1-भीकम सिंह
जल
बूँद- बूँद-सा
घुट
-घुटकर
चुप्पी
धर रहा है
जल
मर रहा है
।
मुरझा
गया
झील
तालों में
नदी
नालों में
बोतलों
में भर रहा है
।
ध्वस्त
हो रहा
हिम
का किला
किरचें-
किरचें उड़
हवा
में बिखर रहा है ।
जल
मर रहा है
।
-0-
2-लहर
पुलिनों
पर
गिरती
श्वेत-सी
थोड़ा
खुद को दुबकाकर ।
सागर
पर चलती
मंथर-मंथर
लौटे
तो शरमाकर
।
-0-
क्षणिकाएँ-अंजु गुप्ता
1
उगती है
सर उठाती है
फिर...
पैरों तले रौंद दी जाती है
क्या घास, क्या औरत !
2
फर्क है…
तेरे और मेरे समर्पण में !
मैं तुझको और तू मेरी देह को
समर्पित है ! !
-0-
प्रदूषित होते पर्यावरण पर सुंदर कविताएँ आ. भीकम सिंह जी! हार्दिक बधाई आपको!
ReplyDeleteभावपूर्ण क्षणिकाएँ अंजू गुप्ता जी! हार्दिक बधाई आपको!
~सादर
अनिता ललित
बहुत ही सुन्दर रचनाएँ, हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteआ.भीकम जी की कविताएँ बहुत गहन और सार्थक!
ReplyDeleteअंजू जी की रचना भी सुंदर भावपूर्ण!
ध्वस्त हो रहा हिम का किला ......अच्छी रचना है
ReplyDeleteपर्यावरण के प्रति सचेत करती’ जल लहरें ’सुंदर कविताएँ।
ReplyDeleteभावपूर्ण क्षणिकाएँ। आप दोनों रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
अच्छे भाव ली हुई कविताएँ-बधाई।
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ReplyDeleteसुन्दर रचनाएँ
ReplyDeleteभीकम जी की सुंदर कविताओं ने मन मोह लिया । अंजु जी की भावपूर्ण क्षणिकाएँ हैं आप दोनो को बधाई।
ReplyDeleteभीकम जी की जल पर सुन्दर कविता भावमयी है ।अंजु जी की क्षणिकाएँ बहुत सुन्दर ।आप दोनों कवियों को सार्थक सृजन की बधाई ।
ReplyDeleteबेहतरीन रचनाओं के लिए भीकम जी और अंजू जी को हार्दिक बधाई |
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