रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
सब भाव खो गए
जीवन खो गया
अचानक भला ये
क्या-क्या हो गया!
जब भाव थे मरे,
भाषा भी मरी
हर बाट हो गई
काँटों से भरी।
यूँ कहाँ मैं भला
अब ढूँढूँ तुम्हें
हर कोई यहाँ
शूल ही बो गया।
कविता खो गई
पथ भीगा मिला
यूँ साँझ हो गई ।
कंठ भी है रुँधा
स्वर भी गुम हुआ
पास में जो था
पता ही खो गया।
मानो आपने मेरे भाव संसार को शब्द दे दिए। प्रत्येक शब्द अंतस को छू गया। सृजन सर्वव्यापक हो वही उसकी श्रेष्ठता की कसौटी है। प्रणाम भैया 🙏
ReplyDeleteजब भाव थे मरे, भाषा भी मरी...
ReplyDeleteअंतस की वेदना को व्यक्त करती मार्मिक कविता!!
अंतर्मन को छू जाने वाली सुंदर कविता। सुदर्शन रत्नाकर
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण कविता।
ReplyDeleteएक- एक शब्द अंतस को छू गया।
आपकी लेखनी को नमन गुरुवर 🙏
सादर
वेदना की सघन अभिव्यक्ति, अंतस को झकझोरती मार्मिक कविता।आपकी लेखनी को नमन।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता।
ReplyDeleteबहुत मार्मिक कविता।
ReplyDeleteअंतर्मन को छू गई आपकी कविता कम्बोज जीं । बधाई स्वीकारें। सविता अग्रवाल “ सवि”
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण कविता।हार्दिक बधाई भैया।
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआप सभी रसज्ञों का हृदय से आभारी हूँ।
ReplyDeleteसंवेदनशील रचना. अभिनन्दन आदरणीय.
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteवाह्ह... अत्यंत मनोरम आदरणीय सर जी 🙏🏻
ReplyDeleteमन को छू गई रचना. सच है भाव मरते हैं तो भाषा भी ख़त्म और हम ख़ामोश! बहुत सुन्दर रचना. आभार!
ReplyDeleteहृदय की गहराइयों से आप सबका अभार
ReplyDeleteमन के भाव खोने की पीड़ा को अभिव्यक्त करती हुई अत्यंत भावपूर्ण रचना! आपको एवं आपकी लेखनी को नमन!
ReplyDelete~सादर
अनिता ललित
मन को छूते हुए शब्द हैं, बहुत प्यारी रचना...मेरी हार्दिक बधाई
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