पथ के साथी

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Thursday, July 26, 2018

832


1-डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा
1
अभिमंत्रित
मुग्ध-मुग्ध मन
मगन हो गई,
लो आज धरती
गगन हो गई ।
2
दूर क्षितिज में
करता वंदन
नभ नित
साँझ-सकारे
प्रतिपूजन में
धर कर दीप धरा भी
मिलती बाँह पसारे !
3
मौन भावों के
जब उन्होंने
अनुवाद कर दिए,
किसी ने भरा प्रेम
किसी ने उनमें
आँसू भर दिए।
4
तरंगायित है
आज वो
ऐसी तरंगों से
भर देगा जग को
प्यार भरे रंगों से 
-०-

Wednesday, April 11, 2018

815


1-डॅा.ज्योत्स्ना शर्मा
1
तुमसे उजियारा है
गीत मधुर होगा
जब मुखड़ा प्यारा है।
2
चन्दन है, पानी है
शीतल, पावन -सी
 तस्वीर बनानी है।
3
कुछ नेह भरा रख दो
मन के मन्दिर में
तुम धूप जरा रख दो ।
-0-
मचल रही घनघोर घटा सी नेह सुधा बरसाने को ।
पिहुँ प्यासे चातक बन आना मन मेरा बहलाने को।

हुआ बावरा मन बंजारा दहक रहा मन बंजर है ।
मन आहत चाहत में तेरी व्याकुलता का मंज़र है
पल दो पल को ही आजाते यूँ ही तुम भरमाने को
पिहुँ प्यासे चातक बन आना मन मेरा बहलाने को।

प्रणय-ग्रन्थ नयनो में मेरे खुद नयनों में पढ़ लेना
लेकर अलिंगन मे मुझको खुद को मुझ में गढ़ लेना ।
प्रीति-महक पुरवाई लाई जग सारा महकाने को।
पिहुँ प्यासे चातक बन आना मन मेरा बहलाने को। 

मैंने सार लिया है साजन खंजन से नैनों अंजन।
आकर देखो खुद में सिमटी अनहद प्रियतम की "गुंजन"
ये जीवन अनबूझ पहेली आजाओ सुलझाने को ।
पिहुँ प्यासे चातक बन आना मन मेरा बहलाने को।
अनहद गुंजन 

Wednesday, March 21, 2018

809-काव्य -भूमिकाएँ


एक पाठक के तौर पर मैंने कुछ पुस्तकों की भूमिकाएँ लिखी हैं। उनके लिंक नीचे दिए गए हैं।   आशा करता हूँ कि जब भी समय मिले , ज़रूर पढ़ेंगे ताकि सृजन के समय जो कुछ अच्छा हो उसे ग्रहण किया जा सके। मेरे ये लेख  उबाऊ हो सकते हैं, फिर भी पढ़िएगा-  


Monday, January 1, 2018

786

1-नवगीत
रिश्ते बेनाम करे
डॉ.शिवजी श्रीवास्तव

आभासी दुनिया
सारे रिश्ते बेनाम करे
नेह भरे सम्बोधन,
बीते कल के नाम करे।

गली गली में बच्चे बैठे
इंटरनेट चलाते
दिन भर चैटिंग- वैटिंग करते
जाने क्या बतियाते,
रिश्तों की मर्यादा का
नया व्याकरण पढ़कर
मम्मी-पापा,दादी-बाबा,
सबको फ्रेंड बनाते,

कौन छुए अब चरण किसी के
कौन प्रणाम करे।

हरिया के बेटे- बेटी भी
हाट -बज़ार न जाते,
बैठे ही बैठे घर मे
सब ऑनलाइन मँगाते,
चना-चबैना लइया सत्तू
लगता उनको फीका
बड़े शौक से बैठ मॉल में
पिज्जा बर्गर खाते।

हाड़ तोड़ता हरिया दिन दिन
कर्जा कौन भरे।
-0-






                                          [उपर्युक्त फोटो-रश्मि शर्मा , राँची के सौजन्य से]                                                               

Saturday, November 18, 2017

778

दो ग़ज़लें : डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
1
चोट पर चोट देकर रुलाया गया
जब न रोए तो पत्थर बताया गया ।

हिचकियाँ कह रही हैं कि तुमसे हमें
अब तलक भी न साथी ! भुलाया गया ।

लम्हे तर को तरसती रही ज़िंदगी
वक़्ते रूखसत पे दरिया बहाया गया 

ऐसे छोड़ा कि ताज़िंदगी चाहकर
फिर न आवाज़ देकर बुलाया गया।

आदतें इस क़दर पक गईं देखिए
आँख रोने लगीं जब हँसाया गया ।

यूँ निखर आई मैं ओ मेरे संगज़र !
मुझको इतनी दफ़ा आज़माया गया।
 2
कहाँ मुमकिन हमेशा रोक कर रखना बहारों को
बनाया बाग़ में रब ने गुलों के संग ख़ारों को ।

दबी रहने दे ऐसे छेड़ मत चिनगारियाँ हमदम
कहीं ये बात हो जाए न भड़काना शरारों को

किसी ने चाँद टाँका है जबीं पे आज देखो तो
निगाहें छू न पाईं थीं अभी मेरी सितारों को 
             
तुम्हें  सँभाल कर रखने हैं रिश्ते ,नींव ,दीवारें 

बड़ा मुश्किल है फिर भरना बहुत गहरी दरारों को ।

दिया था इल्म उसने तो बसर हो ज़िंदगी कैसे
समझ पाए न हम देखो खुदी उसके इशारों को । 

-0-

Monday, November 13, 2017

777

वहीं करतार रहता है
-कवि राजेश पुरोहित,भवानीमंडी

गरीबों में ईश्वर जिसने खोजा है।
असल में वहीं करतार रहता है।।

योजनाओं का लाभ मिले उन्हें।
जो असल में हकदार रहता है।।

मेरे शहर में डेंगू ने पैर पसारे है।
हर कोई अब  बीमार रहता है।।

घरों में अपनत्व नहीं रहा जबसे।
हर कोई यहाँ  लाचार रहता है।।

करूँ किस तरह प्यार की बातें।
करना जिसमें इजहार रहता है।।

मतलब परस्ती में जो जीते यहाँ।
मेरी नज़र में धिक्कार रहता है।।

वतन की खा राग दुश्मन के गाते।
वो शख्स अक्सर गद्दार रहता है।।

पाक तेरी हरकत घिनोनी होती है।
तेरे भीतर छुपा मक्कार रहता है।।

बुजुर्गों की जहाँ खिदमत होती है।
पुरोहितवही  परिवार रहता है।।

-0- 123rkpurohit@gmail.com

Friday, June 16, 2017

746


1-माटी का घट
-कमला निखुर्पा
1
माटी का संसार है ,खेल सके तो खेल।
बाजी रब के हाथ है,कर ले सबसे मेल ।
2
यह घट काचा ही रहा,तपा न दुख की आँच।
परहित में  जो घट तपे,नित पाए सुख साँच।
-0-
2-बूँद और बादल 
-डॉ ज्योत्स्ना शर्मा
1
हुआ बिछोड़ा बूँद से ,बादल बड़ा उदास ,
बिन तेरे मैं क्या सखी , अब क्या मेरे पास
2
जग नश्वर ,मिटना बदा ,कभी न मिटता प्यार ।

बरसूँ बनकर मैं ख़ुशी तुम लो दुआ अपार !

Tuesday, May 2, 2017

733

1-बात भला क्या करनी 

डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा

छीन रहे हैं जो बंदूक़ें , घर के पहरेदारों से
 बात भला क्या करनी हमको इन कपटी ,ग़द्दारों से ।

प्रेम-मुहब्बत से नफ़रत की
खाई पाट लेना अच्छा
लेकिन मारें ,फिर जो पत्थर
हाथ काट लेना अच्छा
आती है आवाज़ वतन के
ज़र्रों से , मीनारों से .....बात भला

सहना,सहना ,सह ना कह दो
सहने की भी सीमा है
हुई शहादत , अरे मनीषी !
स्वर क्यों धीमा--धीमा है
चमन गुलों से हुआ है घायल
बचते-बचते ख़ारों से ...बात भला ..

घर में खाते ,गुर्राते हैं
जब-तब हुंकारें भरते
आतंकी हरकत पर चुप हैं
ख़ौफ़ है क्या, क्यों कर डरते
उन्मादों का ज़हर बाँटते
खुद दिखते बीमारों से .. भला बात ..

रंगे सियारों ! सबने तुमको
ठीक-ठीक पहचान लिया
हटा नकाबें ,छद्म तुम्हारी ,
हर मंशा को जान लिया
छीनों सारे हक़ भारत में
इन झूठे मक्कारों से ...बात भला क्या ..
-0-     29.4.17

-0-
2-क्षणिकाएँ
ज्योत्स्ना  प्रदीप 

1- कसौटी 

 ये रात की
 कैसी कसौटी है?
 एक तो बिन चाँद के
... उस पर
 आँसुओं में
 नहाकर लौटी है!!! 

2 -बदलाव

 वो दरख़्त 
धीरे - धीरे
 ठूँठ में बदल गया 
शायद 
उसे भी कोई छल गया!!

 3- अहसान 

 ये अहसान 
क्या कम है
आज भी .... 
उसकी बाज़ू
 मेरे ही आँसुओं से 
नम है!! 

4- शर्म

विषैले सर्प 
शर्म से
 कम नज़र आने लगे
 देखकर
 उन लोगो को
 जो 
खुद ही
 विष उगाने लगे

5- दरारें 

 सुनाई ही नहीं
 दिखाई भी देता है 
उन दीवारों को
देखा है कभी 
उनमें
दुःख से पड़ी दरारों को?

6- आकार

 एक पत्थर भी
 सह लेता है
 नुकीली छैनी का प्रहार
 वो चुप है
 शायद चाहता है
 एक नया आकार ।

-0-

Sunday, April 9, 2017

725

ताँका :डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा
1
घिरी घटाएँ
हो गया था आकाश
गहरा काला
संकल्पों के सूरज
देते रहे उजाला ।
2
पवन संग
नाच उठीं पत्तियाँ
कली मुस्काई
सुनहरा झूमर
पहन कौन आई ?
3
डोरी से बँधी
पतंग हूँ मैं प्यारी
ऊँचाइयों पे
दिखो न दिखो तुम
पर लीला तुम्हारी ।
-0-