रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
भरम हुआ
यह न जाने कैसे
दरक गया
है मन का दर्पन ।
धुँधले नैन
ये देख नहीं पाए
कौन पराया
कहाँ अपनापन ?
मुड़के देखा-
थी पुकार वो चीन्हीं
पहचाना था
प्यारा-सा सम्बोधन ।
धुली उदासी
पहली बारिश में
धुल जाता ज्यों
धूल-भरा आँगन ।
आँसू नैन में
भरे थे डब-डब
बढ़ी हथेली
पोंछा हर कम्पन ।
थे वे अपने
जनम-जनम के
बाँधे हुए थे
रेशम-से बन्धन ।
प्राण युगों से
हैं इनमें अटके
यूँ ही भटके
ये था पागलपन ।
तपता माथा
हो गया शीतल
पाई छुअन
मिट गए संशय
मन की उलझन ।
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बहुत खूबसूरत रचनाएँ
ReplyDeleteआँसू नैन में
ReplyDeleteभरे थे डब-डब
बढ़ी हथेली
पोंछा हर कम्पन ।
थे वे अपने
जनम-जनम के
बाँधे हुए थे
रेशम-से बन्धन ।
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! दिल को छू गयी! शानदार और उम्दा प्रस्तुती!
धुली उदासी
ReplyDeleteपहली बारिश में
धुल जाता ज्यों
धूल-भरा आँगन ।
Bahut khubsurti se udasi ka varnan kiya hai sabhi rachnaye eakse badhkar eak hai... hardik badhai..
धुली उदासी
ReplyDeleteपहली बारिश में
धुल जाता ज्यों
धूल-भरा आँगन ।
bahut sunder
तपता माथा
हो गया शीतल
पाई छुअन
मिट गए संशय
मन की उलझन ।
kamal ka likha hai apno ka sparsh matr asim aanand deta hai .
bahut khub is vidha ke bhi maharathi hain aap
saader
rachana
इन चौकों में भी कोई बात है जो दिल को छूती है, भाई साहब आप तो कमाल कर रहे हैं। इतने सुन्दर साहित्यिक प्रयोग करके दिखला रहे हैं कि अपने मन की सच्ची अभिव्यक्ति ऐसे भी संभव है। बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत चोका है...मन को छू जाने वाला...मेरी बधाई...।
ReplyDeleteप्रियंका
बहुत सुन्दर लिखा है.. सुन्दर रेशम से रिश्ते
ReplyDeleteतपता माथा
ReplyDeleteहो गया शीतल
पाई छुअन
मिट गए संशय
मन की उलझन ....
बहुत ही सुन्दर चोका ....लाजवाब...नि:शब्द कर दिया ....
दरक गया मन का दर्पण.......
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
bahut-kuch.blogspot.com
man ko chhuti panktiyaan.badhaai.
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