1-रंग रहें बिखरे
भावना सक्सैना
आओ हिलमिल इस मौसम में
रंगों का आह्वान करें।
मुस्कानों के इंद्रधनुष हों
ओस कणों से छनती किरणें,
रोशनी हो हर ओर जहाँ में
रंग रहें चहुँ दिक् बिखरे।
ज्ञान, प्रेम, आनंद का पीला
बरबस सब पर रहे चढ़ा,
आलोकित हर एक हृदय हो
दिन -दिन जीवन जा निखरे।
नीली धरती, नीला सागर
नीले विष्णु, कृष्ण और राम,
शुद्धता हो हर ओर समाहित
अम्बर नीला, नील निरख रे।
पीले में घुल कर नीला
समृद्धि की लाये बहार
हरी भरी धरती हो जाए
दिल सोने से रहें खरे।
ओज वीरता पावनता
रंग केसरिया संग छिड़कें
देश प्रेम रग रग में बहे
बहे लहू परवाह न करे।
लाल बैंगनी आसमानी के
अपने नूतन अंदाज़ नए
आठवाँ रंग खुशियों का बिखेरें
आज प्रतिज्ञा सब ये करें।
-0-
2-एक
छोटी -सी कविता
डा.सुरेन्द्र वर्मा
स्मृति के रंगीन टुकड़ों को जोड़ कर
एक साफा बनाया था
सिर पर सजाने के लिए.
अनागत में विचरते पलों को
समेटकर
एक चोगा बनाया था
लपेटने के लिए .
लेकिन
धोखा खा गया!
गत और अनागत
कुछ भी काम न आया
वर्त्तमान था
वह भी गुज़र गया !
-0-
वाह भावना जी---आठवां रंग खुशियों का---बहुत खूब लिखा। बधाई।
ReplyDeleteवाह सुरेन्द्र जी स्मृतियों से सजी सुंदर कविता। बधाई।
बहुत खूब भावना जी ,,,बढाई
ReplyDeleteसुरेन्द्र जी लआजवाब कवित्त बढाई !
मनभावन रंगों की बहार...बहुत ख़ूब ! आठवाँ रंग तो सबसे प्यारा, सबसे न्यारा ...
ReplyDeleteबहुत-बहुत बधाई भावना जी... इस सुंदर प्रस्तुति के लिए !
भूत एवं भविष्य कब साथ देते हैं, वर्तमान से ही तो सब सम्भव होता है, सम्बद्ध होता है ! परन्तु फिर भी, स्मृतियों के बिना जीवन भी कैसा जीवन...
बहुत सुंदर प्रस्तुति आदरणीय सुरेन्द्र सर जी !
आपको एवं आपकी लेखनी को नमन !
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
~सादर
अनिता ललित
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ReplyDeleteजीवन की सच्चाई को बयान करती सुंदर प्रस्तुति सुरेन्द्र वर्मा जी।
ReplyDeleteमेरी रचना को यहां रखने के लिए काम्बोज भाईसाहब का हृदय से आभार।
अनीता मंडा जी, गुंजन जी, अनीता ललित जी पसन्द करने के लिए बहुत आभार।
बहुत सुंदर प्रस्तुति आदरणीय सुरेन्द्र जी !भावना जी
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनाओं के साथ
ज्योत्स्ना प्रदीप
भावना जी सुन्दर भावों से सजी कविता के लिए बधाई। सुरेन्द्र जी गत अनागत कुछ भी काम न आया ....बहुत सुन्दर रचा है शुभकामनाएं और बधाई ।
ReplyDeleteरंगों की मनभावन दुनिया ...भावना जी बहुत सुन्दर कविता ! हार्दिक बधाई स्वीकारें !!
ReplyDeleteगत, अनागत और वर्त्तमान के चिंतन पर सुन्दर प्रस्तुति ! बहुत बधाई आदरणीय डॉ. वर्मा जी ..सादर नमन !!
dono hi rachnayen bahut achhi lagi kahin rang kahi dhokhe meri shubhkamnayen...
ReplyDeleteमनभावन रंगों का मेला। बहुत सुंदर कविता भावनाजी।
ReplyDeleteसुरेन्द्र जी जीवन का सत्य प्रस्तुत करती सुंदर कविता।
आप दोनों को बधाई।
ओज वीरता पावनता
ReplyDeleteरंग केसरिया संग छिड़कें
देश प्रेम रग रग में बहे
बहे लहू परवाह न करे।
भावना जी बहुत सुन्दर कविता !
स्मृति के रंगीन टुकड़ों को जोड़ कर
ReplyDeleteएक साफा बनाया था बहुत सुन्दर डा.सुरेन्द्र वर्मा जी
दोनों रचनाएँ बहुत उम्दा....डा० सुरेन्द्र वर्मा जी, भावना जी बहुत शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteसारे इन्द्रधनुषी रंगों का मेला लगा दिया भावना जी उस पर आठवाँ रंग खुशियों का भी जोड़ दिया ।कमाल किया अच्छा लगा बधाई स्वीकारे ।
ReplyDeleteसुरेंद्र वर्मा जी आप ने तीनों कालों की चर्चा की सही कहा हम गत अनागत के मकड़ जाल में फंस कर अपना वर्तमान गवाँ देते हैं ।मानव प्रवृति ही ऐसी है ।भूत को गाँठ बांध लेते हैं भविष्य के स्वप्न संजोतें हैं ।वर्तमान हाथ से खिसक जाता है उसे भी जी नही पातें । इतना बढिया कम शब्दों में लिखने के लिये ।बधाई और शुभ कामनायें ।
खुशी का यह आठवाँ रंग हमेशा सब तरफ बिखरता रहे, इसी शुभकामना के साथ इस सुन्दर रचना के लिए बहुत बधाई भावना जी...|
ReplyDeleteसुरेन्द्र जी, एक सार्थक बात को बेहद कम शब्दों में प्रभावशाली ढंग से कहने के लिए बहुत बधाई...|