रामेश्वर
काम्बोज ‘हिमांशु’
1
हमसे क्या
आज मिले
जग के उपवन
में
हम सातों
जनम खिले ।
2
काँटों ने
घेरा तन
अपनों ने
कुचला
फूलों -सा
कोमल मन ।
3
हर साँस लगे
पहरे
घुटता दम
मेरा
तुम भी
निर्दय ठहरे ।
4
अहसान किए इतने
नीले अम्बर में
तारे चमके जितने ।
5
तुम मेरी पूजा हो
तुमसे भी प्यारा
कोई ना दूजा हो ।
6
तुम सब दु:ख जानो हो
दिल में दर्द उठे
तुम ही पहचानो हो ।
-0-
सुन्दर हाइकू..
ReplyDeleteतुम मेरी पूजा हो
ReplyDeleteतुमसे भी प्यारा
कोई ना दूजा हो ।
मर्मस्पर्शी
काम्बोज जी, आपके सभी माहिया अनुभवों से उपजे हैं
ReplyDeleteऔर दिल से निकले हैं; मर्मस्पर्शी हैं मैं आपसे इतना
जरूर कहना चाहूँगा, " कोमल मन को जो कुचलें, वे अपने नहीं होते,
जो खुली आंखों को दिखते, वे सपने नहीं होते।"
बहुत सुंदर भाव! बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति!:-)
ReplyDelete~सादर!!!
आपके सभी माहिया भावपूर्ण हैं।
ReplyDeleteअनुभवी कलम से संकोच क्यों .....?
ReplyDeleteहम तो आपसे ही सीखते हैं ....
सभी एक से बढ़कर एक हैं ....पर मोनिका जी की पसंद हमें भी प्रिय लगी ....:))
गहन ....सुंदर अभिव्यति ...!!
ReplyDeleteसादर
शुभकामनायें .......
तुम मेरी पूजा हो
ReplyDeleteतुमसे भी प्यारा
कोई ना दूजा हो।
बहुत खूबसूरत भाव भाव।
सादर
हृदय की बात, शब्दों ने कही, भली लगी | सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बधाई |
ReplyDeleteतुम सब दु:ख जानो हो
ReplyDeleteदिल में दर्द उठे
तुम ही पहचानो हो ।
bhaiya koi line nahi ek ek shabd sunder hai ab isi me dekhiye duniya aapki upar ki khushi dekhti hai pr koi apna hi aapke man ko dekhta hai kamal
saader
rachana
सभी माहिया में ह्रदय के गहरे भाव. प्रेम का मीठा रंग और जीवन की तल्खियों का गाढा रंग. बहुत भावपूर्ण, शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteतुम सब दु:ख जानो हो
ReplyDeleteदिल में दर्द उठे
तुम ही पहचानो हो ।
बहुत ही सुन्दर...|
हार्दिक बधाई...|
ReplyDeleteकाँटों ने घेरा तन
अपनों ने कुचला
फूलों -सा कोमल मन
तुम मेरी पूजा हो
तुमसे भी प्यारा
कोई ना दूजा हो ।
तुम सब दु:ख जानो हो
दिल में दर्द उठे
तुम ही पहचानो हो ।
Bahut gahan or apnepan ki abhivyakti se saje in mahiya ki aapko haardik badhai...aapki lekhni yun hi chamakati rahe...
बहुत सुंदर भाव!
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