रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
मैं केवल तुम हूँ यह शब्द जब कंठ से बाहर निकलता है तब प्रकृति कितनी प्रेममयी हो जाती है... बहुत सुंदर सृजन
बहुत ही सुंदर
बहुत सुन्दर सर ! हार्दिक शुभकामनाएँ ।
अनीता सैनी जी, बहन सुषमा गुप्ता जी और बन्धुवर भीकमसिंह जी , बहुत -बहुत आभार
कविता दिल से निकलती है, इसीलिए हमेशा दिल को छूती है, बहुत सुंदर लिखा है भैया
हार्दिक आभार अनुजा
अर्धनारीश्वर हमअहा! इससे अधिक क्या ही कहा जाएसमूची सृष्टि समा गई इन दो शब्दों में!
आपकी टिप्पणी बहुत उत्साहवर्धक , आपका नाम पता चलता तो और भी अधिक अच्छा होता।
दिल से निकले शब्द दिल को छू गए। बहुत सुंदर कविता। सुदर्शन रत्नाकर
मैं केवल तुम हूँ...निजी सत्ता को प्रिय में विलीन कर देना ही प्रेम की सर्वोच्च अवस्था है।यही मिलन ईश्वर से मिलन है।बहुत सुंदर कविता।
वाह्ह्ह!!!सर....बहुत ही सुंदर कविता.... मृदुल शब्दों में भाव पुष्पों की सुगंध.... 🙏🙏🌹🌹🌹🌹शेष दो पंक्तियों में ठहर गई 🌹🙏
बहुत सुंदर कविता! नमन आपको!~सादर अनिता ललित
अति सुंदर कविता...हार्दिक शुभकामनाएँ।
बन्धुवर श्रीवास्तव जी, अनिमा दास , अनिता ललित और बहन कृष्णा जी अतिशय आभार
सर बहुत सुंदर रचना है , हार्दिक बधाई।सादरसुरभि डागर
समर्पण का सौंदर्य दर्शाती सुंदर अभिव्यक्ति! धन्यवाद आदरणीय।
'मैं केवल तुम हूँ' प्रेम की इससे अधिक सुंदर, पावन और गहन अनुभूति/अभिव्यक्ति क्या हो सकती है !! अति सुंदर रचना आदरणीय भैया। प्रणाम
प्रेम की गहन और पावन अभिव्यक्ति, इस सुन्दर कविता के लिए बहुत बधाई आदरणीय काम्बोज जी को
ReplyDeleteमैं केवल तुम हूँ यह शब्द जब कंठ से बाहर निकलता है तब प्रकृति कितनी प्रेममयी हो जाती है... बहुत सुंदर सृजन
बहुत ही सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सर ! हार्दिक शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteअनीता सैनी जी, बहन सुषमा गुप्ता जी और बन्धुवर भीकमसिंह जी , बहुत -बहुत आभार
ReplyDeleteकविता दिल से निकलती है, इसीलिए हमेशा दिल को छूती है, बहुत सुंदर लिखा है भैया
ReplyDeleteहार्दिक आभार अनुजा
Deleteअर्धनारीश्वर हम
ReplyDeleteअहा! इससे अधिक क्या ही कहा जाए
समूची सृष्टि समा गई इन दो शब्दों में!
आपकी टिप्पणी बहुत उत्साहवर्धक , आपका नाम पता चलता तो और भी अधिक अच्छा होता।
Deleteदिल से निकले शब्द दिल को छू गए। बहुत सुंदर कविता। सुदर्शन रत्नाकर
ReplyDeleteमैं केवल तुम हूँ...निजी सत्ता को प्रिय में विलीन कर देना ही प्रेम की सर्वोच्च अवस्था है।यही मिलन ईश्वर से मिलन है।बहुत सुंदर कविता।
ReplyDeleteवाह्ह्ह!!!सर....बहुत ही सुंदर कविता.... मृदुल शब्दों में भाव पुष्पों की सुगंध.... 🙏🙏🌹🌹🌹🌹शेष दो पंक्तियों में ठहर गई 🌹🙏
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता! नमन आपको!
ReplyDelete~सादर
अनिता ललित
अति सुंदर कविता...हार्दिक शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteबन्धुवर श्रीवास्तव जी, अनिमा दास , अनिता ललित और बहन कृष्णा जी अतिशय आभार
ReplyDeleteसर बहुत सुंदर रचना है , हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteसादर
सुरभि डागर
समर्पण का सौंदर्य दर्शाती सुंदर अभिव्यक्ति! धन्यवाद आदरणीय।
ReplyDelete'मैं केवल तुम हूँ' प्रेम की इससे अधिक सुंदर, पावन और गहन अनुभूति/अभिव्यक्ति क्या हो सकती है !!
ReplyDeleteअति सुंदर रचना आदरणीय भैया। प्रणाम
प्रेम की गहन और पावन अभिव्यक्ति, इस सुन्दर कविता के लिए बहुत बधाई आदरणीय काम्बोज जी को
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