पथ के साथी

Friday, November 25, 2022

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 रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
                      

विभावरी (सॉनेट )

अनिमा दास

 

होती घनीभूत यदि आशा की यह विभावरी 

कलिकाएँ यौवना होतीं कई पुष्प भी महकते 

पुष्पित होतीं शाखाएँ निशा सुनाती आसावरी 

महाकाव्य लिखते हम,...मन द्वय भी चहकते । 

 

मैं बन तूलिका तमस रंग से रचती प्रणय- प्रथा 

मधुशाला होता हृदय तुम्हारा मैं मधु- सी झरती 

मन बहता मौन अभिप्राय में गूँजती स्वप्न -कथा 

श्वास में होती मदमाती दामिनी प्रेम रस भरती । 

 

यह कैशोर्य सौम्य स्मृति बन जीवन में रहता प्रिय 

अंतराल में होता मुखरित,...कभी होता सुरभित 

ऐंद्रजालिक अनुभव में अंतरिक्ष ही बहता  प्रिय 

पीते अधरों से अधररस,भोर होती नित्य ललित । 

 

विछोह की इस पीड़ा को करती मोक्ष अंजुरी अर्पण 

प्रेमकुंज की मालती मैं करती देह का अंतिम समर्पण । 

-0-अनिमा दास, सॉनेटियर,कटक, ओड़िशा 

11 comments:

  1. असीम धन्यवाद सर 🌹🙏मेरी रचना को स्थान देने हेतु 🙏🌹


    वाह्ह सर अति सुन्दर सृजन 🌹🙏प्रत्येक शब्द एवं पंक्ति में भाव की तरलता है 🙏🌹🌹🙏

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  2. बहुत सुंदर

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  3. अति सुन्दर!आदरणीय भैया और अनिमा दास जी को हार्दिक बधाई।

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    1. जी सादर धन्यवाद 🙏🌹

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  4. बहुत सुंदर सृजन...आदरणीय भाईसाहब तथा अनिमा जी को बहुत-बहुत बधाई।

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    1. जी सादर धन्यवाद 🙏🌹

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  5. दोनों ही रचनाएँ बहुत ही भावपूर्ण
    हार्दिक बधाई गुरुवर एवं अनिमा जी

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  6. डूबी है गीली बालू में...आह! बहुत सुंदर, धन्यवाद आदरणीय!

    अणिमा जी की रचना भी मंत्रमुग्ध कर देने वाली, अनेकों बधाई!!

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  7. अद्भुत, बहुत सुंदर रचनाएँ।दोनों सृजनकर्ता को हार्दिक बधाई। सुदर्शन रत्नाकर

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  8. आदरणीय काम्बोज जी को इतने बेहतरीन सृजन के लिए बहुत बहुत बधाई |
    अणिमा जी की रचना भी बहुत अच्छी है, बहुत बधाई |

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  9. "छू कर तट
    चंचल लट सी
    लहरें लौट गईं"

    लाजवाब

    'डूबी हैं
    गीली बालू में
    करूण कथाएँ'

    अप्रितम

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