पथ के साथी

Wednesday, February 22, 2023

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  1-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

घिरँधेरा घन,हरें पतवार कैसे छोड़ दूँ।

जीना अभी, करना बहुत संसार कैसे छोड़ दूँ।

-0-

2-परमजीत कौर 'रीत'

 

ग़ज़ल -1

अँधेरों की फ़ितरत का क्या कीजिए

चिराग़ों का  क़द ही बढ़ा लीजिए 

 

इसी में सुकूँ ज़िन्दगी का असल 

दुआ लीजिए और दुआ दीजिए

 

ये ही नफ़रतों का करेंगी इलाज़ 

जड़ी-बूटियाँ प्यार की बीजिए

 

समंदर सी रख ली है ग़र तिश्नगी़

न कम होगी, सौ-सौ नदी पीजिए 

 

खुदा ! ये दुआ है करूँ बंदगी

भले मुझको कम ज़िन्दगी दीजिए

 

ग़ज़ल -2

कहाँ कोई किसी से कम यहाँ था

ग़र इक तालाब तो दूजा कुआँ था 

 

गिरा पत्ता तो हावी हैं हवाएँ 

शज़र के साथ कब वह नातवाँ था

 

उन्हीं रिश्तों को परखा दूरियों ने 

वो जिनका नाम ही नज़दीकियाँ था 

 

मुझे थी पास होने की हिदायत

उन्हें हर बार लेना इम्तिहाँ था

 

नहीं था तर्क-ए-त'अल्लुक़ ये सच, पर

पलटकर 'रीत' देखा भी कहाँ था

 

ग़ज़ल -3

दिल से मिलें ग़र लोग, याराना बनता है

तार जुड़ें बेमेल, तमाशा बनता है

 

पेट काटकर तिनका-तिनका जोड़ें तब

सिर ढकने को एक ठिकाना बनता है 

 

 पंछी, पत्ते, फूल साथ छोड़ देते जब

बूढ़े पेड़ का मौन सहारा बनता है

 

वक्त के एक इशारे पर मंज़र बदलें

खुशी की आँखों में ग़म खारा बनता है

 

कुछ तो बात है हममें, सब यह कहते हैं

यूँ ही नहीं हर कोई दीवाना बनता है 

 

धुंध भले दीवार बने रस्ता रोके

फिर भी सूरज का तो आना, बनता है 

-परमजीत कौर 'रीत'

-0-

12 comments:

  1. घिरा अँधेरा घन,लहरें पतवार कैसे छोड़ दूँ।
    जीना अभी, करना बहुत संसार कैसे छोड़ दूँ।

    धुंध भले दीवार बने रस्ता रोके
    फिर भी सूरज का तो आना, बनता है।

    आशावादी दृष्टिकोण लिए अति सुंदर अभिव्यक्ति। हार्दिक बधाई

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  2. Replies
    1. सविता मिश्रा अक्षजा 🙏🏼

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    2. बहुत सुंदर रचनाएँ।
      गज़लें बेहतरीन, बहुत दिन बाद पढ़ी, आनन्द आ गया।
      आदरणीय काम्बोज भाई साहब और परमजीत कौर जी का धन्यवाद।

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  3. आप सभी गुणीजनों की प्रतिक्रियाओं का हार्दिक आभार।
    सहज साहित्य में रचनाओं को स्थान देने के लिए आदरणीय भाई साहब श्री रामेश्वर काम्बोज हिमांशु जी का हार्दिक आभार।
    -परमजीत कौर 'रीत'

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  4. आदरणीय भैया जी, आपकी पंक्तियाँ दिल को छू गईं! -लहरें आनी-जानी हैं, अभी तो सदियाँ बितानी हैं ... _/\_
    आपको एवं आपकी लेखनी को नमन!

    ~सादर
    अनिता ललित

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  5. परमजीत कौर जी... एक से बढ़कर सभी ग़ज़लें! बहुत ख़ूब!

    ~सादर
    अनिता ललित

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  6. आदरणीय काम्बोज सर का लेखन हमेशा सराहनीय होता है‌, हार्दिक बधाई आपको।
    परमजीत कौर जी ... बहुत सुंदर ग़ज़लें है
    सादर
    सुरभि डागर

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  7. आप सaब्का हृदय से कृतज्ञ हूँ। अपना अय आत्मीय भाव बनाए रखिए।

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  8. घिरा अँधेरा घन,लहरें पतवार कैसे छोड़ दूँ। / जीना अभी, करना बहुत संसार कैसे छोड़ दूँ।
    आशावादी पंक्तियाँ ... बहुत ही सुंदर
    नमन गुरुवर

    परमजीत जी सारी ग़ज़लें बहुत ही सुंदर
    बधाई स्वीकार करें

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  9. बहुत सुन्दर, आनंद आ गया | आप दोनों को बहुत बधाई

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