स्त्री
प्रेम से उद्वेलित
हूँ
तो विष से भी हूँ लबरेज़
राग द्वेष आक्रोश
सब समाहित हैं मुझमें
यूँ न देख मुझे
नहीं हूँ
निरीह निस्सहाय -सी
सदियों से सींच रहा
है
मेरा अनुराग तेरे
प्राण
संपूर्ण हूँ स्वयं
में
मैं किन्हीं दुआओं और
मन्नतों का परिणाम
नहीं
और न ही किसी पीर की
दरगाह के
ताबीज़ का असर
हूँ
बेकद्री और मलाल से
सिंचा
बड़ा पुख़्ता वजूद हूँ
मैं
ग़ज़ब की है जिजीविषा
मेरी
तभी तो पी लेती हूँ
सहज ही
सारी तल्ख़ियाँ और
कठोरता
यूँ भी कड़वा कसैला पीना
किसी साधारण जन के बस
की बात नहीं
जानती हूँ समय से आँख
मिलाना
तभी तो जी लेती हूँ
लम्बी उम्र तक
बिना किसी करवाचौथ के
सहारे के।
-0-
2-ऋता शेखर 'मधु'
1
तन मन से रहे
हरदम घर में रत
तभी तो संसार में
नाम पड़ा औ-रत।
2
चकरघिन्नी देखने को
इधर उधर न झाँको
दिख जाएगी घर में ही
नजर खोलकर ताको।
3
भोर की लालिमा में
पूजा का आलोक है
महिला के जाप में
गायत्री का श्लोक है।
4
छोड़ रहा छाप है
पाँव का आलता
बिछड़न का दुःख
बेटी को सालता।
5
महिला की महिमा
ईश्वर भी जानते
शक्ति के रूप में
दुर्गा को मानते।
6
जब जब पड़ा है
त्याग का काम
पुरुषों ने कर दिए
महिलाओं के नाम।
7
जिसके आँचल पर टिकी
इस सृष्टि की आशा
लिख सका है कौन
उसकी परिभाषा।
8
जिसके आँचल में बँधी
दो कुलों की मर्यादा
माप सका न धीर कोई
राजा हो या प्यादा।
9
नारी को स्वीकार नहीं
बनना चरणों की रज
वक्त की पुकार पर वह
मुट्ठी में बाँध रही
सूरज।
10
शीतल छाँव को खोजने
दुनिया सारी घूम आया
खुद को अज्ञानी समझा
जब आँचल माँ का पाया।
11
जिससे घर, घर लगता है
रखते उससे ही गिला
महिला को भी चाहिए
उसके काम का सिला।
-0-
3-परमजीत कौर 'रीत',
दोहे
1
पोथी में मिलती नहीं, जीवन की हर बात ।
चिड़िया! पढ़ना सीख ले, चहरों के
हालात।।
2
चिड़िया के पर कतरके, खोल दिये
सब पाश ।
बोला माली आज से, तेरा है
आकाश ।।
3
चिड़िया! चलना सँभलके, भरनी पड़े
न आह ।
तलवारों की धार है, तेरी
जीवन-राह ।।
4
साँकल तेरे पाँव में, दूर भले
आकाश ।
अरी! चिड़कली किन्तु
तू , होना
नहीं निराश ।।
5
दफ्तर-घर-परिवार में, सपनों का
संसार ।
धार रही हैं नारियाँ, चतुर्भुजा
अवतार ।।
5
घर बाहर की दौड़ में, छूटे एक न काम।
ढूँढ रही है मानवी, जीवन सुबहो-शाम ।।
-0-
परमजीत जी के सुंदर दोहे, नारी के लिए मानवी शब्द प्रयोग सटीक लगा।
ReplyDeleteऋता शेखर जी ने दो दो पंक्तियों में नारी जीवन को उकेरने की उम्दा कोशिश की है।
कृष्णा जी ने नारी को संघर्षों में हार न मानने वाली व बिना सहयोग के भी आगे बढ़ने वाली के रूप में चित्रित कर नारी शक्ति बताया है। सशक्त कविता की उन्हें बधाई।
आप सभी को बधाई।
सभी रचनाएं शानदार। बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पुष्प-गुच्छ । आप सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई
ReplyDeleteमन्नतों का परिणाम नहीं....,बड़ा पुख़्ता वजूद हूँ मैं.....बिना किसी करवाचौथ के सहारे के...... बहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteहरदम घर में रत..,चकरघिन्नी देखने को..,माप सका न धीर कोई.., त्याग का काम.., बहुत ही बढ़िया
चहरों के हालात,चिड़िया के पर कतरके..,साँकल तेरे पाँव में..,चतुर्भुजा अवतार ..,जीवन सुबहो-शाम
और परमजीत जी के दोहे तो क्या कहे ... एक से बढ़कर एक... सभी बेहतरीन...
सभी रचनाकारों को सुन्दर सृजन के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ
बहुत पुख्ता वजूद हूँ मैं...
ReplyDeleteतन मन से रहे....
चिड़िया के पर कतरके...
बहुत सुंदर! कृष्णा जी, परमजीत जी और ऋता जी को बधाई!
कृष्णा जी की ये पँक्तियाँ मुझे सुंदर लगी।
ReplyDeleteजानती हूँ समय से आँख मिलाना
तभी तो जी लेती हूँ
लम्बी उम्र तक
बिना किसी करवाचौथ के सहारे के।
ऋता जी एवं परमजीत जी ने भी बखूबी पंक्तियाँ उकेरी हैं-बधाई।
बिना किसी करवाचौथ के सहारे के।,,
ReplyDeleteलिख सका है कौन उसकी परिभाषा। बहुत सुंदर भावपूर्ण रचनाएं।
आद कृष्णा शर्मा जी,आद ऋता शेखर 'मधु'जी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।
रचना प्रकाशित करने के लिए सहज साहित्य का हार्दिक आभार।
ReplyDeleteसभी आदरणीय गुणीजनों की उत्साहवर्धक प्रतिक्रियाओं का हार्दिक आभार।
-परमजीत कौर'रीत'
कृष्णा जी बहुत सुंदर कविता है आपकी।बिना किसी करवाचौथ के सहारे...कितनी टीस..कितनी सच्चाई है इन पंक्तियों में।ऋता जी ने अल्प शब्दों में कितना कुछ बखूबी कह दिया।परमजीत जी के दोहे सुंदर बन पड़े हैं,सभी रचनाकारों को बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचनाएँ। सभी रचानाकारों को हार्दिक बधाई, शुभकामनाएँ। डॉ कविता भट्ट 'शैलपुत्री'
ReplyDeleteआदरणीया कृष्ना जी एवं परमजीत जी की रचनाएं बहुत सुंदर, सार्थक। आप दोनों को बधाई।
ReplyDeleteमेरी रचनाओं को स्थान देने के लिए सहज साहित्य मंच का हार्दिक आभार।
टिप्पणी द्वारा प्रोत्साहन देने वाले सभी मित्रों का दिल से आभार ।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteसभी रचनाएँ बेहद प्रभावशाली.
ReplyDeleteकृष्णा जी ने कितना सटीक कहा -
जानती हूँ समय से आँख मिलाना
तभी तो जी लेती हूँ
लम्बी उम्र तक
बिना किसी करवाचौथ के सहारे के।
ऋता जी औरत की कितनी बढ़िया परिभाषा दी है -
तन मन से रहे
हरदम घर में रत
तभी तो संसार में
नाम पड़ा औ-रत।
परमजीत ने कितनी गहरी बात कही है -
चिड़िया के पर कतरके, खोल दिये सब पाश ।
बोला माली आज से, तेरा है आकाश ।।
आप सभी रचनाकारों को उत्कृष्ट सृजन के लिए बधाई.
ReplyDeleteगहन अर्थ लिए उत्कृष्ट रचनाएँ,सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
रचना प्रकाशित करने के लिए आ. भाई काम्बोज जी का हार्दिक आभार।
ReplyDeleteप्रेरणाप्रद प्रतिक्रियाओं के लिए आप सभी का हृदय से आभार ।
ऋता जी और परमजीत जी को सुंदर सृजन के लिए बहुत-बहुत बधाई।
नए नए भावों से सजी कविताएं मॉन को छू गईं। सभी कवियोँ को बधाई।
ReplyDeleteअलग अलग तरह से नारी के मनोभावों और परिस्थितियों को चित्रित करती इन सभी सुन्दर रचनाओं के लिए आप तीनो को बहुत बधाई
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