रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
जो अन्न यहाँ का खाते हैं,
गुण गद्दारों के गाते हैं
जो जमे हमारे ही घर में
हमको ही आँख दिखाते हैं ।
भले आदमी का बेटा जब
सीमा पर जान गवाँता
है
घर में आग लगाने वाला
तब हम पर ही
गुर्राता है ।
खुले आम जो कहें देश को-
‘तुमको टुकड़ों में
बाँटेंगे।’
कान खोलकर के सुन
लेना-
‘तुमको टुकड़ों में
काटेंगे।’
जो विषधर पले आस्तीन में
अब उन्हीं के फन कुचलने हैं
हर बस्ती हर चौराहे पर
भारत के दुश्मन जलने
हैं ।
देश की खातिर वीर जवान
सीमा पर जान लुटाते हैं
उनके बलिदानों को भूले
ये श्वान यहाँ गुर्राते हैं ।
हमको है कसम तिरंगे की
जो हमको आँख दिखाएँगे
साँस हमारी जब तक बाकी
वे यमपुर भेजे
जाएँगे।
-0-
24 फ़रवरी , 2016 ( 12-50)
वीर रस से परिपूर्ण कविता रग रग में जोश भरने वाली काश देश का हर वीर जवान ऐसा जजवा लिये मातृभूमि के लिये जाग्रत रहे ।बहुत सुन्दर कविता रामेश्वर जी । हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteसबसे बड़े दुर्भाग्य की बात तो यही है कि हमको दुश्मनों से उतना ख़तरा नहीं है, जितना अपने ही घर में मौजूद ऐसे आस्तीन के सांपों से है...| बहुत ओजपूर्ण रचना...ऐसी ललकार की आज बहुत ज़रुरत है...|
ReplyDeleteबहुत सटीक, देश से प्रेम करने वाले सभी जन की भावना व्यक्त करती कविता।
ReplyDeleteबहुत ओजस्वी कविता भैया जी ...नमन आपकी लेखनी को !
ReplyDeleteKamboj ji aapki ye rachna bahut sateek hai ek josh bhar jata hai man men padhte huye aapko anekon shubhkamnayen...yun hi likhte rahiye...
ReplyDeleteअत्यंत भावपूर्ण, प्रेरक, सार्थक एवं सामयिक कविता !
ReplyDeleteइस प्रभावशाली प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक बधाई भैया जी!!
नमन आपको एवं आपकी लेखनी को !!!
~सादर
अनिता ललित
बहुत ओजपूर्ण और सामयिक!
ReplyDeleteकाश कि हम सब ऐसा ही सोच पाते..
शानदार कविता के लिए आपको प्रणाम, काम्बोज सर.
देशभक्ति से भरी, समयोचित अत्यंत ओजस्वी कविता है , भाई जी आपके जोश से भरे मन से निकले शब्द देशवासियों को देश के गद्दारों से सचेत कराते हुए उनके घातक वारों को एकजुट हो निष्फल करने की प्रेरणा दे रहे हैं ,काश ऐसा सम्भव हो सके|यहाँ आस्तीन के साँप अनगिनत हैं, सँपोले भी तो सर उठाने को खड़े हैं !कामना करती हूँ आपकी लेखनी जन -जन में चेतना भर दे,प्रजातांत्रिक -समन्वयवादी विचारधारा वाले देश भारत को आतंकवादी कुचालों से बचाया जा सके |
ReplyDeleteपुष्पा मेहरा
समयानुकूल एवं सार्थक ... सुन्दर रचना ।
ReplyDeleteभले आदमी का बेटा जब
ReplyDeleteसीमा पर जान गवाँता है
घर में आग लगाने वाला
तब हम पर ही गुर्राता है ।
बहुत सुन्दर भैया जी !
वीर रस में डूबी एक अत्यंत भावपूर्ण प्रेरक एवं सामयिक कविता ! ऐसी ललकार की आज बहुत ज़रुरत है समाज में। ..........हृदय से . नमन आपको एवं आपकी सोच को !
सामयिक, सटीक व प्रेरक रचना। नमन आपकी लेखनी को।
ReplyDeleteआप सबका हृदय से आभार !!
ReplyDeleteसमकालीन, सारगर्भित, ओजपूर्ण रचना
ReplyDeleteबधायी एवं शुभकामनाएं
सटीक, सार गर्भित, समकालीन रचना
ReplyDeleteबधाई एवं शुभकामना
वीर रस से परिपूर्ण कविता है । नया जोश भर ती है आपको हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteहर सच्चे भारतीय की अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteइस कविता के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद 'हिमाँशु' जी।
सादर नमन
प्रेरक सामयिक रचना। बधाई।
ReplyDeleteओज रस में गुंथी ,मन के ज्वार रूपी मोतियों ने आम जन मानस में हुंकार भरने का भरपूर दायित्व निभाया है | आपको अपनी इस देशभक्ति रचना के लिए सहृदय साधुवाद आदरणीय सर जी |
ReplyDeleteआप सबका हृदय से आभार !
ReplyDeleteओजपूर्ण, सामवर्ती रचना....हार्दिक बधाई आपको।
ReplyDeleteराष्ट्रप्रेम से सिक्त ओजपूर्ण कविता
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