रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
1
मिलने की मज़बूरी
पास बहुत मन के
फिर कैसी है दूरी
2
बेटी धड़कन मन की
दीपक मन्दिर का
खुशबू है आँगन की
3
आँसू सब पी लेंगे
जो दु:ख तेरे हैं
उनको ले जी लेंगे
4
मन की तुम मूरत हो
जितने रूप मिले
उनकी तुम सूरत हो
आँगन की यह खुशबू हर घर में बनी रहे..
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण रचनाएँ
ReplyDeleteवाह! बहुत सुंदर...
ReplyDeleteआँसू सब पी लेंगे
ReplyDeleteजो दु:ख तेरे हैं
उनको ले जी लेंगे
पावन संकल्प!
सुन्दर प्रस्तुति!
मिलने की मज़बूरी
ReplyDeleteपास बहुत मन के
फिर कैसी है दूरी
bahut sundar bhaav...
बहुत ही भावपूर्ण और खूबसूरत माहिया! पावन भाव और सुंदर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर.........................
ReplyDeleteसादर.
अनु
एक से बढ़कर एक माहिया !
ReplyDeleteमगर ये तो सीधा दिल में उतर गया !
आँसू सब पी लेंगे
जो दु:ख तेरे हैं
उनको ले जी लेंगे
बहुत बधाई !
हरदीप
एक से बढ़कर एक माहिया !
ReplyDeleteमगर ये तो सीधा दिल में उतर गया !
बहुत बधाई !
हरदीप
sundar abhivyakti.
ReplyDeleteसुंदर भावों की बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है ....
ReplyDeleteबेटी धड़कन मन की
दीपक मन्दिर का
खुशबू है आँगन की ...बहुत प्यारा लगा....ज्योत्स्ना
एक अनमोल किताब की तरह है आपका ब्लॉग. सार्थक प्रयास.
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