पथ के साथी

Friday, February 24, 2023

1293

 1-बदनसीबी

 कृष्णा वर्मा 

  

 जैसा वह है, ऐसा होना 

उसका कुसूर नहीं 

सीली कोठरी में जन्मा 

खुली नालियों वाली तंग 

बदबूदार गलियों में कंचे- गिल्ली डंडा खेलता 

डंडी से टायर को ठेलता

पता ही न चला कब

आसपास घटती घटनाओं को

अनजाने आत्मसात् कर लिया उसने 

गलियों के अँधेरे मोड़ों पर जुए के जमावड़े 

अभद्र भाषा में जुमलों संग ठहाके सुनता 

साल दर साल बढ़ता उसका वजूद 

कब उस सोहबत में घुल गया 

फिसलन भरी गलियों में जहाँ 

न सूर्य का उजाला था, न ही ज्ञान का 

उसकी भटकन भरी ज़िंदगी ऐसी फिसली कि जा गिरी 

दमघोटू गाँजा अफ़ीम और शराब की दुर्गंध में

वह वही पढ़ता और गुढ़ता रहा जो कानों को सुनाया 

दायरे की पातक हवाओं ने 

और यही अमल बन गया उसका काला मुकद्दर 

नशे असले बारूद और बंदूक 

अभिशाप बनकर लद गई उसके युवा कंधों पर  

इसे उपलब्धि जानकर उसने ठहाका लगाया 

और मनुष्यता रोने लगी ख़ून के आँसू। 

-0-

2-इन्तज़ार

प्रीति अग्रवाल

1.
तुम क्या गए
संग ले गए
मेरी मुस्कुराहटें...
छोड़ गए पीछे
पत्तों की सरसराहट
जो लुक -छुपके पूछती है
एक दूसरे से वही सवाल
जो अक्सर मैं
खुद से पूछा करती हूँ-
'तुम क्यों गए?'
2.
रोज़ की तरह
आज फिर दिन ढला
रोज़ की तरह
आज फिर उदासी ने
डालाया डेरा
काश!
एक बार तो कोई बताए
क्या कुसूर था मेरा?
3.
ढलता सूरज
दोहरा रहा
वही रोज़ का वायदा-
'कल आऊँगा।'
मैंने भी दोहरा दिया
वही रोज़ का वायदा-
'मैं इंतज़ार करूँगी।'
4.
इस नींद का भी
कोई ठिकाना नहीं,
जाने कहाँ रहती है
रात भर...
पूछती हूँ तो कहती है-
'ख्वाबों से तेरे नैना भरे हैं
आने नहीं देते,
मुझे करते परे हैं।'
5.
मुलाकातें इतनी छोटी
इंतज़ार इतने लंबे
क्यों होते हैं...
जब तक तुम आते हो
मैं थक जाती हूँ
कहने सुनने को
कितना होता है,
पर बस
बाहों में, सो जाती हूँ।
6.
तुमने संजीदगी से कहा-
'मेरा इंतज़ार न करना,
मुझे आने में वक्त लगेगा।'
मैंने हँसकर कहा-
'मेरे पास वक्त ही वक्त है,
मैं इंतज़ार करूँगी।'

-0-

 

8 comments:

  1. बहुत सुंदर रचनाएँ...

    ReplyDelete
  2. बहुत सुंदर रचनाएँ।
    हार्दिक बधाई आदरणीया कृष्णा दीदी एवं प्रीती जी को

    सादर

    ReplyDelete
  3. सुंदर रचनाएँ,कृष्णा वर्मा जी की 'बदनसीबी' कविता में सामाजिक विषमता के विद्रूप को उद्घाटित किया गया है,वहीं प्रीति अग्रवाल की 'इंतज़ार'शीर्षक की छः कविताएँ भावनात्मक-द्वंद्व की सहज अभिव्यक्ति की कविताएँ हैं।दोनो को बधाई।

    ReplyDelete
  4. बदनसीबी... मर्मस्पर्शी होने के साथ सामाजिक विषमता / सत्य को बताती कविता
    इन्तज़ार .. बहुत ही भावपूर्ण
    कृष्णा जी एवं प्रीति जी सुंदर सृजन के लिए बधाई

    ReplyDelete
  5. हमारे लिए इतना सुन्दर मंच सजाने के लिए और पत्रिका में स्थान देने के लिए आदरणीय काम्बोज भाई साहब का ह्र्दयतल से आभार।

    कृष्णा जी की कविता मर्मस्पर्शी , बेहतरीन!

    पूर्वा जी, शिवजी भैया, रश्मि जी और कपिल जी की मनोबल बढ़ाती टिप्पणियों के लिए हार्दिक आभार!

    ReplyDelete
  6. बहुत सुंदर एवं भावपूर्ण रचनाएं, आद कृष्णा वर्मा जी एवं आद प्रीति अग्रवाल जी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।
    - परमजीत कौर 'रीत'

    ReplyDelete
  7. सुंदर भावपूर्ण सृजन के लिए हार्दिक बधाई प्रीति!

    ReplyDelete
  8. बहुत सुंदर मर्मस्पर्शी एवं भावपूर्ण कविताएँ। कृष्णा वर्मा जी, प्रीति जी बहुत-बहुत बधाई। सुदर्शन रत्नाकर

    ReplyDelete