पथ के साथी

Friday, August 29, 2014

एक कविता की व्यथा



स्वराज सिंह

हे श्रोताओ ! मैं  कविता   बोल रही  हूँ
आज मैं तुमसे अपनी व्यथा खोल रही हूँ
पहले मुझे विभिन्न छन्दों में रचा जाता था
हर कवि काव्यशास्त्र   का ज्ञाता  था
आरोह-अवरोह का मुझसे ही तो नाता था
भाषा-विज्ञान का पूरा ध्यान रखा जाता था
आज के तथाकथित कवियों ने ऐसा किया हैं
जिससे   मेरा   जीवन  दुश्वार   हुआ है
इनके कारण ही आज मैं भाव-शून्य हो गई हूँ
न जाने कहाँ खो गई हूँ
मैं इनकी वासनाओं को व्यक्त करने का माध्यम रह गई हूँ
आज मेरे सतीत्व पर ही संकट मँडराने लगा है
बिना खोंपड़ी का आदमी भी
कविता में ही दण्ड-बैठक लगाने लगा है ।
हे श्रोताओ ! क्या तुमको भी  नहीं  यह पता ?
कि मैं कहानी हूँ ,निबन्ध  हूँ या हूँ कविता ?
न कोई रस  का ध्यान रखता है, न छंद  का
नाता नहीं अलंकारों से ,न पता है बंद का
यति , गति  से दूर दुर्गति झेल रही  हूँ
मैं हर क्षण इन कवियों द्वारा सताई जा रही हूँ
मैं निरंतर इनकी , मनमानी और मूर्खता का
 शिकार हुई हूँ
मैं मदद के लिए कब से तुम्हें पुकार रही हूँ?
तथाकथित कवियों को दुत्कार रही हूँ
मेरी मदद के लिए कोई तो आगे आओ
दु:शासन के हाथों  मुझ अबला का चीरहरण होने से बचाओ
यदि तुमसे मेरे लिए और कुछ नहीं  है होता
कम से कम दाद देकर
ऐसे कवियों का होंसला तो न बढ़ाओ
-0-
 हिन्दी -प्रवक्ता , सर्वोदय विद्यालय,  रोहिणी सेक्टर-16 ,नई दिल्ली-110085

7 comments:

  1. स्वराज सिंह जी को खुश होना चाहिए कि उनकी कविता भी अपनी व्यथा कथा खुद उसी अंदाज में बयां कर रही है जिस अंदाज से उसे अन्यथा परेशानी है। जो पहले होता था, जरूरी नहीं वही किया जाए। इतना जरूर है जो भी किया जाए विवेक सम्मत हो और समाज को स्वस्थ बनाए, रुग्ण नहीं। कविता के माध्यम से अपने विचारों के सम्प्रेषण के लिए स्वराज सिंह जी, आपको हार्दिक बधाई !

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    1. यह व्यंग्य कविता है ।यह नई कविता या मुक्तछन्द कविता का विरोध नहीं है , बल्कि उनका विरोध है जो कुछ भी ऊल-जलूल बातें कविता के नाम पर परोस रहे हैं । मुक्त छन्द में लय , यति गति, अलंकार , रस आदि होते ही हैं । जो कविता इन सबसे शून्य है ,कविता में निहित इस व्यंग्य पर ध्यान देना ज़रूरी है-
      बिना खोंपड़ी का आदमी भी
      कविता में ही दण्ड-बैठक लगाने लगा है ।
      और
      यति , गति से दूर दुर्गति झेल रही हूँ।
      निराला की कविता में यति , गति , लय सब है -
      1-वह तोड़ती पत्थर, 2- बादल राग, 3-कुत्ता भौंकने लगा ,4- जूही की कली आदि कविताएँ बहुत सुन्दर उदाहरण हैं। राम की शक्ति पूजा तो उनकी भाषा-सामर्थ्य और लय आदि का अनुपम उदाहारण है। अज्ञेय, भवानी प्रसाद मिश्र, धूमिल आदि की कविताएँ भी उत्कृष्ट काव्य का उदाहरण हैं।

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  2. स्वराज सिंह जी की कविता बहुत अच्छी है । लेकिन व्यक्तिगत तौर पर मेरा ऐसा मानना है कि छंद मुक्त कवितायें, काव्य रचना के नवीन परिधान जैसी हैं अौर समय के साथ साथ नये प्रयोग करने मे कोई बुराई भी नहीं है ।

    वैसै देखा जाये तो छंद मुक्त कविताअों का दौर तो अादरणीय निराला जी के समय भी था अौर उनकी रचनाअों की उत्कृष्टता तो सर्वमान्य है । काव्य रचना तो उन्मुक्त नदी सी है जिसे बाँधा नहीं जा सकता अौर बाँधा भी नहीं जाना चाहिये । हाँ ये बात जरूर है कि हर बात मे मर्यादा की रेखा का मान जरूर रखा जाना चाहिये ।

    सादर
    मंजु मिश्रा

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    1. सुंदर व्यंग्यात्मक रचना के लिए स्वराज जी बधाई .

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  3. कविता के दर्द की गहरी अभिव्यक्ति |

    सादर
    ज्योत्स्ना शर्मा

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  4. vyatha jab kavita ki ho....to katha ban jaati hai...dard bhari katha.....sikhane ka hausla sajeev rakhti hai....abhvyakti nai sooch ke saath....bahut sunder....karbaddh naman ke saath badhai....

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  5. कविता की ही नहीं, इस तरह की हर विधा की भयानक दुर्गति हो जाती है कुछ आत्म-मुग्ध...तथाकथित महान कवियों की वजह से...| बहुत सार्थक रचना...| हार्दिक बधाई...|

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