मैं नेह - लता हूँ/ प्रणति ठाकुर
नहीं तुम्हारी पग -बाधा मैं नेह - लता हूँ...
स्नेह - छाँव बनकर मैं तेरे साथ चली हूँ
बन निर्झरणी प्रति- पल स्नेह अगाध झरी हूँ
जीवन के झंझावातों से क्लांत पड़ा जब अंतस् तेरा
भर पाई अनुराग प्रबल मैं वो अपगा हूँ
नहीं तुम्हारी पग -बाधा मैं नेह - लता हूँ...
तेरे मौन जगत् में तेरा राग बनी हूँ
हर तेरी पीड़ा सतरंगी फाग बनी हूँ
शमित,तृषित
तेरे अंतर की व्यथा बढ़ी जब
बन परछाई गंधसार की साथ सदा हूँ
नहीं तुम्हारी पग -बाधा मैं नेह - लता हूँ...
अपना तन -मन वार - वार हूँ नहीं अघाई
अपने शोणित से गढ़ती तेरी परछाई
बने द्वारकाधीश अगर तुम मोहन मेरे
तेरी खातिर युग -युग से मैं ही राधा हूँ
नहीं तुम्हारी पग -बाधा मैं नेह -लता हूँ....
यशोधरा मैं ही थी,मुख तुम मोड़ गए थे
मैं ही थी उर्मिल ,दुख से उर जोड़ गए थे
अग्निकुण्ड में कितनी बार मुझे परखोगे
बस कर दो अब ,आज
नहीं मैं जनक सुता हूँ
नहीं तुम्हारी पग -बाधा मैं नेह -लता हूँ
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बहुत सुंदर रचना,आदरणीय शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
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