पथ के साथी

Tuesday, May 11, 2021

1105

 1-भीकम सिंह 

जल

 


बूँद
- बूँद-सा 

घुट -घुटकर

चुप्पी धर रहा है 

जल मर रहा है 

 

मुरझा गया 

झील तालों में 

नदी नालों में 

बोतलों में भर रहा है 

 

ध्वस्त हो रहा 

हिम का किला 

किरचें- किरचें उड़

हवा में बिखर रहा है ।

जल मर रहा है 

-0-

2-लहर

 

पुलिनों पर 

गिरती श्वेत-सी

थोड़ा खुद को दुबकाकर ।

 

सागर पर चलती 

मंथर-मंथर 

लौटे तो शरमाकर 

-0-

क्षणिकाएँ-अंजु गुप्ता

1

उगती है

सर उठाती है

फिर...

पैरों तले रौंद दी जाती है

क्या घास, क्या औरत !

 

2

फर्क है…

तेरे और मेरे समर्पण में !

मैं तुझको और तू मेरी देह को

समर्पित है ! !

-0-

11 comments:

  1. प्रदूषित होते पर्यावरण पर सुंदर कविताएँ आ. भीकम सिंह जी! हार्दिक बधाई आपको!

    भावपूर्ण क्षणिकाएँ अंजू गुप्ता जी! हार्दिक बधाई आपको!

    ~सादर
    अनिता ललित

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  2. बहुत ही सुन्दर रचनाएँ, हार्दिक बधाई।

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  3. आ.भीकम जी की कविताएँ बहुत गहन और सार्थक!
    अंजू जी की रचना भी सुंदर भावपूर्ण!

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  4. ध्वस्त हो रहा हिम का किला ......अच्छी रचना है

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  5. पर्यावरण के प्रति सचेत करती’ जल लहरें ’सुंदर कविताएँ।
    भावपूर्ण क्षणिकाएँ। आप दोनों रचनाकारों को हार्दिक बधाई।

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  6. अच्छे भाव ली हुई कविताएँ-बधाई।

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  7. This comment has been removed by the author.

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  8. सुन्दर रचनाएँ

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  9. भीकम जी की सुंदर कविताओं ने मन मोह लिया । अंजु जी की भावपूर्ण क्षणिकाएँ हैं आप दोनो को बधाई।

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  10. भीकम जी की जल पर सुन्दर कविता भावमयी है ।अंजु जी की क्षणिकाएँ बहुत सुन्दर ।आप दोनों कवियों को सार्थक सृजन की बधाई ।

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  11. बेहतरीन रचनाओं के लिए भीकम जी और अंजू जी को हार्दिक बधाई |

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