पथ के साथी

Friday, September 17, 2021

1132

 

1-अश्रु -भीकम सिंह 

 


नैनों में घिरे

घटा-से 

कभी 

पलकों से झरें ।

उर से 

उलझे हैं 

अभी 

क्या करें, क्या ना करें 

अधरों 

तक आ जाते हैं 

ये अश्रु 

और कहाँ मरें ।

-0-

2-घनाक्षरी छंद

- निधि भार्गव मानवी


 नैनन बसाय तोहे, रख लूँ आ बालमा  मैं,


हँसता  गाता  खेलता
, प्रीत का संसार  दूँ

माँग में सजा के प्रीत, लिख डालूँ नयी रीत

मन  भावनी  ऋतु  से, जीवन  सँवार  दूँ

अँखियों को चार कर, नेह की मिठास भर

सारे   सुख   जगत  के, प्रियतम  वार   दूँ

चंदा मैं  चकोर तुम, आशाओं की भोर  तुम

अपनी  कोमल  बाँहों  का आ तोहे हार  दूँ

                               -0-

9 comments:

  1. उर से
    उलझे हैं
    अभी क्या करें, क्या ना करें ।बहुत सुंदर। बधाई भीकम सिंह जी।

    प्रियतम पर सारे सुख वार देने के भावों की सुंदर प्रस्तुति हार्दिक बधाई

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  2. बहुत सुंदर कविताएँ।आप दोनों रचनाकारों को हार्दिक बधाई।

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  3. सुंदर प्रस्तुति

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  4. बहुत सुंदर प्रस्तुति । आप दोनो रचनाकारों को बधाई।

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  5. बहुत बढ़िया सृजन।
    आप दोनों रचनाकारों को हार्दिक बधाई!

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  6. बहुत सुन्दर रचनाएँ, आप दोनों को मेरी बहुत बधाई |

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  7. ये अश्रु
    और कहाँ मरें

    मनभावन घनाक्षरी छंद के लिए निधि जी को बहुत-बहुत बधाई !
    लाजवाब आदरणीय भीकम जी।

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  8. ये अश्रु और कहाँ मरें।
    बहुत ही सुन्दर।
    हार्दिक बधाई आदरणीय भीकम सिंह जी को।
    आदरणीया निधि जी को सुन्दर सृजन की हार्दिक बधाई।

    सादर

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  9. भीकम जी बहुत सुन्दर रचना...
    विशेषतः - और कहाँ मरें..... बहुत ही बढ़िया

    निधि जी भावपूर्ण रचना

    आप दोनों को सुन्दर सृजन के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ एवं बधाइयाँ

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