1-दोहे
निधि भार्गव मानवी
गुरुवर की आराधना, करती है कल्याण
।
गुरु की आज्ञा मानके , शिष्य बने गुणवान ।।
2
कदम- कदम पर देखिए, झूठे लोग हजार ।
रचा हुआ हर ओर है, स्वारथ का संसार ।।
3
अन्तर्मन की वेदना, देती दिल को चीर ।
बस मन का संतोष ही, हर लेता सब पीर ।।
4
सरहद पर जो दे गया, लड़ते- लड़ते प्राण ।
ऐसे वीर सपूत को, करता नमन जहान ।।
5
यदि माया में लिप्त हो, छोड़ा अपना देश ।
अपनों से होकर विमुख, बीते जीवन शेष ।।
6
करूँ नमन गुरुदेव को, नित्य नवाऊँ शीश ।
गुरु- चरणों में दीखते
,परम पुरुष जगदीश ।।
7
हिंदी आत्मा हिंद की, करो सदैव प्रचार ।
श्रेष्ठ सभी से है सखे , हिंदी का संसार ।।
8
सखे बिगाड़े क्या भला, उनका ये संसार ।
राम -नाम के आसरे, करते
जो भव पार ।।
9
होनी तो होकर रहे, समय बदलता चाल ।
कभी खुशी उर झूमती, कभी घूरता काल ।।
10
चाहे जितने ले बदल, रे मन अपने भेष ।
एक दिवस ले जायगा, काल पकड़कर केश ।।
11
हिन्दी को मत भूलिए, दो हिन्दी को मान ।
हिन्दी इक संगीत है, हिन्दी मीठा गान ।।
12
माँ वाणी का ध्यान धर, रच दे कोई ग्रंथ
देगा नव पहचान रे, यह लेखन का पंथ
13
नमन तुम्हें माँ शारदे, सिर पे रख दो हाथ
भले -बुरे हर दौर में, नहीं छोड़ना साथ
14
मधुर मिलन की
रैन है,
बिसराए सब काज
घूँघट में गोरी खड़ी, पहन ओढ़ के लाज
15
भीतर मन के पल रहा, एक
नया संसार
पल प्रतिपल हिय बढ़ रहा, सपनों का विस्तार
16
गुरु चरणों की वन्दना, करती
हूँ दिन
रैन
द्वार ज्ञान
के खोलते, गूढ़, अमोलक बैन
17
मतलब से दुनिया भरी, झूठी अकड़ दिखाय
‘निधे’ मनाएँ एक तो
, रूठ दूसरा जाय
18
मानव तेरी जाति का
, कैसा अद्भुत योग
ज्यों ज्यों बढ़ती है उमर,त्यों त्यों बढ़ते रोग
19
मैं बदली- सी बावरी, तुम बादल- से मीत
गूँजेंगे इक साथ में,
तेरे मेरे गीत
20
स्वप्न तुम्हारे नाम का, कर लूँ मैं साकार
क्षणभंगुर संसार में, बस तुम ही आधार
21
बनी रहे ये एकता, रहे सलामत प्यार
तेरे दिल पे हो गया, अब मेरा अधिकार
22
बिखरी किरण ललाट पे , मुख चमके
ज्यों धूप
वो कहते मैं अप्सरा, मोहक मेरा रूप
23
तुमसे अच्छा है नहीं, अब मेरा मनमीत
तुमसे मन में सुर बजे, तुमसे लब पर गीत
-0-
2-पूनम सैनी
1.
ज़रूरी कहाँ शोहरतें
भीनी-सी मुस्कान को,
बस फूलों के बागों में
उड़ती तितली काफी है।
काफी है ठोकर एक
सँभलकर चलना सीखने को;
रिश्तों की मजबूती को
इक बलिदान काफी है।
2.
आज़ादियों ने रिश्ते कब
रखे आसमानों से।
कब पंखों ने तय की है उड़ान।
मन आज़ादी का बसेरा,
हौसलों से परवाज़ है।
मंज़िलों के ख्वाब ही
सफ़र का आगाज़ है।
-0-
घूँघट में गोरी खड़ी, पहन ओढ़ के लाज।।
ReplyDeleteवाह वाह मानवी जी। अन्य दोहे भी बहुत सुंदर।
आज़ादियों ने रिश्ते कब रखे आसमानों से।
लाजवाब ! बहुत सुंदर सृजन पूनम जी। बधाई
बहुत सुंदर दोहे व कविता ।आप दोनों रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteबेहतरीन दोहे, बेहतरीन कविता •••वाह ।
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनाएँ ।
बहुत उम्दा दोहे और सुन्दर कविता हैं, हार्दिक बधाई
ReplyDeleteदोहे और कविता दोनों बहुत सुंदर...हार्दिक बधाई
ReplyDeleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteनिधि जी एवं पूनम जी सुन्दर सृजन के लिए हार्दिक बधाइयाँ
ReplyDeleteदोहे और कविता दोनो में सुंदर भाव निहित हैं । हार्दिक बधाई दोनो रचनाकारों को।
ReplyDeleteबहुत सुंदर दोहे एवं कविता,, दोनों रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं-परमजीत कौर'रीत'
ReplyDeleteमनभावन दोहे और भावपूर्ण कविता | निधि जी और पूनमजी को सुन्दर सृजन के लिए बधाई |
ReplyDeleteआप सभी का आभार।🙏
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