पथ के साथी

Wednesday, March 22, 2023

1305- मैं केवल तुम्हारा

 रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'




18 comments:


  1. मैं केवल तुम हूँ यह शब्द जब कंठ से बाहर निकलता है तब प्रकृति कितनी प्रेममयी हो जाती है... बहुत सुंदर सृजन

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  2. बहुत ही सुंदर

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  3. बहुत सुन्दर सर ! हार्दिक शुभकामनाएँ ।

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  4. अनीता सैनी जी, बहन सुषमा गुप्ता जी और बन्धुवर भीकमसिंह जी , बहुत -बहुत आभार

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  5. कविता दिल से निकलती है, इसीलिए हमेशा दिल को छूती है, बहुत सुंदर लिखा है भैया

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  6. अर्धनारीश्वर हम
    अहा! इससे अधिक क्या ही कहा जाए
    समूची सृष्टि समा गई इन दो शब्दों में!

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    1. आपकी टिप्पणी बहुत उत्साहवर्धक , आपका नाम पता चलता तो और भी अधिक अच्छा होता।

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  7. दिल से निकले शब्द दिल को छू गए। बहुत सुंदर कविता। सुदर्शन रत्नाकर

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  8. मैं केवल तुम हूँ...निजी सत्ता को प्रिय में विलीन कर देना ही प्रेम की सर्वोच्च अवस्था है।यही मिलन ईश्वर से मिलन है।बहुत सुंदर कविता।

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  9. वाह्ह्ह!!!सर....बहुत ही सुंदर कविता.... मृदुल शब्दों में भाव पुष्पों की सुगंध.... 🙏🙏🌹🌹🌹🌹शेष दो पंक्तियों में ठहर गई 🌹🙏

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  10. बहुत सुंदर कविता! नमन आपको!

    ~सादर
    अनिता ललित

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  11. अति सुंदर कविता...हार्दिक शुभकामनाएँ।

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  12. बन्धुवर श्रीवास्तव जी, अनिमा दास , अनिता ललित और बहन कृष्णा जी अतिशय आभार

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  13. सर बहुत सुंदर रचना है , हार्दिक बधाई।
    सादर
    सुरभि डागर

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  14. समर्पण का सौंदर्य दर्शाती सुंदर अभिव्यक्ति! धन्यवाद आदरणीय।

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  15. 'मैं केवल तुम हूँ' प्रेम की इससे अधिक सुंदर, पावन और गहन अनुभूति/अभिव्यक्ति क्या हो सकती है !!
    अति सुंदर रचना आदरणीय भैया। प्रणाम

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  16. प्रेम की गहन और पावन अभिव्यक्ति, इस सुन्दर कविता के लिए बहुत बधाई आदरणीय काम्बोज जी को

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