पथ के साथी

Monday, June 4, 2012

बाबुल तुम बगिया के तरुवर


बाबुल तुम बगिया के तरुवर
गोपाल सिंह नेपाली
गोपाल सिंह नेपाली
[ 12 दिसम्बर 2010,पटना के माध्यमिक शिक्षा मण्डल के हॉल में स्वर्गीय गोपाल सिंह नेपाली जी की भतीजी  सविता सिंह नेपाली ने जब यह गीत गाया तो गहन सन्नाटा खिंच गया ।सभी की आँखें तरल थीं । नेपाली जी की जन्मशती पर यही गीत राष्ट्रपति भवन में भी सविता सिंह नेपाली ने गाया ।आह्वान -21 से साभार]
बाबुल तुम बगिया के तरुवर, हम तरुवर की चिड़ियाँ रे  ।
दाना चुगते उड़ जाएँ हम, पिया मिलन की घड़ियाँ रे  ।
उड़ जाएँ तो लौट न आएँ , ज्यों मोती की लडियाँ  रे
सविता सिंह नेपाली : फोटो-हिमांशु
बाबुल तुम बगिया के तरुवर …….

आँखों से आँसू निकले तो पीछे तके नहीं मुड़के
घर की कन्या बन का पंछी, फिरे न डाली से उड़के
बाजी हारी हुई त्रिया की
जनम -जनम सौगात पिया की
बाबुल तुम गूँगे नैना, हम आँसू की फुलझड़ियाँ रे  ।
उड़ जाएँ तो लौट न आएँ ज्यों मोती की लड़ियाँ रे ।

हमको सुध न जनम के पहले
अपनी कहाँ अटारी थी
आँख खुली तो नभ के नीचे , हम थे, गोद तुम्हारी थी
ऐसा था वह रैन -बसेरा
जहाँ साँझ भी लगे सवेरा
बाबुल तुम गिरिराज हिमालय , हम झरनों की कड़ियाँ रे ।
उड़ जाएँ तो लौट न आएँ , ज्यों मोती की लड़ियाँ  रे  

छितराए नौ लाख सितारे , तेरी नभ की छाया में
मंदिर -मूरत , तीरथ देखे , हमने तेरी काया में
दुःख में भी हमने सुख देखा
तुमने बस कन्या मुख देखा
बाबुल तुम कुलवंश कमल हो , हम कोमल पंखुड़ियाँ  रे  
उड़ जाएँ तो लौट न आएँ , ज्यों मोती की लड़ियाँ  रे  

बचपन के भोलेपन पर जब , छिटके रंग जवानी के
प्यास प्रीति की जागी तो हम , मीन बने बिन पानी के
जनम -जनम के प्यासे नैना
चाहे नहीं कुँवारे रहना
बाबुल ढूँढ फिरो तुम हमको , हम ढूँढें बावरिया रे  
उड़ जाएँ तो लौट न आएँ , ज्यों मोती की लड़ियाँ  रे  

चढ़ती उमर बढ़ी तो कुल -मर्यादा से जा टकराई
पगड़ी गिरने के दर से , दुनिया जा डोली ले आई
मन रोया , गूँजी शहनाई
नयन बहे , चुनरी पहनाई
पहनाई चुनरी सुहाग की , या डाली हथकड़ियाँ  रे  
उड़ जाएँ तो लौट न आएँ , ज्यों मोती की लडियाँ  रे  

मंत्र पढ़े सौ सदी पुराने , रीत निभाई, प्रीत नहीं
तन का सौदा कर के भी तो , पाया मन का मीत नहीं
गात फूल- सा , काँटे पग में
जग के लिए जिए हम जग में
बाबुल तुम पगड़ी समाज के , हम पथ की कंकरियाँ  रे  
उड़ जाएँ तो लौट न आएँ , ज्यों मोती की  लड़ियाँ  रे  

माँग रची आँसू के ऊपर , घूँघट गीली आँखों पर
ब्याह नाम से यह लीला ज़ाहिर करवाई लाखों पर

नेह लगा तो नैहर छूटा , पिया मिले बिछुड़ी सखियाँ
प्यार बताकर पीर मिली तो, नीर बनीं फूटी अँखियाँ
हुई चलाकर चाल पुरानी
नई जवानी पानी पानी
चली मनाने चिर वसंत में , ज्यों सावन की झड़ियाँ रे  ।
उड़ जाएँ तो लौट न आएँ , ज्यों मोती की लड़ियाँ रे  

देखा जो ससुराल पहुँचकर , तो दुनिया ही न्यारी थी
फूलों- सा था देश हरा , पर काँटो की फुलवारी थी
कहने को सारे अपने थे
पर दिन दुपहर के सपने थे
मिली नाम पर कोमलता के , केवल नरम कांकरियाँ रे  ।
उड़ जाएँ तो लौट न आएँ , ज्यों मोती की लड़ियाँ रे  

वेद-शास्त्र थे लिखे पुरुष के , मुश्किल था बचकर जाना
हारा दाँव बचा लेने को , पति को परमेश्वर जाना
दुल्हन बनकर दिया जलाया
दासी बन घर बार चलाया
माँ बनकर ममता बाँटी तो , महल बनी झोंपड़ियाँ रे  ।
उड़ जाएँ तो लौट न आएँ , ज्यों मोती की लड़ियाँ रे  

मन की सेज सुला प्रियतम को , दीप नयन का मंद किया
छुड़ा जगत से अपने को , सिंदूर बिंदु में बंद किया
जंजीरों में बाँधा तन को
त्याग -राग से साधा मन को
पंछी के उड़ जाने पर ही , खोली नयन किवड़ियाँ रे  ।
उड़ जाएँ तो लौट न आएँ , ज्यों मोती की लड़ियाँ रे  

जनम लिया तो जले पिता -माँ , यौवन खिला ननद -भाभी
ब्याह रचा तो जला मोहल्ला , पुत्र हुआ तो बंध्या भी
जले ह्रदय के अन्दर नारी
उस पर बाहर दुनिया सारी
मर जाने पर भी मरघट में , जल - जल उठीं लकड़ियाँ रे  ।
उड़ जाएँ तो लौट न आएँ , ज्यों मोती की लड़ियाँ  रे  

जनम -जनम जग के नखरे पर , सज -धजकर जाएँ वारी
फिर भी समझे गए रात -दिन, हम ताड़न के अधिकारी
पहले गए पिया जो हमसे अधम बने हम यहाँ अधम से
पहले ही हम चल बसें , तो फिर जग बाँटें रेवड़ियाँ  रे
उड़ जाएँ तो लौट न आएँ , ज्यों मोती की लड़ियाँ  रे
-0-


17 comments:

  1. बेटियों के जीवन का ऎसा पारदर्शी चित्रण कि एक-एक पंक्ति ने शुरू से अंत तक आँखों को नम किया।
    ऎसी मार्मिक रचना के लिए सविता सिंह जी को बहुत-बहुत बधाई।
    कृष्णा वर्मा

    ReplyDelete
  2. Janm se lekar shuruaat ki ladki ki or puri hi jeevan is geet men khub achchhe se piroya hai bahut bhaavpurn,sach ka dam bharti ye rachna man par gahara prbhaav ankit kar gayi...bahut2 badhai aapka aabhar isko hamare saath bnaatne ke liye...

    ReplyDelete
  3. amita kaundal05 June, 2012 06:55

    उड़ जाएँ तो लौट न आएँ , ज्यों मोती की लडियाँ रे
    हमें खुश देख रहें सदा खुश, हम बाबुल की गुड़ियाँ रे ......

    क्या सुंदर गीत है जन्म से ले मृत्यु तक का सफ़र कितने अच्छे से व्यक्त किया है........बाबुल की बगिया और यह दुनिया कितना अंतर है दोनों में...........इतने सुंदर गीत के लिए बधाई.......
    अमिता कौंडल

    ReplyDelete
  4. बहुत खूबसूरत और मन को भिगोने वाला गीत..

    ReplyDelete
  5. बाबुल तुम गिरिराज हिमालय , हम झरनों की कड़ियाँ रे

    बहुत ही प्यारा गीत है... इसका ऑडियो लिंक भी लगाएँ तो और अच्छा रहेगा..

    ReplyDelete
  6. सुन्दर गीत ... गीत कों पढते पढते और उसके भाव कों आत्मसात करते .. मन भीग जाता है ...

    ReplyDelete
  7. भावविभोर कर देने वाली रचना...पढ़वाने के लिए आभार !!!

    ReplyDelete
  8. मन को ही नहीं आँखो को भी भिगो गया यह गीत! कितने सुंदर और गहरे भावों से भरा है! ऐसे सुंदर गीत को तो हर बेटी, हर स्त्री को पढ़ना चाहिए!
    इसे फ़ेसबुक पर अपना स्टेटस बना रही हूँ।

    ReplyDelete
  9. बहुत सुंदर गीत...भावविभोर करने वाले शब्द ,कुछ कह पाना मुश्किल हो रहा है

    ReplyDelete
  10. शकुन्तला बहादुर13 June, 2012 00:41

    बेटी से पत्नी फिर माँ बनने वाली नारी की जीवन-यात्रा में उठने वाले हर पग का अति सूक्ष्मता से किया गया चित्रण अत्यन्त मार्मिक है। पढ़कर पलकें सजल हो गईं और मैं स्तब्ध सी विचारमग्न बैठी रह गई।नेपाली जी की संवेदनशील लेखनी को सादर नमन!! सुन्दर प्रस्तुति के लिये सविता जी का आभार ।

    ReplyDelete
  11. Sach me bahut hi marmik rachna hai ..........bahut hi umda

    ReplyDelete
  12. ऐसा मर्मस्पर्शी गीत...निःशब्द सी हूँ...। इतनी गहराई से एक आम भारतीय स्त्री के पूरे जीवन की गाथा लिख दी मानो...। कोई कहे, न कहे पर हर औरत इस गीत से अपने को रिलेट कर ही लेगी...। इतने सुन्दर गीत को पढ़वाने के लिए आपका आभार और नेपाली जी की लेखनी को नमन...।

    ReplyDelete
  13. सविता जी का गीत मन को छू गया | आँखे नम थीं और साँस रुकी हुई जब ये गीत पढ़ रही थी !
    सुन्दर गीत पढ़वाने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद !
    हरदीप

    ReplyDelete
  14. ज्योत्स्ना शर्मा10 July, 2012 11:59

    आदि से अन्त तक ...नारी जीवन की कथा कहता मार्मिक गीत ...
    कोई पक्ष आँखों से ओझल नहीं...सादर नमन ....!!

    ReplyDelete
  15. मार्मिक रचना है।भावविभोर कर दिया।

    ReplyDelete