परमजीत कौर 'रीत'
कहीं आँखों का सागर
बोलता है
जुबाँ चुप हो तो पैकर
बोलता है
वो दिखता है जो अंदर
बोलता है
है जो सीपी में, गौहर बोलता है
सदाएँ पुरअसर हों और कशिश भी
तो फिर अंदर का पत्थर
बोलता है
शराफ़त है कि अक्सर
क़त्ल करके
'फ़लाँ क़ातिल
है' खंज़र बोलता है
कहीं जाओ तो जल्दी
लौट आना
ये हर बेटी से अब घर
बोलता है
दिलों के ग्रंथ पढ़ना
‘रीत’ मुश्किल
वहाँ अक्षर पे अक्षर
बोलता है
-0-(आकाशवाणी सूरतगढ़ के 'महिला -जगत'
कार्यक्रम की काव्य गोष्ठी में 15 अगस्त 2018
को प्रसारित )
वाह उम्दा ग़ज़ल
ReplyDeleteकहीं जाओ तो जल्दी लौट आना
ReplyDeleteये हर बेटी से अब घर बोलता है।
बहुत बढ़िया ग़ज़ल
उम्दा ग़ज़ल
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत, आपको बधाई परमजीत जी!
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत गज़ल, परमजीत जी बहुत बहुत बधाई आपको।
ReplyDeleteसुंदर ग़ज़ल ,वर्तमान परिवेश को रेखांकित करते हुए । बधाई ।
ReplyDeleteरचना प्रकाशित करने के लिए सहज साहित्य का एवं आप सभी की उत्साहवर्धक प्रतिक्रियाओं का हार्दिक आभार।
ReplyDelete-परमजीत कौर 'रीत'
कहीं जाओ तो जल्दी लौट आना
ReplyDeleteये हर बेटी से अब घर बोलता है
इन पंक्तियों में आज के सन्दर्भ में कितना कुछ कह दिया है | बहुत बधाई...|
बहुत सुंदर ग़ज़ल ... परमजीत जी बधाई।
ReplyDeleteउम्दा ग़ज़ल
ReplyDeleteवो दिखता है जो अंदर बोलता है
है जो सीपी में, गौहर बोलता है....बहुत खूब!
परमजीत जी को बधाई!!
Thannks great blog post
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