक बधाई

    सादर

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  12. बहुत सुंदर गीत!

    ~सादर
    अनिता ललित

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