विभावरी (सॉनेट )
अनिमा दास
होती घनीभूत यदि आशा की यह विभावरी
कलिकाएँ यौवना होतीं कई पुष्प भी महकते
पुष्पित होतीं शाखाएँ निशा सुनाती आसावरी
महाकाव्य लिखते हम,...मन द्वय भी चहकते ।
मैं बन तूलिका तमस रंग से रचती प्रणय- प्रथा
मधुशाला होता हृदय तुम्हारा मैं मधु- सी झरती
मन बहता मौन अभिप्राय में गूँजती स्वप्न -कथा
श्वास में होती मदमाती दामिनी प्रेम रस भरती ।
यह कैशोर्य सौम्य स्मृति बन जीवन में रहता प्रिय
अंतराल में होता मुखरित,...कभी होता सुरभित
ऐंद्रजालिक अनुभव में अंतरिक्ष ही बहता प्रिय
पीते अधरों से अधररस,भोर होती नित्य ललित ।
विछोह की इस पीड़ा को करती मोक्ष अंजुरी अर्पण
प्रेमकुंज की मालती मैं करती देह का अंतिम समर्पण ।
-0-अनिमा दास, सॉनेटियर,कटक, ओड़िशा
असीम धन्यवाद सर 🌹🙏मेरी रचना को स्थान देने हेतु 🙏🌹
ReplyDeleteवाह्ह सर अति सुन्दर सृजन 🌹🙏प्रत्येक शब्द एवं पंक्ति में भाव की तरलता है 🙏🌹🌹🙏
बहुत सुंदर
ReplyDeleteअति सुन्दर!आदरणीय भैया और अनिमा दास जी को हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteजी सादर धन्यवाद 🙏🌹
Deleteबहुत सुंदर सृजन...आदरणीय भाईसाहब तथा अनिमा जी को बहुत-बहुत बधाई।
ReplyDeleteजी सादर धन्यवाद 🙏🌹
Deleteदोनों ही रचनाएँ बहुत ही भावपूर्ण
ReplyDeleteहार्दिक बधाई गुरुवर एवं अनिमा जी
डूबी है गीली बालू में...आह! बहुत सुंदर, धन्यवाद आदरणीय!
ReplyDeleteअणिमा जी की रचना भी मंत्रमुग्ध कर देने वाली, अनेकों बधाई!!
अद्भुत, बहुत सुंदर रचनाएँ।दोनों सृजनकर्ता को हार्दिक बधाई। सुदर्शन रत्नाकर
ReplyDeleteआदरणीय काम्बोज जी को इतने बेहतरीन सृजन के लिए बहुत बहुत बधाई |
ReplyDeleteअणिमा जी की रचना भी बहुत अच्छी है, बहुत बधाई |
"छू कर तट
ReplyDeleteचंचल लट सी
लहरें लौट गईं"
लाजवाब
'डूबी हैं
गीली बालू में
करूण कथाएँ'
अप्रितम