माहिया- रश्मि विभा त्रिपाठी
1
खोलो मोखे मन के
धूप मुहब्बत की
आने दो छन- छनके।
2
दरवाज़ा खड़का है
शायद वो आए
मेरा दिल धड़का है।
3
होठों पे आह नहीं
तुम जब अपने हो
कोई परवाह नहीं।
4
तुमको जिस पल पाया
हर इक मुश्किल का
मैंने तो हल पाया।
5
हर रोज सँवरने दो
मन में चाहत का
अहसास न मरने दो।
6
तेरे ही पास मुझे
हरदम रखता है
तेरा अहसास मुझे।
7
बोले ये दिल धक से
मुझको अपना तुम
कहते हो जब हक़ से।
8
जीवन को सींच रही
मीत मुहब्बत ये
जो अपने बीच रही।
9
वो पास नहीं होता
मुझको जीने का
आभास नहीं होता।
10
तुम मुझको गैरों में
हरगिज़ ना गिनना
पड़ती हूँ पैरों में।
-0-
वाह, बहुत सुन्दर मनभावन माहिया... बधाई रश्मि विभा जी 💐💐
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteबहुत सुंदर महिये। बधाई
मन को मोहते बहुत सुंदर माहिया विभा जी। हार्दिक बधाई 💐
ReplyDeleteवाह! बहुत सुन्दर माहिया।बधाई प्रिय रश्मि जी।
ReplyDeleteमनमोहक माहिया...हार्दिक बधाई रश्मि जी।
ReplyDeleteमेरे माहिया प्रकाशित करने हेतु आदरणीय गुरुवर का हार्दिक आभार।
ReplyDeleteआप आत्मीय जन की टिप्पणी की हृदय तल से आभारी हूँ।
सादर
बेहतरीन माहिया!!
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteवाह ! दिल को छूने वाले माहिया
ReplyDeleteबेहतरीन, मनभावन माहिया । हार्दिक बधाई रश्मि जी ।सुदर्शन रत्नाकर
ReplyDeleteबहुत सुंदर, मनमोहक माहिया!
ReplyDelete~सादर
अनिता ललित
वाह ! थोड़ा सा रूमानी हो जाएं ! तरो - ताज़ा हो जाएं !
ReplyDeleteसभी माहिया बहुत सुन्दर, बधाई रश्मि जी.
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