ज्योत्स्ना प्रदीप, जलन्धर
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श्रीमती विमल शर्मा |
मैं
राधा न सही
मीरा न सही
पर क्या मुझे तुम्हारे
वंशी-स्वर सुनने का
कुछ हक नहीं ?
तुम तो
बाँस के खोखलेपन को भी
भर देते हो।
छिद्रों को भी तो
स्वर देते हो।
फिर मैं
इतनी खोखली भी नहीं
आओ !
वेणु समझकर ही
अधरों से लगा लो
साँसें भरकर तो देखो
शायद, मुझमें भी
कोई नव-स्वर
सुनाई दे।
-0-
कविता के साथ दी गई श्रीमती
विमल शर्मा (ज्योत्स्ना प्रदीप की माताश्री) जी की पेण्टिंग के लिए आभार !
साँसें भरकर तो देखो
ReplyDeleteशायद, मुझमें भी
कोई नव-स्वर सुनाई दे।
uf kitni sunder panktiyan bahut khoob
chitr to bahut hi sunder hai aap dono ko badhai
rachana
साँसें भरकर तो देखो
ReplyDeleteशायद, मुझमें भी
कोई नव-स्वर सुनाई दे।.....सुंदर अभिव्यक्ति....बधाई
वाह ज्योत्सना जी प्रेम की पराकाष्ठा दर्शाती ॥बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति है और पेंटिंग भी लाजवाब ...!!बधाई स्वीकारें .....!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर स्वर हैं आपकी कविता के ....बहुत बधाई ज्योत्स्ना प्रदीप जी
ReplyDeleteकविता की भावना को सहेजे चित्र भी बहुत मोहक है ...सादर नमन आदरणीया को !
सादर
ज्योत्स्ना शर्मा
बहुत सुन्दर कविता ! पेंटिंग भी बहुत सुन्दर .... कविता को पूर्ण करती हुई…
ReplyDeleteआपको हार्दिक बधाई !
सादर नमस्कार .... आदरणीया को !
~सादर
अनिता ललित
सुन्दर अभिव्यक्ति है .....पर हाँ......
ReplyDeleteखोखला बनना होता है,
वेणु बनने के लिए...
कान्हा के अधर लगने के लिए ,
चित्र और रचना दोनों बहुत सुन्दर है. ज्योत्स्ना जी और उनकी माता जी को बधाई.
ReplyDeleteप्रेरणात्मक रचना
ReplyDeleteबधाई
मुझे और मेरी माता श्री की पेंटिंग को यहा स्थान देने के लिये हिमांशु जी का हृदय से आभार।
ReplyDeleteआप सभी ने मेरे कविता और चित्र की प्रशंसा करके मेरा उत्साह वर्धन किया है,आप सभी का हृदय से आभार।
ReplyDeletekya baat hai jyotsna ji.....hum to aapki kavita k kayal hai...n aapki mataji ki painting bohot hi laajawaab hai !!!
ReplyDeleteदिल को छू गयी ये खूबसूरत पंक्तियाँ...साथ ही चित्र भी उतना ही मनमोहक है...| इन दोनों के लिए बहुत बहुत बधाई...|
ReplyDeleteप्रियंका
सुंदर चित्र के साथ बहुत ही सुंदर कविता......ज्योत्सना जी को बहुत-२ बधाई....
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