skip to main |
skip to sidebar
रिश्तों की चादर
भावना कुँअर
1
थे पंख उधार लिये
ख़्वाबों की ज़िद में
बादल भी पार किये ।
2
तुमसे बातें करना
पाया है मैंने
अमृत -भरा ये झरना।
3
हरदम गहरे चुभते
काँटों में उलझे
दिल चीरें ये रिश्ते।
4
बचपन को खोया है
बीज अमानुष बन
किसने ये बोया है?
5
कैसी मजबूरी है
रिश्तों की चादर
होती ना पूरी है।
-0-
कैसी मजबूरी है
ReplyDeleteरिश्तों की चादर
होती ना पूरी है।
बहुत भावपूर्ण माहिया ...भावना जी ...बधाई ...
बहुत खूबसूरत...पर ये बहुत अच्छा लगा...
ReplyDeleteकैसी मजबूरी है
रिश्तों की चादर
होती ना पूरी है।
बधाई...|
विविधता लिए सुंदर माहिया। यह बहुत प्रभावित कर गया -
ReplyDeleteथे पंख उधार लिये
ख़्वाबों की ज़िद में
बादल भी पार किये ।
पंख उधार लिये
ReplyDeleteख़्वाबों की ज़िद में
बादल भी पार किये....
behad khoobsurat rachna ....
थे पंख उधार लिये
ReplyDeleteख़्वाबों की ज़िद में
बादल भी पार किये ।
बहुत सुन्दर माहिया.. भावना जी.. बधाई!
Aap sabhi ka tahe dil se shukariya ...
ReplyDeletevastav men rishte prem se bante hain, prem bantane se badhta jata hai. bahut sundar. badhai..
ReplyDeletepushpamehra
shandaar ....-
ReplyDeleteविविध भावों से परिपूर्ण बहुत सुन्दर माहिया ....
ReplyDeleteबचपन को खोया है
बीज अमानुष बन
किसने ये बोया है?....सामयिक चिंता ...
शुभ कामनाओं के साथ
ज्योत्स्ना शर्मा