1-सूनी घाटियों में
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
मैं सूनी घाटियों में
प्यास से व्याकुल
हिरना -सा फिरा हूँ।
वनखण्ड की आग में
चारों तरफ से
मैं घिरा हूँ।
कहाँ
तुम ! मुझको बचा लो!
अपने
सीने से लगा लो
मैं
तुम्हारी बाँसुरी का गीत हूँ।
स्वप्न तक में खोजते ही
रात बीती
चूमते ही रह गए
प्यासे अधर माथा
तुम्हारा।
प्यासे नयन
हर पल तुम्हीं को
ढूँढते
चूम पलकें
प्यास ने पाया किनारा।
नींद से मुझको जगा
लो
प्रलम्ब बाहों में
समा लो
मैं तुम्हारा बीज
मंत्र हूँ, गीत हूँ।
व्यथाएँ हैं तुम्हारी नभ जैसी
तुमसे मिलूँगा,
ताप सारे मैं हरूँगा
वक्त कम है ,
भागते व्याकुल समय का
अनुबन्ध अगले
जनम का भी करूँगा
जो बचा पल,वह तेरे लिए
जो रचा है गीतवह तेरे लिए।
स्वप्निल पलकों पर
सजा लो
हृदय में मुझको
छुपा लो
मैं तुम्हारे हर
जनम का मीत हूँ।
-0-( 16 अप्रैल 18)
-0-
2-एक खत खुद के नाम
सत्या शर्मा 'कीर्ति '
चित्र: सत्या शर्मा 'कीर्ति' |
जाने कितना ही गुजर गया
वक्त कि मैंने तो तुम्हें देखा ही नहीं
कहाँ खो गई तुम
कहाँ गई तुम्हारी वो
निश्छल मुस्कुराहटें
वो चंचल और अल्हड़पन
भरी आहटें
हर बात को समझने की
वो मासूम- सी ललक
हर मुश्किल दूर कर देने
की तुम्हारी वो पहल
दिखता नही वो रूप
अब तुम्हारा कहीं भी
गुम -सी हो गई हो
शायद खुद में ही
क्यों दबाने लगी हो
चाहतों को अपनी
क्यों करने लगी हो
नजरअंदाज ख्वाइशों को अपनी
क्यों अब बारिशों में
निकलने से डरती हो
क्यों अब शब्दों की भीड़ से
बचकर तुम चलती हो
क्यों करने लगी हो
हर काम सोच -सोचकर
क्यों इच्छाओं को मार
तुम अर्थहीन जीने लगी हो
क्यों नही इतराती हो
खुशियों पर अपनी
क्यों नही हर्षाती हो
उपलब्धियों पर अपनी
क्यों लगी हो डरने
हर छोटी- सी बात पर तुम
क्यों लगी ही घबराने
हर नई मुलाक़ात पर तुम
चलो फिर से जी लो ना
खुद के लिए भी
फिर से मुस्कुरालो न
अपने लिए भी
कभी पीठ थपथपालो
अपनी अच्छाइयों पर भी
कभी देदो शाबाशी
अपने मन के सच्चाइयों पर भी
चलो फिर मिलते हैं
अपना भी ख्याल रखना
आँखों में सपने और
दिल में खुशियाँ संभाल रखना ।।।
सिर्फ तुम्हारी
वजूद!
आदरणीय काम्बोज जी एवं सत्या की की सुंदर रचनाओं हेतु रचनाकार द्वय को बधाई।
ReplyDeleteसादर आभार कविता जी
Deleteकहाँ तुम ! मुझको बचा लो!
ReplyDeleteअपने सीने से लगा लो
मैं तुम्हारी बाँसुरी का गीत हूँ।
वाह, बहुत सहज सुंदर अभिव्यक्ति।
क्यों अब बारिशों में
ReplyDeleteनिकलने से डरती हो
क्यों अब शब्दों की भीड़ से
बचकर तुम चलती हो
क्यों करने लगी हो
हर काम सोच -सोचकर
क्यों इच्छाओं को मार
तुम अर्थहीन जीने लगी हो
क्यों नही इतराती हो
खुशियों पर अपनी
क्यों नही हर्षाती हो
उपलब्धियों पर अपनी
क्यों लगी हो डरने
हर छोटी- सी बात पर तुम
क्यों लगी ही घबराने
हर नई मुलाक़ात पर तुम
उफ़्फ़स!! कितने अनुत्तरित सवाल हैं।
बधाई।
दिल से धन्यवाद अनीता जी आपने मेरी कविता को पसन्द किया ।
Deleteभाई कम्बोज जी एवं सत्या जी की रचनाओं में हृदय की आवाज़ है | सुंदर -सीधे शब्दों से मोती बिखर रहे हैं | भावों में एक नवीन सजीवता और मृदुल कोमलता है | हृदय से निकलनेवाली रचनाओं को पढकर पाठक को ऐसे भाव व्यक्त करने की उत्कंठा होती | बहुत सुंदर भावों के लिए दोनों रचनाकरों को साधुवाद ! श्याम त्रिपथ -हिन्दी चेतना
ReplyDeleteहृदय से आभारी हूँ आदरणीय सर आपने मेरी कविता को पसन्द किया ।
Deleteसादर
हृदय से आभारी हूँ आदरणीय भैया जी आपने मेरी कविता को अपनी रचना के साथ स्थान दिया बहुत बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteसादर
आ.हिमांशु भाई की कविता "सूनी घाटियों में " बहुत भावप्रणव अभिव्यक्ति, सत्या जी की "एक ख़त ख़ुद के नाम " सुन्दर उद्गार । सुन्दर काव्य रचनाओं के लिये आप दोनों को खूब बधाई ।
ReplyDeleteमैं तुम्हारी बाँसुरी का गीत हूँ, बहुत ही सुन्दर गीत है। अादरणीय रामेश्वर जी एवं सत्या जी को सुन्दर एवं भावपूर्ण रचनाअों के लिये बहुत बहुत बधाई ।
ReplyDeleteबहुत भावप्रवण रचनाएँ हैं दोनों ही, हृदय की गहराइयों से निकली !
ReplyDeleteदोनों रचनाकारों को हार्दिक बधाई 💐
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ReplyDeletebahut bhavpurn abhivaykti meri hardik badhai don rachnakaron ko...
ReplyDeleteआदरणीय भैया जी ,प्रिय सत्या जी सुंदर भावपूर्ण रचनाओं के लिए हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteवाह! दोनों कविताएँ अत्यंत भावपूर्ण, गहन एवं हृदयस्पर्शी हैं
ReplyDeleteआदरणीय भैया जी तथा सत्या जी को इस सुंदर सृजन हेतु हार्दिक बधाई!
~सादर
अनिता ललित
बहुत ही सुंदर भावपूर्ण दोनों रचनाएँ..आ. भाई काम्बोज जी तथा सत्या जी को हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteबहुत मार्मिक रचना आदरणीय रामेश्वर जी... भवुक करती....
ReplyDeleteबहुत गम्भीर रचना सत्या जी
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई
वाह !!आदरणीय सर!सहज अभिव्यक्ति का अनुपम उदाहरण!! मन को भीतर तक बांधने वाला सृजन!नमन
ReplyDeleteआदरणीया सखी सत्या जी ,आपका सृजन नारी मन की परतें खोलता हृदयस्पर्शी है।नमन!
ReplyDeleteदोनों रचनाएँ ही बहुत सुन्दर ,भावपूर्ण तथा गहन भाव लिए हैं दोनों रचनाकारों को हृदय तल से नमन !!
ReplyDeleteदोनों रचनाएँ बहुत ही उत्कृष्ट एवम भावपूर्ण, गहनता लिए हुए आ0 भैया एवम आ0 सत्या जी को हार्दिक बधाई संग सादर नमन...🙏🙏
ReplyDeleteआत्मा तक को झिंझोड़ कर जो विचलित कर दे, ऐसी व्याकुलता है आदरणीय काम्बोज जी की रचना में...| बरबस ये पीड़ा दिल की गहराइयों में उतर जाती है |
ReplyDeleteसत्या जी, जाने कितनो के दिलों में दबी बात को आपने जुबान दे दी...|
आप दोनों को ही मेरी हार्दिक बधाई...|
दोनों रचनाएँ मन की अतल गहराइयों से निकलकर शब्दों में ढल गई है. गज़ब के भाव हैं.
ReplyDeleteमन को गहरे छू गई काम्बोज भाई की हर एक पंक्ति.
काम्बोज भाई और सत्या जी को बधाई.
दोनों रचनाएँ ही बहुत सुन्दर और भावपूर्ण। दोनों रचनाकारों की लेखनी को नमन।
ReplyDeleteदोनों रचनाएँ ही बहुत सुन्दर और भावपूर्ण। दोनों रचनाकारों की लेखनी को नमन।
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