पथ के साथी

Wednesday, August 8, 2012

दिशा -दिशा हो धवल


डॉ ज्योत्स्ना शर्मा
1
हमको तो अब भा गया ,प्रभु तुम्हारा नाम  ।
कुण्डलियाँ लिख -लिख करूँ ,नित्य नाम का गान   ॥
नित्य नाम का गान ,सुनो तुम बात हमारी  ।
राखो सँभल, सँवार ,वस्तु न जाएँ बिसारी   ॥
कान्हा भूलो मुकुट,न भूले मुरली तुमको  
जिसकी मीठी तान ,लुभाए निश -दिन  हमको   ॥
2
जीवन में उत्साह से ,सदा रहें भरपूर  ।
निर्मलता मन में रहे ,रहें कलुष से दूर   ॥
रहें कलुष से दूर ,दिलों में कमल खिलें हों  ।
हों खुशियों के हार ,तार से तार मिलें हों   ॥
दिशा -दिशा हो धवल ,धूप आशा की मन में  ।
रहें सदा परिपूर्ण ,उमंगित इस जीवन में   ॥
3
नारी ही जब बोलकर ,अपना मोल लगाय  ।
क्यों न इस बाजार में, बिना मोल बिक जाय   ॥
बिना मोल बिक जाय ,घटे मर्यादा ऐसे  ।
हो पूनम का चाँद, गहन में विपदा जैसे   ॥
पाए अपना मान ,गगन में चमक है भारी  ।
तज मर्यादा चैन, कभी  ना पाए नारी  । ।
4
इक रोटी से हाथ की ,मुँदरी पूछे बात ।
तू क्यों फूली -सी फिरे ,जले सुकोमल गात ॥
जले सुकोमल गात ,अंत निश्चित है तेरा ।
पर छुटकी के थाल, लगाए हँस कर फेरा ॥
दे मुख को मुस्कान ,उम्र तेरी यह छोटी ।
जीवन का सन्देश ,सुनाती है इक रोटी   ॥
5
राजनीति का नीति से ,यूँ रिश्ता अनमोल ।
इक वाणी प्रपंच दिखे ,दूजी बोले तोल ।
दूजी बोले तोल ,करे नित परहित सब का ।
सम दृष्टि समभाव ,रखे है मन में रब का॥
भले करें सब गान ,नीति पावन प्रतीति का
छोडे़ त्याग-विचार ,गुणीजन राजनीति का ।।
6
भूले से भगवान ने ,मन में किया विचार  
खुद रह कर फिर साथ में ,देखें यह संसार  ।।
देखें यह संसार ,यहाँ कैसी है माया  
किया भला क्या भेंट ,भक्त ने क्या -क्या पाया ।।
चले उठाने मुकुट ,मुरलिया जब झूले से  
कुछ ना आया हाथ ,खड़े  हैं अब भूले- से ॥
7
राधा की पायल बनूँ, या बाँसुरिया ,श्याम ,
दोंनों के मन में रहूँ, इच्छा यह  अभिराम ।
इच्छा यह्  अभिराम ,बजूँगी वृन्दावन में ,
दो बाँसुरिया देख , दुखी हों राधा मन में ।
हो उनको संताप , मिलेगा सुख बस आधा ,
कान्हा के मन वास , चरण में रख लें राधा ।
-0-

13 comments:

  1. जीवन्त विचारों की बहुत सुन्दर कुण्डलियाँ ....

    ReplyDelete
  2. waah sabhi bahut sundar jeevant

    ReplyDelete
  3. जीवन के भिन्न पहलुओं को छूती, सुंदर कुण्डलियाँ....

    ReplyDelete
  4. सुन्दर अनुभूति खूबसूरत अभिव्यक्ति...बधाई।
    कृष्णा वर्मा

    ReplyDelete
  5. मनमोहक कुण्डलियाँ..

    ReplyDelete
  6. मनमोहक कुण्डलियाँ..

    ReplyDelete
  7. इन्द्रधनुष की तरह छिटकी कुण्डलियाँ..

    ReplyDelete
  8. खूबसूरत अभिव्यक्ति..

    ReplyDelete
  9. जीवन के कई पहलूओं पर केंद्रित मोहक कुण्डलियाँ. रोटी से राजनीति तक, आम जीवन से ईश्वर तक... बहुत भावप्रण कुशल लेखन, बधाई.

    ReplyDelete
  10. बहुत ही प्रभावशाली कुण्डलियाँ है .मुझे लगता है कुण्डलियाँ लिखना आसान नहीं होता है
    बहुत बहुत बधाई
    रचना

    ReplyDelete
  11. ज्योत्स्ना शर्मा11 August, 2012 17:22

    आदरणीय Madan Saxena ji ,Dr (Miss) Sharad Singh ji ,Shashi Purwar ji ,Krishna ji ,Sushila ji ,Tuhina Ranjan ji ,प्रवीण पाण्डेय जी ,Sriram Roy ji ,Dr जेन्नी शबनम जी तथा रचना जी ....आप सभी के सुंदर प्रेरक कमेन्ट्स मेरे लेखन को और ऊर्जा दे गये ....हृदय से आभारी हूँ ...स्नेह भाव बनाये रखियेगा ..
    साथ ही आदरणीय काम्बोज भैया जी भी बहुत बहुत आभारी हूँ जिन्होनें मेरी अभिव्यक्ति को यहाँ स्थान दिया ...सादर ...ज्योत्स्ना

    ReplyDelete
  12. बहुत सुन्दर...। मेरी बधाई...।

    ReplyDelete
  13. राजनीति का नीति से ,यूँ रिश्ता अनमोल ।
    इक वाणी प्रपंच दिखे ,दूजी बोले तोल ।
    दूजी बोले तोल ,करे नित परहित सब का ।
    सम दृष्टि समभाव ,रखे है मन में रब का॥
    भले करें सब गान ,नीति पावन प्रतीति का
    छोडे़ त्याग-विचार ,गुणीजन राजनीति का

    यूँ तो सभी कुण्डलिया सुंदर हैं... लेकिन यह कुछ जादा ही भाई मन को...
    मंजु मिश्रा

    ReplyDelete