रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
हाथ की रेखाओं में
होता है कर्मों का लेखा -जोखा;
क्योंकि हाथ में पड़े गट्टे
दिखाते हैं कर्म करने की दृढ़ता
लेकिन
चरण भी बताते हैं अपनी पहचान
दिखाते हैं ज़िन्दग़ी का मुकाम
चरण ही बनाते हैं आचरण
किधर जाते हैं चरण?
वही दिशाएँ
सारा लेखा-जोखा रखती हैं
आचरण का मधुर फल चखती हैं।
वे चरण जो मेरी दिशा तय करते
बरसों पहले
चुपचाप , बिना बताए
अचानक अँधेरे में गुम हो गए
उन्हें तो अभी नापने थे
ढेर सारे रास्ते
पाने थे बहुत सारे मुकाम
वे चरण इतने प्यारे थे कि
तारों के बीच जाकर
आकाश गंगा में खो गए
और हम उनको छूने के लिए
सिर्फ़ माथा झुकाए रह गए
पर आज चारों तरफ़ महसूस होता है-
उन चरणों के निशान,
उनकी खुशबू,
रास्ता खोजने में मदद करती है
आज भी उन चरणों से
प्यार-दुलार की आवाज़ आती है-
‘’शाबाश ! बढ़े चलो पुत्तर
ये धरती तुम्हारी है
जिसके चरण सही दिशा में बढ़ते हैं
उसका मज़मून
सारी दुनिया वाले
सदियों तक पढ़ते हैं।”
टप्- टप्- टप्- टप्
आँखों का गरम जल
उन निशानों पर टपकता है
वे चरण
और भी उजाला करने लगते हैं
साफ़-शफ़्फ़ाक़ दिखने लगती हैं -
सारी दिशाएँ,
महकने लगती हैं फिज़ाएँ
मेरे शुभ आचरण वाले पिता
आज भी बसे हैं मेरे तन-मन में
फेरते हैं हाथ आज भी
सोते -जागते ,थकान में ,सपन में
देते हैं हल्ला शेरी-
“बढ़े चलो पुत्तर
ये धरती तुम्हारी है
तुम्हें बनानी है दुनिया की नई तस्वीर
तुम्हें लिखनी है एक नई इबारत
और तुम्हें बनाना है
एक नई पगडण्डी
जिससे होकर लोग जा सकें,
जीवन का सत्य पा सकें।”
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तुम्हें बनानी है दुनिया की नई तस्वीर
ReplyDeleteतुम्हें लिखनी है एक नई इबारत
और तुम्हें बनाना है
एक नई पगडण्डी
जिससे होकर लोग जा सकें,
जीवन का सत्य पा सकें।”
बहुत सुन्दर युवा पीढी को प्रेरना देती हुयी रचना। बधाई आपको।
dil ko chhu gai panktiya.badhai ho,bhut hi achhi rachna.
ReplyDeleteप्रेरणादायक रचना .. मन को छूती हुयी
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी भाव, प्रेरणादायक रचना!
ReplyDeleteजिसके चरण सही दिशा में बढ़ते हैं
ReplyDeleteउसका मज़मून
सारी दुनिया वाले
सदियों तक पढ़ते हैं।”
बढ़े चलो पुत्तर
ये धरती तुम्हारी है
तुम्हें बनानी है दुनिया की नई तस्वीर
तुम्हें लिखनी है एक नई इबारत...
ख़ूबसूरत और सटीक पंक्तियाँ! बहुत सुन्दर, लाजवाब और प्रेरणादायक रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! हर एक पंक्तियाँ दिल को छू गयी! शानदार प्रस्तुती!
तुम्हें बनानी है दुनिया की नई तस्वीर
ReplyDeleteतुम्हें लिखनी है एक नई इबारत
और तुम्हें बनाना है
एक नई पगडण्डी
जिससे होकर लोग जा सकें,
जीवन का सत्य पा सकें।”
Behtreen ....
अच्छी रचना
ReplyDeleteरामेश्वर जी ,
ReplyDeleteआपने यह कविता ही नहीं लिखी .....यह तो उस दिल की पीड़ा है जिसने इस दर्द को छोटी आयु में झेला है | सन्तान चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हो जाए ...माँ -बाप के लिए वो बच्चे ही होतें हैं ....और माँ -बाप का साया वो हमेशा चाहते हैं |
वाह रे ! "हिमांशु कविमन" ....क्या तेरी पकड़ है ...कितनी गहरी सोच है ...........
जब मैंने कविता पढ़नी शुरू की तो बिलकुल नार्मल थी .....कुछ पंक्तियाँ पढ़ने के बाद मन भर आया ....और जब कविमन ने कविता में ...टप्- टप् आँसू की बात की....मुझे पता भी न चला ... तब तक मेरी आँखों से टप्- टप् आँसू टपकने लगे ....और आगे पढ़ा ही नहीं गया ....पढ़ना बंद कर दिया | मन को चैन फिर भी न था ...फिर कम्पुटर खोला ....फिर से अधूरी छोड़ी कविता पढ़ने बैठी |
बरसों पहले
चुपचाप , बिना बताए
अचानक अँधेरे में गुम हो गए........
सच में ...पता नहीं कहाँ गुम हो गए ...
और हम उनको छूने के लिए
सिर्फ़ माथा झुकाए रह गए.........
हमने तो अभी बहुत सी बातें करनी थीं उनके साथ ....
मेरे पिताजी डाकटर थे और मेरे नाम के आगे भी डा. लिखा देखना चाहते थे ...
“बढ़े चलो पुत्तर
ये धरती तुम्हारी है..........
यह पंक्तियाँ पढ़ते ही मुझे मेरे पिताजी की आवाज़ सुनाई देने लगी .."शाबाश !...वाह बई वाह ! ...हमेशा यही कहा करते थे ...जब भी हम बहन-भाई कोई काम करते ...खुलकर हर अच्छी बात की तारीफ करना ...उनका सबसे बड़ा गुण था !
मेरे शुभ आचरण वाले पिता
आज भी बसे हैं मेरे तन-मन में
फेरते हैं हाथ आज भी
सोते -जागते ,थकान में ,सपन में
देते हैं हल्ला शेरी..........
ठीक कहा 'हिमांशु जी' ...आज भी पिताजी मेरे पास ही हैं ...वह मेरे दिल में हैं और कभी -कभी जब भी कुछ बुरा होने वाला होता है उस रात पिताजी मेरे .... सपने में जरुर मुझे मिलते हैं |कुछ अच्छा हुआ हो तो शाबाश तो आज भी मिलती है !
हरदीप
क्या बात है.. बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत ही मन छूकर तरंगीत करने वाली कविता...बेहद खुबसूरत
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