पथ के साथी

Wednesday, June 3, 2020

999-ग़ज़ल



 परमजीत कौर 'रीत'

कहीं आँखों का सागर बोलता है
जुबाँ चुप हो तो पैकर बोलता है

वो दिखता है जो अंदर बोलता है
है जो सीपी में, गौहर बोलता है

सदाएँ  पुरअसर हों और कशिश भी
तो फिर अंदर का पत्थर बोलता है

शराफ़त है कि अक्सर क़त्ल करके
'फ़लाँ क़ातिल है' खंज़र बोलता है

कहीं जाओ तो जल्दी लौट आना
ये हर बेटी से अब घर बोलता है

दिलों के ग्रंथ पढ़ना ‘रीत’ मुश्किल
वहाँ अक्षर पे अक्षर बोलता है

-0-(आकाशवाणी सूरतगढ़ के 'महिला -जगत' कार्यक्रम की काव्य गोष्ठी में 15 अगस्त 2018 को प्रसारित )

11 comments:

  1. वाह उम्दा ग़ज़ल

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  2. कहीं जाओ तो जल्दी लौट आना
    ये हर बेटी से अब घर बोलता है।
    बहुत बढ़िया ग़ज़ल

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  3. उम्दा ग़ज़ल

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  4. बहुत खूबसूरत, आपको बधाई परमजीत जी!

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  5. बहुत खूबसूरत गज़ल, परमजीत जी बहुत बहुत बधाई आपको।

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  6. सुंदर ग़ज़ल ,वर्तमान परिवेश को रेखांकित करते हुए । बधाई ।

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  7. रचना प्रकाशित करने के लिए सहज साहित्य का एवं आप सभी की उत्साहवर्धक प्रतिक्रियाओं का हार्दिक आभार।
    -परमजीत कौर 'रीत'

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  8. कहीं जाओ तो जल्दी लौट आना
    ये हर बेटी से अब घर बोलता है
    इन पंक्तियों में आज के सन्दर्भ में कितना कुछ कह दिया है | बहुत बधाई...|

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  9. बहुत सुंदर ग़ज़ल ... परमजीत जी बधाई।

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  10. उम्दा ग़ज़ल
    वो दिखता है जो अंदर बोलता है
    है जो सीपी में, गौहर बोलता है....बहुत खूब!
    परमजीत जी को बधाई!!

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