डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा
मधुर-मधुर ये गाया करती ,
सुन्दर छंद सुनाया करती ।
तुम कान्हा हो तो मधुबन में ,
रसमय रास रचाया करती ।
शिवमय होकर पतित-पावनी ,
गंगा -सी बह जाया करती ।
राम ,रमा-पति कण्ठ लगाते ,
मुग्धा बहुत लजाया करती ।
चाहत थी जो तुम छू लेते ,
कलियों- सी महकाया करती ।
तुम बिन गीत-ग़ज़ल में कैसे ,
इतना रस बरसाया करती ।
अच्छा है ! तुम दर्द नहीं हो ,
वरना कलम रुलाया करती ।
अच्छा है ! तुम दर्द नहीं हो ,
ReplyDeleteवरना कलम रुलाया करती
वाह ! आखिर की इन पंक्तिओं ने तो कविता के सौंदर्य को चार चाँद लगा दिए…. इतनी सुन्दर कविता पढ़वाने के लिए सहज साहित्य का शत शत धन्यवाद !
मेरी पंक्तियों को यहाँ स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार भैया जी !
ReplyDeleteसादर
ज्योत्स्ना शर्मा
rachayita ne apane manobhavo.n ko anek roopo.n me .n dhalaa hai lekin dard se virakti chahi hai .kavita bahut kalpana purn hai. badhai
ReplyDelete.pushpa mehra.
अच्छा है ! तुम दर्द नहीं हो ,
ReplyDeleteवरना कलम रुलाया करती ।
सटीक ,सार्थक , सुन्दर सन्देश देती रचना
बधाई
वाह, बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ..
ReplyDeleteमन झूम उठा ज्योत्स्ना जी...इतनी रसभरी कविता पढ़कर ! :)
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर !
'अच्छा है तुम दर्द नहीं हो
वर्ण कलम रुलाया करती …' वाह! क्या कहने !
~सस्नेह
अनिता ललित
बहुत सुंदर रचना ....!!सरस प्रभावशाली ...!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव...
ReplyDeleteअच्छा है ! तुम दर्द नहीं हो ,
वरना कलम रुलाया करती ।
बहुत सुन्दर लयात्मक और पूर्णतया 'यती-गतिमय !
ReplyDeleteअच्छा है ! तुम दर्द नहीं हो , वरना कलम रुलाया करती . ----------- बहुत ही भाव पूर्ण पंक्तियाँ . ह्रदय को छू लेती है. बधाई !
ReplyDeletevaah jyotsna ji,aap ne bahut hi sunder kavita likhi hai,,,,man prasann ho utha
ReplyDeleteपंक्तियों को मिले आपके स्नेह और आशीर्वाद के लिए आप सभी के प्रति हृदय से आभारी हूँ |
ReplyDeleteसादर
ज्योत्स्ना शर्मा
अच्छा है ! तुम दर्द नहीं हो ,
ReplyDeleteवरना कलम रुलाया करती ।
बहुत सुन्दर...बधाई...|