-रामेश्वर काम्बोज हिमांशु’
1
मिलने की थी / चाहत पाली जब/ मिला बिछोड़ा ।
टूटा है मन / टुकड़ों-टुकड़ों में/ जितना जोड़ा ॥
रफ़ू करेंगे / मन की चादर को /उधड़ेगी ही ।
सपनों में ही / आकर मिल जाना/ जीवन थोड़ा ॥
2
पता जो पूछा/ तुम्हारा, भूल हुई /घर खो बैठे ।
झुकाते माथा/ खुशी से वही हम / दर खो बैठे ॥
सज़ा मिलेगी / तेरा नाम लिया तो / पता हमको
अपना माना/ जबसे , हम सारा / डर खो बैठे ।।
3
सँभले जब / पता चला हमको/क्यों टूटा मन ।
झूठे चेहरे/ पास खड़े थे जान / गया दर्पन ॥
हम अकेले/ नदी किनारे संग / रोती लहरें ।
कितनी व्यथा !/ चीरती धारा , जाने/ सान्ध्य- गगन ।।
4
ढूँढ़ा हमने / सपनों तक में भी / खोज न पाए ।
तुम तो सदा / हमारे थे फिर क्यों / हुए पराये ।
जान तो लेते /हम किस हाल में / जीते -मरते
सब सन्देसे / खो गए गगन में/ हाथ न आए ॥
-0-
(चित्र:गूगल से साभार)
ढूँढ़ा हमने / सपनों तक में भी / खोज न पाए ।
ReplyDeleteतुम तो सदा / हमारे थे फिर क्यों / हुए पराये ।
जान तो लेते /हम किस हाल में / जीते -मरते
सब सन्देसे / खो गए गगन में/ हाथ न आए ॥
वाह .....
बहुत सुंदर हाइकु मुक्तक है.......बधाई
हाइकु मुक्तक ... नयी विधा का पता चला ... बहुत सुंदर ।
ReplyDeleteवाह बहुत ही सुन्दर हाइकु मुक्तक हैं।
ReplyDeleteआशा विश्वास व्यथा एवं बिछुड़न पर बहुत ही उत्कृष्ट एवं मर्मस्पर्शी हाइकु मुक्तक लिखा है|
ReplyDeleteसाधुवाद!
अरे वाह, नयी विधा। हर पंक्ति में पूर्णता और पंक्तियों के बीच गेयता। भाव नापने में सुन्दर प्रयोग
ReplyDeleteवाह ....
ReplyDeleteएक नयी विधा...
मैं भी कोशिश करुँगी..
शुक्रिया.
सादर.
भावपूर्ण सुंदर हाइकु मुक्तक के लिए बधाई|
ReplyDeleteरवि जी की बातों से सहमत हूँ
आशा विश्वास व्यथा एवं बिछुड़न पर बहुत ही उत्कृष्ट एवं मर्मस्पर्शी रचना...
सपनों में ही / आकर मिल जाना/ जीवन थोड़ा ...pratyek hriday ki yahi abhilasha hai...sudar haaiku muktak...abhar
ReplyDeleteरफ़ू करेंगे / मन की चादर को /उधड़ेगी ही ।
ReplyDeleteसपनों में ही / आकर मिल जाना/ जीवन थोड़ा ॥
bahut sunder bimb.aap se sabhi kuchh na kuchh sikhte hain
aapne bhaon ko sunder tarike se ukera hai
badhai
saader
rachana
हम अकेले/ नदी किनारे संग / रोती लहरें ।
ReplyDeleteकितनी व्यथा !/ चीरती धारा , जाने/ सान्ध्य- गगन ।।
बहुत भावपूर्ण रचना ........नदिया किनारे अकेलापन और लहरों का रुदन ...मर्मस्पर्शी ..बहुत मर्मस्पर्शी
बहुत खूब.... अच्छी और सफल प्रयास..... खुबसूरत रचना....
ReplyDeleteनयी विधा से मुलाक़ात हूई --बहुत सुंदर !
ReplyDeletehaaiku muktak, pahli baar jaana. bahut sundar sabhi haaiku...
ReplyDeleteसँभले जब / पता चला हमको/क्यों टूटा मन ।
झूठे चेहरे/ पास खड़े थे जान / गया दर्पन ॥
हम अकेले/ नदी किनारे संग / रोती लहरें ।
कितनी व्यथा !/ चीरती धारा , जाने/ सान्ध्य- गगन ।।
is vidha se parichay karane ke liye dhanyawaad aur aapko badhai.
rameswar ji aapki rachna saral bhasha me hote huye bhi sab kuchh kah deti hai.
ReplyDeletemadhu tripathi.MM
http:www.kavyachitra.blogspot.com
sundar prayog .....achha laga...badhai
ReplyDeletesabhi muktak eak se badhkar eak hain kiski prasansha karun kiski nahi asmanjas ki sitihi men hun..bahut 2 badhai...
ReplyDeleteढूँढ़ा हमने / सपनों तक में भी / खोज न पाए ।
ReplyDeleteतुम तो सदा / हमारे थे फिर क्यों / हुए पराये ।
जान तो लेते /हम किस हाल में / जीते -मरते
सब सन्देसे / खो गए गगन में/ हाथ न आए ॥
मिलने की थी / चाहत पाली जब/ मिला बिछोड़ा ।
टूटा है मन / टुकड़ों-टुकड़ों में/ जितना जोड़ा ॥
रफ़ू करेंगे / मन की चादर को /उधड़ेगी ही ।
सपनों में ही / आकर मिल जाना/ जीवन थोड़ा ॥
हिमांशु जी ,
प्रथम तो क्षमा चाहती हूँ इधर व्यस्तता बहुत अधिक बढ़ गई है |कुछ लिखना पढ़ना संभव नहीं हो पा रहा |
आपके सभी हाइकु मुक्तक बहुत भावपूर्ण है पर ये दो मुझे ज्यादा भाए ..बधाई ....
डा. रमा द्विवेदी
मिलने की थी / चाहत पाली जब/ मिला बिछोड़ा ।
ReplyDeleteटूटा है मन / टुकड़ों-टुकड़ों में/ जितना जोड़ा ॥
रफ़ू करेंगे / मन की चादर को /उधड़ेगी ही ।
सपनों में ही / आकर मिल जाना/ जीवन थोड़ा ॥
नै विधा की शानदार रचना .
वाह सुन्दर और बेहतरीन हाइकु मुक्तक ...
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुती...
जान तो लेते /हम किस हाल में / जीते -मरते
ReplyDeleteसब सन्देसे / खो गए गगन में/ हाथ न आए ॥
यह तो हायकू में एक नया प्रयोग हो गया और यह सभी को पसंद भी आयेगा. बहुत बधाई.
हाइकु मुक्तक में अगर इतना सुन्दर प्रयोग हो सकता है तो हाइकु रचनाकारों को इस तरफ़ भी ध्यान देना चाहिए और इसी प्रकार से हिन्दी हाइकु को विस्तार भी मिलेगा। बहुत सुन्दर हाइकु मुक्तक हैं।
ReplyDeleteरामेश्वर जी ,
ReplyDeleteसुंदर हाइकु - मुक्तक के लिए बधाई .......हमेशा की तरह गागर में सागर ......सभी हाइकु मुक्तक बहुत सुन्दर एवं भावपूर्ण है .....
1.
मिलने की थी / चाहत पाली जब/ मिला बिछोड़ा ।
टूटा है मन / टुकड़ों-टुकड़ों में/ जितना जोड़ा ॥
रफ़ू* करेंगे / मन की चादर को /उधड़ेगी ही ।
सपनों में ही / आकर मिल जाना/ जीवन थोड़ा ॥
*****मन की चादर को रफू करने की बात अच्छी लगी .......ये कोई दिल वाला ही कर सकता है हर एक के वश में नहीं होता .....
2.
ढूँढ़ा हमने / सपनों तक में भी / खोज न पाए ।
तुम तो सदा / हमारे थे फिर क्यों / हुए पराये ।
जान तो लेते /हम किस हाल में / जीते -मरते
सब सन्देसे / खो गए गगन में*/ हाथ न आए ॥
*****सन्देसे गगन में नहीं खोए .....सन्देसे गगन में पहुँचकर सारी कायनात में फ़ैल गए..अब ज़र्रा -ज़र्रा इस सन्देसे का भागीदार है ..राज़दार है ............
बहुत बधाई !
हरदीप
सुन्दर प्रयोग
ReplyDeleteहिमांशु जी
ReplyDeleteनमस्कार
हाईकु मुक्तक बहुत कमाल और नया प्रयोग बेमिसाल।
सादर
कृष्णा वर्मा
हाइकु मुक्तक बहुत बढ़िया लगा! नये अंदाज़ के साथ सुन्दर प्रस्तुती! हर एक शब्द लाजवाब है !
ReplyDeleteबढ़िया हाइकु लिखा है..अच्छी लगी..
ReplyDeleteमुझे आने में देर हुई .... लेकिन आज ही बेहद खुबसूरत चीज का पता चला है
ReplyDeleteसादर
हाइकु मुक्तक ... नयी विधा .. बहुत सुंदर ...नमस्ते भैया
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