-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
मन की चोट नहीं भर पाती
मिलना तो होता दो पल का
बिछुड़ें ,यादें रोज़ रुलाती।
मज़बूरी- दूरी दोनों में
युगों-युगों तक का नाता है
दोनों ने मिलकर बाँधा जो
मोहपाश टूट न पाता है ।
जब दिन -रात बिछुड़ जाते हैं
हर आँख सभी की भर आती ।
तन की चोट भरे कुछ दिन में
मन की चोट नहीं भर पाती ।
तन की चोट भरे कुछ दिन में
ReplyDeleteमन की चोट नहीं भर पाती ।
sahi ek dam sahi
shabd ander sab kuchh tod dete hain bas ek yudh ke bad kam sannata sa rah jata hai.
aur bhavnaon ki siskiya bas sunai deti hai
badhai
saader
rachana
मिलना तो होता दो पल का
ReplyDeleteबिछुड़ें ,यादें रोज़ रुलाती।
मज़बूरी- दूरी दोनों में
युगों-युगों तक का नाता है
यादें सच ही बहुत रुलाती हैं ... सुन्दर भावाभिव्यक्ति
तन की चोट भरे कुछ दिन में
ReplyDeleteमन की चोट नहीं भर पाती
सत्य वचन...सुंदर अभिव्यक्ति!
मन न दुखे किसी का भाई..
ReplyDeleteतन की चोट भरे कुछ दिन में
ReplyDeleteमन की चोट नहीं भर पाती । bahut sahi kha kavita ke madhaym se.
sach me man ke ghaaw nahi bharte...sundar rachna...
ReplyDeleteman ke ghaaw sach me nahi bharte hai...sundar abhivyakti...
ReplyDeleteसच है बिलकुल...
ReplyDeleteसुन्दर रचना..
सादर.
तन की चोट भरे कुछ दिन में
ReplyDeleteमन की चोट नहीं भर पाती
मिलना तो होता दो पल का
बिछुड़ें ,यादें रोज़ रुलाती।
मज़बूरी- दूरी दोनों में
युगों-युगों तक का नाता है
एकदम सच बात कही ... मन के घाव बहुत गहरे होते हैं. सुंदर एवं भावुक रचना के लिए बधाई..
सादर
मंजु
दिनेश अग्रवाल जी की भेजी गई टिप्पणी-"मन की चोट":
ReplyDeleteतन की चोट तो दिख जाती है
मन की चोट नहीं दिख पाती
तन की चोट तो मिट जाती है
मन की चोट नहीं मिट पाती
सराहनीय रचना.... बधाई.....
har hriday kee avyakt peeda...
ReplyDeleteतन की चोट भरे कुछ दिन में
मन की चोट नहीं भर पाती ।
bahut sundar rachna, badhai Kamboj bhai.
लाजवाब,
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