1- कुण्डलिया
ज्योत्स्ना प्रदीप
ज्योत्स्ना प्रदीप
सरहद के उस पार पर ,बड़ा अजब है फाग ।
होली खेले रात दिन ,मन में लेकर आग।।
मन में लेकर आग ,बहाए रंग अनूठे।
छ्लनी बैरी-देह, वतन की खुशियाँ लूटे ।।
विजय घोष के संग ,मात का दिल है गदगद।
लिखती है नव गीत ,हमारी प्यारी 'सरहद' ।।
-0-
2-हरियाणा साहित्य अकादमी-परिष्कार कार्यशाला के विद्यार्थी
1-पूनम
1
सत्य है सदियों
पुराना, बात ना
कोई नई,
प्रश्न है अब एकता
का, और ना
कोई भी जवाब,
माँगता है वक्त
हमसे, गुज़रे
लम्हों का हिसाब।
था कभी ऐसा ज़मी पर, धर्म था ना जात थी,
प्रेम ही था एक
नारा, साथ की
ही बात थी,
प्रेम ही इक मूल था, ना विद्वत्ता का था नकाब
माँगता है वक्त
हमसे.....
टूटती- सी जा रही, विश्वास की अब हर कड़ी,
बढ़ रहा है भेद ही, अब इस ज़मी पर हर घड़ी,
ना रही इंसान में, इंसानियत की कोई आब
माँगता है वक्त
हमसे.....
चाहतों की भीड़ में
ही, छिप गई
खामोशियाँ,
जिस्म में ही दब गई
है, रूह की
अब सिसकियाँ,
बह रहा तन्हाइयों
का, अब यहाँ
रग में सैलाब,
माँगता है वक्त
हमसे.....
हम चले जो खुद को
फिर, वक्त
भी दोहराएगा,
मोतियों की माल सा, राष्ट्र ये बंध जाएगा
नहीं रहेगा धड़कनों
पे, दासता
का अब हिजाब
माँगता है वक्त
हमसे.....
-0-648/2 दयाल सिंह कॉलोनी, नज़दीक अलमारी फैक्टरी, सिसाय रोड़, हांसी- 125033-0-
-0-
2-माहिया-राहुल लोहट
1
मन्दिर ना मालिक
वो तन में बसता है।
2
महफिल खिल जाएगी
चलकर तो देखो
मंजिल मिल जाएगी।
3
ना धन ना माया में
सुख बस मिलता है
अपनों की छाया में।
4
वो बात निराली है
अपने बचपन की
सौगात निराली है।
5
अब सुख की बारी है
हिम्मत के आगे
हर मुश्किल हारी है।
6
दु:ख सुख में ढलता है
रात अगर है तो
दीपक भी जलता है।
7
भँवरे जैसे जीना
खींच रिवाजों से
मानवता रस पीना।
8
तुम मान कहो इनको
बेटी है बेटी
मत दान कहो इनको।
9
खुशबू में खोया हूँ
धरती माता के
कदमों में सोया हूँ।
10
माटी ये चन्दन है
मेरी धरती माँ
चरणों में वन्दन है।
-0- राहुल लोहट
गांव -खरड़वाल,तहसील-नरवाना ,जिला -जीन्द
Email--wrrahulkumar@gmail.com
सभी को बहुत सारी बधाई और शुभ्काकामनाएँ ! विशेषकर इन नवयुवकों को जिनका अपनी मातृभाषा और कविता के प्रति जो निर्मल भावना जाग्रत हो रही है, इसे देखकर नि:संदेह हिन्दी के उज्ज्वल भविष्य की आशा करने में संदेह नहीं है | अब भाषा की आबरू इन्हीं के हाथ में है | बहुत ही सुंदर रचनाएं | श्याम त्रिपाठी -हिन्दी चेतना
ReplyDeleteप्रिय ज्योत्स्ना जी सुंदर वीर रस से परिपूर्ण कुण्डलियाँ ।हार्दिक बधाई...जय हिन्द ।
ReplyDeleteप्रिय पूनम ,प्रिय राहुल आप दोनों को शुभ आशीर्वाद ..ऐसे ही लिखते रहिए । बहुत सुंदर गीत और माहिया । हार्दिक बधाई ।
राहुल के बहुत सुन्दर माहिया | बधाई और शुभकामनाएं |
ReplyDeleteमन को गर्व से भरती बहुत ही सुंदर रचनाएँ ।
ReplyDelete'सरहद के नवगीत' बहुत बढ़िया ज्योत्स्ना जी ...बधाई !
राष्ट्र प्रेम से ओतप्रोत सुंदर रचनाओं के लिए प्रिय पूनम और राहुल को भी हार्दिक बधाई,
खूब शुभकामनाएँ 👌💐
सतसैया के दोहरे, ज्यों नावक के तीर।
ReplyDeleteदेखन में छोटे लगे, घाव करें गम्भीर।।
बहुत ही सारगर्भित रचनाएँ।
इन रचनाकारों को नमन।
सटीक रचनाएँ
ReplyDeleteज्योत्सना जी,वीर रस से परिपूरित कुंडलियाँ । बधाई।
ReplyDeleteप्रिय पूनम सुंदर गीत ,प्रिय राहुल सुंदर माहिया। बधाई एवं शुभकामनाएँ ।
ज्योत्स्ना जी, पूनम जी एवं राहुल जी,
ReplyDeleteआप सभी की रचनाएँ बहुत सुन्दर और भावपूर्ण है. आप सभी को शुभकामनाएँ.
सारगर्भित रचनाओं के लिए ज्योत्स्ना जी, पूनम जी, राहुल जी आप सभी को बहुत-बहुत बधाई।
ReplyDeleteआद.भैया जी का तथा आप सभी का दिल से आभार मेरा हौसला बढानें के लिए !
ReplyDeleteप्रिय पूनम तथा राहुल को सुन्दर सृजन के लिए बहुत-बहुत बधाई!
ReplyDeleteभविष्य के लिए ढेरों शुभकामनाएँ !
ज्योत्स्ना जी, सुन्दर कुंडलियों के लिए बहुत बधाई...|
ReplyDeleteराहुल और पूनम, आप की लेखनी भविष्य के लिए बहुत संभावनाएँ जगाती हैं...| बहुत सुन्दर सृजन है आप दोनों का...| हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ आप दोनों को...|