पथ के साथी

Tuesday, December 3, 2024

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माहिया- रश्मि विभा त्रिपाठी



1
खोलो मोखे मन के
धूप मुहब्बत की
आने दो छन- छनके।
2
दरवाज़ा खड़का है
शायद वो आए
मेरा दिल धड़का है।
3
होठों पे आह नहीं
तुम जब अपने हो
कोई परवाह नहीं।
4
तुमको जिस पल पाया
हर इक मुश्किल का
मैंने तो हल पाया।
5
हर रोज सँवरने दो
मन में चाहत का
अहसास न मरने दो।
6
तेरे ही पास मुझे
हरदम रखता है
तेरा अहसास मुझे।
7
बोले ये दिल धक से
मुझको अपना तुम
कहते हो जब हक़ से।
8
जीवन को सींच रही
मीत मुहब्बत ये
जो अपने बीच रही।
9
वो पास नहीं होता
मुझको जीने का
आभास नहीं होता।
10
तुम मुझको गैरों में
हरगिज़ ना गिनना
पड़ती हूँ पैरों में।

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13 comments:

  1. वाह, बहुत सुन्दर मनभावन माहिया... बधाई रश्मि विभा जी 💐💐

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  2. वाह
    बहुत सुंदर महिये। बधाई

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  3. मन को मोहते बहुत सुंदर माहिया विभा जी। हार्दिक बधाई 💐

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  4. वाह! बहुत सुन्दर माहिया।बधाई प्रिय रश्मि जी।

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  5. मनमोहक माहिया...हार्दिक बधाई रश्मि जी।

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  6. मेरे माहिया प्रकाशित करने हेतु आदरणीय गुरुवर का हार्दिक आभार।
    आप आत्मीय जन की टिप्पणी की हृदय तल से आभारी हूँ।

    सादर

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  7. वाह ! दिल को छूने वाले माहिया

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  8. बेहतरीन, मनभावन माहिया । हार्दिक बधाई रश्मि जी ।सुदर्शन रत्नाकर

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  9. बहुत सुंदर, मनमोहक माहिया!

    ~सादर
    अनिता ललित

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  10. वाह ! थोड़ा सा रूमानी हो जाएं ! तरो - ताज़ा हो जाएं !

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  11. सभी माहिया बहुत सुन्दर, बधाई रश्मि जी.

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