पथ के साथी

Sunday, September 8, 2013

तीन कविताएँ



        
कविता -  मैं ....?
पुष्पा मेहरा
 मैं क्षिति-
 माटी-तन ले-
 रूप-रूप डोलूँ ।

 मैं जल-
 निर्मल सरिता बन-
 तृषाकुल की तृषा बुझाऊँ
 पावन- गंगा सी बह कर
 हर-जन को निर्मल कर दूँ।

 मैं अग्नि-
 जठराग्नि तृप्त करना  चाहूँ,
 अगर बनना ही पड़े ज्वाला मुझको
 धू-धू जला -
 कुवासनाओं का जंगल राख करूँ।

 मैं नीलम-नभ-
 मुक्त-गगन पाना चाहूँ,
 ले पक्षियों से  पंख उधार
 बार-बार ऊँचे डोलूँ
 फिर-फिर धरती पर आऊँ- जाऊँ।

 मैं गतिवान पवन-
 साँसों के सरगम में रची-बसी,
 वन-वन डोलूँ,
 सघन-विरल का भेद न जानूँ
 घर,मकान, झोंपड़-पट्टी में वास करूँ ।

 नहीं जानती क्या हूँ मैं!
 बोध मुझे केवल इतना-
 लिये मशाल अग-जग घूमूँ।
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एस पी सती
1-माँ
माँ हम ढूँढते हैं पहाड़ पर सौंदर्य
तुम पहाड़ पर जीवन तलाशती हो
लोग पहाड़ का मतलव समझाते हैं
यहाँ की चोटियाँ,घाटियाँ,गाड-गदीने *
(नदिकायें-नाले -बरसाती झरनें)
पर तुम्हारे लिए तो पहाड़ सिर्फ पहाड़ हैं
दुश्वारियों के पहाड़
हम बह गए मैदानों की ओर
तुम घिरी चट्टानों से हर ओर
हम बिछ गए मैदानों में
तुम्हे सिमटी छोड़ कंदराओं में
हम उग आए मैदानों में
तुम ठूँठ-सी  खड़ी पहाड़ों पर
तुम बाट जोहती रह गयी
हम बस सोचते रह गए
माँ पहाड़ पर विकास की चोटी जितनी ऊँची होती जाती है,
तुम्हारी कमर उतनी ही झुकती जाती है
जाने ऐसा क्यों है...जाने ऐसा क्यों है?
ना जाने क्यों.........।

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2-संस्कार - एस पी सती

मेरे बेटे; तुम अपने जहाँ में
वो सब करने की हिम्मत करना जो तुम्हें सभ्य लगे
तुम धर्म को मार्ग समझना हथियार नहीं
तुम उनमें अपने प्रभु को ढूँढ़ना
जिनके विरुद्ध तुमको दागने की कोशिश की जा रही हो
जिंदगी का फलसफ़ा तुम बेजान किताबों में मत ढूँढ़ना 
तुम उसे मासूमों की मुस्कान में
उडती तितलियों की चपलता में
उछल-कूद करते मृग शावक की मस्ती में
बूढ़ी दादी के मुख की झुर्रियों की गहराई में
प्रतीक्षारत किसी दुखियारी माँ की डबडबाई आँखों में
हिमालय की चोटी पर सूरज की किरणों की अठखेलियों में,
कल-कल करती सरिता की शीतल छपाक् में,
गोरी के गीत में, मीत की प्रीत में
भौरे की गुंजन में बैलों की घंटी में
डाली की मस्ती में फूलों की खिलखिलाहट में
और हाँ अपनी अल्हड हसीं में तलाशना
मेरे बेटे तुम हर मालिकाना कब्जे के विरुद्ध खड़े होना चट्टान की तरह
आखिर ये जहाँ सबका है...सबका...।
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6 comments:

  1. Pushpa Mehra ji evam S.P. Sati jii ko sundar rachnaon ke liye bahut bahut badhaai .....

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  2. बहुत सारे भाव जगा दिए इन कविताओं ने मन में...आप दोनों को बहुत बधाई...|
    प्रियंका गुप्ता

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  3. बहुत कुछ सोचने को विवश करती रचनाएँ ....बधाई !

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