प्रीति अग्रवाल
कल की सोच में
बीत रहा है,
आज का दिन
कल,
फिर आएगा,
एक और,
नए-पुराने,
कल की सोच में,
फिर लग जाएगा
मानो,
'आज' का
अपना कोई
वजूद ही न हो....
वह मात्र
दो 'कलों' के बीच,
विश्रामस्थली -सा हो....।
सोच में थी,
इस 'आज' को
कैसे थामूँ
इसे,
किस डोर से बाँधूँ,
कि ठहर जाए,
कुछ देर, यह
पास मेरे....
अनायास ही,
नज़र पड़ी,
अठखेलियाँ करती,
दो तितलियों पर....
पकड़म-पकड़ाई
खेल रही थी,
एक दूसरे को
उकसा रही थी,
चिढ़ा रही थी, खूब
आनंद उठा रहीं थी....
ठीक वैसे,
जैसे सहेलियाँ, अकसर,
किया करती हैं....
थक कर, हाँफती,
दोनों जा बैठी
फूलों की सेज पर
रसपान करने,
अरे लो!
वे तो फिर उड़ चलीं
इस बार,
जो पिछली बार
पीछे रह गई थी,
बड़ी चतुराई से
मुँह चिढ़ाती,
आगे निकल गई,
उन्हें देख, मेरी
हँसी भी न रुकी....
वही,
बचपन वाली हँसी,
जो,
बेबात आती थी,
बेवक्त आती थी,
बड़ी देर तक आती थी,
बहुत खुल कर आती थी....
मैं, उनकी अठखेलियों में
ऐसे खोई, कि
कुछ बोध न रहा....
न बीते कल का,
न आने वाले कल का.....!
वे दोनों,
जाते -जाते,
मेरे हाथों,
'आज' की डोर,
थमा गईं!!
-0-
मेरे हँसने पर हँसते हो
रोने पर रोते,
कहो तो सही
तुम मेरे कौन हो....
मेरे पूछने से पहले,
आईना, पूछ बैठा....!!
3
है खुद की प्यास मिटानी तो,
दूजे को नीर पिलाओ.....
मिटेगी तृष्णा ऐसे ही,
एक बार तो, आज़माओ!
4
कहने को यूँ तो
था बहुत, पर
क्या कहूँ....
कैसे कहूँ.....
किससे कहूँ....
कहूँ, न कहूँ....
इस सोच में
उलझी रही....
ज़िन्दगी, ज़िन्दगी ठहरी
क्यों रुकती,
चलती रही....!
5
तुम संग बीते लम्हें
काश! समेट पाते....
नर्म, मुलायम इतने,
हाथों से फिसले जाते....!
6
ये लोग
जो चले जाते हैं,
जाते हैं कहाँ....
पूछते उन्हीं से,
जो लौटते,
वो यहाँ..!
7
पहुँचने की तुम तक
है कैसी लगन...
हर वक्त यूँ लगे, कि
सफर में हैं हम....!
8
हम दोनों की मंज़िल,
हम दोनों ही हैं....
सफर खूबसूरत,
यूँही नहीं.....!!
9
था लम्बा सफर
पर मैं न थकी...
थकी, तो बस,
तुझे, मना मना थकी!
10
जज़्बात को मेरे
समझते वे कैसे.....
बातें ही मेरी,
समझ वे न पाए...!
11
ज़िन्दगी में साल, चाहे
जितने भी हो......
हर साल में, बस,
ज़िन्दगी चाहिए !
ReplyDeleteसाल चाहे जितने भी हों
हर साल में बस
ज़िंदगी चाहिए
वाह ! कसक, दृढ़ निश्चय और सकारात्मकता के धरातल पर रची बेहतरीन रचनाओं के लिए प्रीति जी को बहुत बधाई, हार्दिक शुभकामनाएँ 💐
बेहतरीन रचनाओं के लिए बहुत बधाई प्रीति जी
ReplyDeleteसुन्दर रचनाओं के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteसुन्दर सृजन की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएँ आदरणीया प्रीति जी।
ReplyDeleteसादर
सुन्दर रचनाएँ
ReplyDeleteवाह ! प्रीति सुंदर भावों से पूर्ण कविता और क्षणिकाएँ हैं । मन प्रसन्न हो गया।जज़्बात को वो समझते कैसे… बढ़िया है।
ReplyDeleteएक से बढ़कर एक .... बहुत ही भावपूर्ण, प्यारी एवं सुंदर रचनाएँ
ReplyDeleteप्रीति जी हार्दिक शुभकामनाएँ स्वीकार करें ।
समय की डोर को हाथ मे थमाती चंचल तितलियाँ और भाव जगत को आंदोलित करतीं सुंदर लघु कविताएँ,बहुत बहुत बधाई प्रीति जी।
ReplyDeleteइतना सुंदर मंच प्रदान करने के लिए, हमें आपस मे जोड़े रखने के लिए, आदरणीय काम्बोज भाई साहब का ह्रदयतल से आभार!
ReplyDeleteसुशीला जी, प्रियंका जी, भीकम सिंह जी, रश्मि जी, ओंकार जी, सविता जी, पूर्वा जी, शिवजी भैया, मेरे मन की आवाज़ आप सब तक पहुँची इससे अधिक प्रिय उपहार मेरे लिए क्या होगा!आप सभी का हार्दिक धन्यवाद!
बहुत सुन्दर सृजन ...हार्दिक शुभकामनाएँ प्रीति जी!
ReplyDeleteसुंदर भावपूर्ण कविताएं, हार्दिक बधाई।
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