1-हर चौराहा पानीपत है
इस बस्ती में
नई-नई
घटनाएँ होती है।
हर गलियारे में दहशत है
हर चौराहा पानीपत है
घर, आँगन, देहरी, दरवाज़े
भीतों के ऊँचे पर्वत हैं
संवादों में
युद्धों की भाषाएँ होती हैं।
झुलसी तुलसी अपनेपन की
गंध विषैली चन्दनवन की
गीतों पर पहरे बैठे हैं
कौन सुनेगा अपने मन की
अंधे हाथों में
रथ की
वल्गाएँ होती हैं।
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2- अपना आकाश
नम आँखों से
देख रहे हैं
हम अपना आकाश।
देख रहे हैं बूँदहीन
बादल की आवाजाही।
शातिर हुई हवाओं की
नित बढ़ती तानाशाही।।
खुशगवार
मौसम भी बदले
लगते बहुत उदास।
टुकड़े-टुकड़े धूप बाँटते
किरणों के सौदागर।
आश्वासन की जलकुंभी से
सूख रहे हैं पोखर।।
उर्वर वसुधा के भी
निष्फल
हुए सभी प्रयास।।
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इतनी सुंदर कविता पढकर मेरा हृदय प्रसन्न हुआ ,
ReplyDeleteरघुवीर जी मेरी हृदय से आपको शुभकामना और दुआ|
कविता में कुछ बात है ऎसी, कि मेरे मन को छू गयी | श्याम हिंदी चेतना
दोनो ही नवगीत सुंदर एवम प्रभावी है,वर्तमान की विसंगतियों का सार्थक प्रतीकों द्वारा अभिव्यक्ति मिली है।रघुवीर जी को बधाई
ReplyDeleteदोनों ही नवगीत हृदयस्पर्शी बन पड़े हैं ।बहुत सुन्दर सृजन किया है आपने,बधाई आपको!
ReplyDeleteहर चौराहा पानीपत है,अपना आकाश समसामयिक ,आज का दर्द दर्शाते बहुत सुंदर नवगीत।रघुबीर शर्मा जी को हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteदोनो ही रचनाएँ बहुत खूब!बड़ा ही मार्मिक चित्रण। आपको बहुत बहुत बधाई!!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया दोनों नवगीत...बहुत-बहुत बधाई रघुबीर जी।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया नवगीत हैं| देख रहे हैं बूँदहीन बादल की आवाजाही....अति सुंदर भाव हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteदोनों गीत बहुत सरस । हार्दिक बधाई रघुवीर जी को ।
ReplyDeleteसुंदर कविता
ReplyDeleteदोनों गीत बहुत सुन्दर....हार्दिक बधाई रघुवीर जी !!
ReplyDeleteदोनों नवगीत बहुत अच्छे लगे, बहुत बधाई
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