पथ के साथी

Sunday, June 23, 2013

रिश्तों की चादर

भावना कुँअर
1
थे पंख उधार लिये
ख़्वाबों की ज़िद में
बादल भी पार किये ।
 2
तुमसे बातें करना
पाया है  मैंने 
अमृत -भरा ये  झरना।
3
हरदम गहरे  चुभते
काँटों में उलझे
दिल चीरें ये रिश्ते।
4
बचपन को खोया है
बीज अमानुष बन
किसने ये बोया है?
5
कैसी मजबूरी है
रिश्तों की चादर
होती ना पूरी  है।
-0-

9 comments:

  1. कैसी मजबूरी है
    रिश्तों की चादर
    होती ना पूरी है।

    बहुत भावपूर्ण माहिया ...भावना जी ...बधाई ...

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  2. बहुत खूबसूरत...पर ये बहुत अच्छा लगा...
    कैसी मजबूरी है
    रिश्तों की चादर
    होती ना पूरी है।
    बधाई...|

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  3. विविधता लिए सुंदर माहिया। यह बहुत प्रभावित कर गया -

    थे पंख उधार लिये
    ख़्वाबों की ज़िद में
    बादल भी पार किये ।

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  4. पंख उधार लिये
    ख़्वाबों की ज़िद में
    बादल भी पार किये....

    behad khoobsurat rachna ....


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  5. थे पंख उधार लिये
    ख़्वाबों की ज़िद में
    बादल भी पार किये ।
    बहुत सुन्दर माहिया.. भावना जी.. बधाई!

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  6. Aap sabhi ka tahe dil se shukariya ...

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  7. vastav men rishte prem se bante hain, prem bantane se badhta jata hai. bahut sundar. badhai..


    pushpamehra

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  8. विविध भावों से परिपूर्ण बहुत सुन्दर माहिया ....
    बचपन को खोया है
    बीज अमानुष बन
    किसने ये बोया है?....सामयिक चिंता ...
    शुभ कामनाओं के साथ
    ज्योत्स्ना शर्मा

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