1-तीन प्रश्न
रेखा रोहतगी
1
प्रश्न होता है
पहला कदम
उत्तर-अनुगमन
और प्रत्युत्तर-
वहीं रुक जाना
मेरा मौन रह जाना
कुछ भी न कहना
मेरी स्वीकृत
पराजय नहीं
तुष्टि भी नहीं
सिर्फ़, मेरा आगे बढ़ना है।
2-
कवि
वह शिल्पी है
जो शब्दों से कविता की अट्टालिका
खडी करता है
फिर उसमें-
किसी के कर्णपुट
किसी के नयन
किसी का हृदय
बंदी बनाकर रखता है।
3-
दैदीप्यमान
प्रकाशपुंज
ज्योतिस्वरूप
रश्मिरथी -
सूर्य
जिसकी
उपस्थिति मात्र ही
समूचे अंधकार को निगल लेती है
उस सूर्य के सम्पूर्ण अस्तित्व को
मेरी इन छोटी-सी आँखों ने
निरस्त कर दिया
जो खुली ही नहीं
अँधेरा समेटे मुँदी ही रहीं
-0-
2- खुद
से सवाल
सुभाष
लखेड़ा
मोटे पोथों में हम सभी रात - दिन
न जाने क्यों अपना सर खपाते हैं ?
एक उम्र गुजर जाने के बाद भी हम
अपने को ही कहाँ समझ पाते हैं ?
जिन्हें ताउम्र मानते रहे करीबी
वे अब क्यों दूर नजर आते हैं ?
सोच - समझ कर कभी जो किया
उसे लेकर हम अब क्यों पछताते हैं ?
यूँ सवाल सिर्फ एक नहीं, अनेक हैं
हम उन सभी को हल कहाँ कर पाते हैं ?
अपने को बुद्धिमान साबित करने हेतु
हम अक्सर दूसरों को क्यों दोहराते हैं ?
हम से बड़ा मूर्ख
यहाँ कोई दूसरा नहीं
इस सच्चाई को हम भूल क्यों जाते हैं ?
-0-
अनुपम हैं तीनों रचनाएँ आदरणीया रेखा जी ....आपने हमारे नयन और हृदय को बंदी बना कर रख लिया है ....फिर भी कहना है ..आभार ...बधाई !!
ReplyDeleteजीवन के यथार्थ को बहुत सुन्दरता से कहा आदरणीय सुभाष लखेड़ा जी ..
सादर नमन के साथ
ज्योत्स्ना शर्मा
jyoti - kalash
ReplyDeleteujala dete shabd
bane prerana
sabhar :
Rekha Rohatgi
अच्छी प्रस्तुति !
ReplyDeletekarbadh naman rekha ji v subhashji ko..teen prashan mein rekha ji ne kavi ko badi hi khoobsurti se paribhashit kiya hai ....anupam hai saath hi lakhera ji aaj ke kamzoor manav ki sachchaie ko.bade hi sahaj tatha sunder dhang se prastut kiya hai .....aap dono ko man se bahut -bahut badhai.
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