क्या खूबसूरत कल्पना है! इस दर्ज़ी ने जो कढ़ाई की है , वह अद्भुत है । आपके इस सौन्दर्यबोध को , उपमान -योजना को आपके इस साहित्य-प्रेमी अग्रज का प्रणाम !आप जैसे हाइकुकार इस विधा को जो गरिमा प्रदान कर रहे हैं, वह अनुकरणीय है ।
ऐसा दर्जी तो कहीं नहीं मिलेगा .....वाह कमला जी ...कमाल ही कमाल है .......बहुत ही सुन्दर .......ऐसे दर्जी से सूट कढ़ाई करवा देना जब आपको मिले ! आप जैसे अच्छे दिल वालों को तो मिल ही जाएगा ! हरदीप
वाह कमला जी ! आभार और वह भी सरस हाइकु में । ईश्वर आपकी कलम को वसन्त के सौरभ से सदा सराबोर करता रहे । नई कढ़ाई टाँकी उपवन में - खुशबू छाई । साभार-हिमांशु
परतों पर परतें गाढ़ी है,
ReplyDeleteक्या खूब चुनरिया काढ़ी है,
क्या खूबसूरत कल्पना है! इस दर्ज़ी ने जो कढ़ाई की है , वह अद्भुत है । आपके इस सौन्दर्यबोध को , उपमान -योजना को आपके इस साहित्य-प्रेमी अग्रज का प्रणाम !आप जैसे हाइकुकार इस विधा को जो गरिमा प्रदान कर रहे हैं, वह अनुकरणीय है ।
ReplyDeleteकाढ़ता
ReplyDeleteदर्जी- वसंत ।sahi bat.
सुन्दर बिम्ब .. खूबसूरत हाईकू
ReplyDeleteदर्जी बसंत ............. नयी तुलना , अच्छा लगा
ReplyDeleteबहुत सुन्दर बिम्ब
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति ...!!
ReplyDeleteएकदम अनूठा प्रयोग... वसंत की छटा को बहुत ही सुन्दरता के साथ प्रस्तुत किया है.
ReplyDeleteसादर
मंजु
नि:संदेह हाइकु में एक अनूठी अभिव्यक्ति ! बधाई !
ReplyDeleteऐसा दर्जी तो कहीं नहीं मिलेगा .....वाह कमला जी ...कमाल ही कमाल है .......बहुत ही सुन्दर .......ऐसे दर्जी से सूट कढ़ाई
ReplyDeleteकरवा देना जब आपको मिले ! आप जैसे अच्छे दिल वालों को तो मिल ही जाएगा !
हरदीप
ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब हाइकु !
ReplyDeleteआप सभी की नेह फुहार से मेरी चुनरिया तो भीग ही गई मित्रों ! फूलों के रंग कुछ और चटख हो गए हैं ... . . नेह फुहार ...भीगा मन बिरवा ...कहे आभार
ReplyDeleteवाह कमला जी ! आभार और वह भी सरस हाइकु में । ईश्वर आपकी कलम को वसन्त के सौरभ से सदा सराबोर करता रहे ।
ReplyDeleteनई कढ़ाई
टाँकी उपवन में -
खुशबू छाई ।
साभार-हिमांशु
bahut khoobsurat bimb.
ReplyDeleteसुन्दर बिम्ब .. खूबसूरत हाईकू....
ReplyDeleteसुंदर,
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