करूँ क्या होली है/ शशि पाधा
सुनो
रे वन के पंछी मोर
सखा!
न आज मचाना शोर
चुराने
आई तेरे रंग
करूँ
क्या, होली है
रंगरेज
की हुई मनाही
सब
ढूँढे हाट-बाज़ार
इन्द्रधनु
का दूर बसेरा
करे नखरे लाख हजार
छिड़ी
है तितली से भी जंग
करूँ
क्या होली है |
अम्बर
बदरा रंग उढ़ेले
बूँदें
बरसें सावन की
होरी
चैती अधर सजें फिर
सुध-बुध
खो दूँ तन-मन की
ज़रा- सी चख ली मैंने भंग
करूँ क्या, होली है |
चुनरी
टाँकूँ मोर पाँखुरी
माथे
बिंदिया चन्दन की
चन्द्रकला
का हार पिरो लूँ
रुनझुन
छेडूँ कंगन की
बजाऊँ जी भर ढोल मृदंग
सुनो जी, होली है |
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शशिजी की रचनाएं होली की नई-नई छटाएँ बिखेर रही हैं । रंगपर्व की शुभकामनाएं 💐💐
ReplyDeleteहोली की रंग भरी मनुहार से शोभित बहुत सुंदर कविता।हार्दिक बधाई मैम।
ReplyDeleteहोली के अवसर पर रची सुंदर रचना है शशि जी , हार्दिक बधाई । सविता अग्रवाल “ सवि”
ReplyDeleteआपके गीतों में एक नयापन होता है बहुत प्यार गीत 🙏
ReplyDeleteआप सब ने मेरे गीत को सराहा , हार्दिक आभार ।इसे सही साहित्य में प्रकाशित करने के लिए काम्बोज भैया का धन्यवाद ।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर,, आनंद आ गया पढ़कर, रंगोत्सव की बहुत शुभकामनाएं आपको 🌺🌺
ReplyDeleteबहुत सुंदर,सरस गीत। सुदर्शन रत्नाकर
ReplyDeleteहोली है! बहुत सुन्दर गीत. हार्दिक बधाई शशि जी.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुंदर गीत।
ReplyDeleteहार्दिक बधाई दीदी को 💐
सादर
बहुत सुंदर।
ReplyDeleteहार्दिक बधाई
सादर
बहुत सुंदर गीत!
ReplyDelete~सादर
अनिता ललित