रामेश्वर
काम्बोज ‘हिमांशु’
देश यह रोटी का टुकड़ा
सभी बाँटकर खाओ;
कोई कभी तुम्हें टोकता
मिलकर सब गुर्राओ । ।
गबन -लूट मचाता जो भी
उतना नाम कमाए ;
बेबस भूखी जनता सिर्फ़
गीत उसी के गाए ।
दबंग बनो आँख दिखाओ
फिर सबको लतियाओ । ।
ख़्वाब जो
गाँधी ने देखे
उनको लगा पलीता ;
ओढ़ चादर दुराचार की
उलटी पढ़ ली गीता ।
चोर-चोर सभी हैं भाई
सब
कुछ चट कर जाओ । ।
अनाचार
हटाने की जो
बातें कहीं करेगा ;
इनके हाथों सही
मानो
वह बेमौत मरेगा
।
कुर्सी भक्षक बनी दोस्तो
दूर कहीं छुप जाओ । ।
दो रोटी को वह तरसता
जो है दिन भर खटता ;
न सिर पर है छप्पर कोई
भूख- पिशाच न हटता ।
जनसेवक जी ! अब न चूको
लूट-लूटकर खाओ ॥
लूटो नभ ,धरा यह लूटो
लूटो यहाँ पाताल
कम लगे तो कफ़न लूट लो
भरो घर में सब माल ।
परदेसी को न बुलवाना
तुम खुद लूट मचाओ । ।
लोकतन्त्र है मत टोकना
इनको मिला अधिकार
सेवक ही बने
हैं मालिक
यही सेवक हथियार ।
अँधेरा है लोकतन्त्र का
ज़रा नहीं घबराओ । ।
भेड़ बकरियाँ आँखें मूँदे
अपनी खैर मनाएँ;
शेर दें रेवड़ पर पहरा
पल-पल
में गुर्राएँ ।
जीना तो चुप रहना बन्धु
अपनी खैर मनाओ । ।
व्यंगात्मक शैली की ये कविता बहुत अच्छी लगी. आज के हालात पर कड़ा प्रहार है...
ReplyDeleteलोकतन्त्र है मत टोकना
इनको मिला अधिकार
सेवक ही बने हैं मालिक
यही सेवक हथियार ।
शुभकामनाएँ.
देश में व्याप्त परिस्थितियों पर बहुत सशक्त अभिव्यक्ति आपकी ...बहुत बधाई !!
ReplyDeleteभेड़ बकरियाँ आँखें मूँदे
ReplyDeleteअपनी खैर मनाएँ;
शेर दें रेवड़ पर पहरा
पल-पल में गुराएं
जीना तो चुप रहना बन्धु
अपनी खैर मनाओ
जी बहुत से लोग चुप हैं तभी जानें बची हुई हैं वरना तो............
बहुत सुन्दर कविता । बधाई ।
वाह ! मजा आ गया पढ़कर...व्यंगात्मक , सटीक और हास्य जैसा
ReplyDeleteसशक्त...सादर बधाई|
चोर-चोर सभी हैं भाई
ReplyDeleteसब कुछ चट कर जाओ।
जनता तो भूखो ही मर रही है सेवक ही सब कुछ चट करते जा रहे है।
करारा प्रहार। देश की वर्तमान दशा का हूबहू बयान करती बहुत बढ़िया कविता। बधाई
डॉ. रत्ना वर्मा
सामयिक, यथार्थपरक रचना के लिए बधाई | देश की शोचनीय परिस्थतियों का चित्रण मन को उद्वेलित करता है |
ReplyDeleteसादर,
शशि पाधा
आज की राजनीति पर करारा व्यंग्य
ReplyDeleteदेश की वर्तमान परिस्थितियों पर अचूक व्यंगबाण। बहुत बढ़िया प्रस्तुति। हार्दिक बधाई।
ReplyDelete"ख़्वाब जो गाँधी ने देखे
ReplyDeleteउनको लगा पलीता ;
ओढ़ चादर दुराचार की
उलटी पढ़ ली गीता"
सामयिक, यथार्थपरक प्रस्तुति ..... हार्दिक बधाई।
डॉ सरस्वती माथुर
क्या रचना है ! बहुत खूब भाई साहब !
ReplyDeleteमगर...बहुत दुख भी होता है....क्या हालत हो गयी है अपने देश की ... :(
~सादर !!!
देश के लुटेरों पर शोचनीय व्यंग्य . बधाई
ReplyDeletebahut aachi kavita hai
ReplyDeleteजीना तो चुप रहना बन्धु
ReplyDeleteअपनी खैर मनाओ । ।
देश की वर्तमान स्थिति को व्यंगात्मक शैली में सुंदर ढग से अभिव्यक्त करती अच्छी कविता....
सादर/सप्रेम
सारिका मुकेश
http://sarikamukesh.blogspot.com/
देश यह रोटी का टुकड़ा
ReplyDeleteसभी बाँटकर खाओ;
कोई कभी तुम्हें टोकता
मिलकर सब गुर्राओ । देश की वर्तमान स्थिति को कविता के माध्यम से बखूबी दर्शाया है......सादर
Bahut gahan vangay ...bahut2 badhai...
ReplyDeleteसत्यमेव जयते.... काश देश की हर जनता इस सत्य से रूबरु होती। ऐसा लगता है देश माफ़ियाओं के हाथ की कठपुतली बन गया है।
ReplyDeleteसत्य हमेशा कढ़वा होता है।
सटीक प्रस्तुति के लिए बधाई....
आपको मेरी यह कविता पसन्द आई इसके लिए मैं अपने सभी सुहृदय पाठकों और साहित्यकारों का हृदय से आभारी हूँ। आपके दो शब्द मेरे लिए सबसे बड़ी प्रेरणा हैं । रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
ReplyDeleteहर देशवासी के दिल के भावों को मुखरीत करती बहुत ही सुंदर कविता।
ReplyDeleteदेश की वर्तमान परिस्थिति का इतना सटीक व्यंग्यात्मक चित्रण किया है आपने कि तारीफ़ के लिए शब्द कम से लग रहे...।
ReplyDeleteकम लगे तो कफ़न लूट लो...
इन पंक्तियों में तो जैसे एक आम इंसान की समस्त पीड़ा व्यक्त हो गई है...तथाकथित जनसेवक अब इस लूट से भी कितना नीचे जा सकते हैं, बस यही देखना है...।
इतनी अच्छी रचना के लिए बधाई और आभार...।