तीन कविताएँ
-मंजुल भटनागर
1
पीपल तू जीवंत है
सदियों से
देता प्राण वायु
जग उपकृत है.
तू है सृष्टि- बीज
रहेगा मेरे बाद भी
तू अमरत्व है
मेरी रचना की अंतर्दृष्टि दे
स्निग्ध संवेदना भरता.
मूक सवांद बन
लहलहाता किसलय
विश्व प्रागंण में
तू बोधिसत्व बन बुद्धत्व
रचता बिखेरता लावण्य.
-0-
2
पीपल मन हारे
कुछ पत्ते झरे
कुछ शेष रहे सहारे
घनी छाँव ओढ़ती
छिप रही धूप भी
सूरज निहारे
पीपल मन हारे .
भोर हुए कोंपल खिली
ओस दमकी पात झरी
दूर श्याम श्वेत रंग
धूप किरण झाँक रही
खटोले पड़ गए पीपल द्वारे
हवा भी सील गई
खिलखिलाता बसंत प्यारे
पीपल मन हारे .
मधुमास छटा सौंधी
पीपल निहारता प्रेमी
पपीहे की मिलन चाह
मन ही मन भाँपता
प्रीतम की राह तके
आहटें जगा रही भाव कुछ न्यारे
पीपल मन हारे .
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3
पीपल की फुनगी पर
नीलकंठ का जोड़ा
जब नीड़ नया बुनता है तृण से
तब भोर उगे पीपल अक्सर बातें करता है मुझसे.
लहरों सी उठती गिरती डाली जब
सन्देश क्षितिज का
लाती है
पीपल के पत्तो की शहनाई
बिसमिल्ला खाँ की याद दिला जाती
है
शाम ढले तोतों का झुण्ड
जब पत्तों में छिप जाता है
रोज सवेरे गुड़हल फल चख
दूर गगन उड़ जाता है
हुक्के की गुड गुड में, जब रोज चौपालें सजती है
बैठ उसी के नीचे महुआ
रोज एक कहानी गुनती है
सावन में जब झूले
पड़ते हैं
पींगों में , ख़्वाब रोज नए सजते हैं .
शाम ढले तब प्रेम कहीं जग जाता है ......
एक नई इबारत
पत्तों के झुरमुट पर लिख जाता है
तब पीपल अक्सर बातें करता है मुझसे
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मंजुल भटनागर जी की " सहज साहित्य " में पीपल से जुड़ी ये तीन कविताएँ उनके प्राकृतिक प्रेम की परिचायक हैं ।
ReplyDeleteइतनी सुंदर रचनाओं के लिए उन्हें हार्दिक बधाई !
धन्यवाद रामेश्वर जी .शुभ कामनाएं
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावपूर्ण कविताएं मंजुल जी बधाई !
ReplyDeleteपीपल के माध्यम से बहुत सारगर्भित बात कही है मंजुल जी...हार्दिक बधाई...।
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