पथ के साथी

Wednesday, April 17, 2024

1412- पता ही खो गया

रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’


सब भाव खो गए
जीवन खो गया
अचानक भला ये
क्या-क्या हो गया!

जब भाव थे मरे,
भाषा भी मरी

हर बाट हो गई

काँटों  से भरी।

यूँ कहाँ मैं भला
अब ढूँढूँ तुम्हें
हर  कोई यहाँ
शूल ही बो गया।

 

 सूख गए सब रस

कविता खो गई

पथ भीगा मिला

यूँ साँझ हो गई ।


कंठ भी है रुँधा
स्वर भी गुम हुआ
पास में जो था
पता ही खो गया। 

17 comments:

  1. मानो आपने मेरे भाव संसार को शब्द दे दिए। प्रत्येक शब्द अंतस को छू गया। सृजन सर्वव्यापक हो वही उसकी श्रेष्ठता की कसौटी है। प्रणाम भैया 🙏

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  2. जब भाव थे मरे, भाषा भी मरी...

    अंतस की वेदना को व्यक्त करती मार्मिक कविता!!

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  3. अंतर्मन को छू जाने वाली सुंदर कविता। सुदर्शन रत्नाकर

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  4. बहुत ही भावपूर्ण कविता।
    एक- एक शब्द अंतस को छू गया।

    आपकी लेखनी को नमन गुरुवर 🙏

    सादर

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  5. वेदना की सघन अभिव्यक्ति, अंतस को झकझोरती मार्मिक कविता।आपकी लेखनी को नमन।

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  6. बहुत सुन्दर कविता।

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  7. बहुत मार्मिक कविता।

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  8. अंतर्मन को छू गई आपकी कविता कम्बोज जीं । बधाई स्वीकारें। सविता अग्रवाल “ सवि”

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  9. बहुत भावपूर्ण कविता।हार्दिक बधाई भैया।

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  10. बहुत बहुत सुन्दर

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  11. आप सभी रसज्ञों का हृदय से आभारी हूँ।

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  12. संवेदनशील रचना. अभिनन्दन आदरणीय.

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  13. बेहतरीन रचना

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  14. वाह्ह... अत्यंत मनोरम आदरणीय सर जी 🙏🏻

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  15. मन को छू गई रचना. सच है भाव मरते हैं तो भाषा भी ख़त्म और हम ख़ामोश! बहुत सुन्दर रचना. आभार!

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  16. हृदय की गहराइयों से आप सबका अभार

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