रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
1
कोई मिलता भी कैसे, चाहा नहीं किसी को।
सिर्फ चाहा जब तुम्हें
ही, समय पाखी बन उड़ा..।
2
जाऊँगा कहाँ मैं तुम्हारे बिना
रही तुम्हीं मंजिल, रास्ता तुम्हीं हो!
3
भीड़ और कोलहल, फिर भी अकेला मन
कोई ना आया, याद तेरी आ गई!
4
कैसे मैं तेरा दुःख बाँटूँ
कैसे पाश दुःखों के काटूँ
निशदिन सोचूँ राह ना पाऊँ
पता नहीं किस द्वारे जाऊँ
5
जिस पल सोचा ढंग से जी लें,
तभी किसी ने पत्थर मारा।
कौन पाप मैंने कर डाला
सोच रहा है मन बेचारा।
6
महलों की रौशनी भटकाती हैं उम्रभर!
रह -रहकर हमें टपकता छप्पर याद आया।
7
हो कितना भी अँधेरा, तुम्हें कभी रुकना नहीं है।
सुख -दुःख मौसम समझ लो, बीत जाएँगे सभी
हम तुम्हारे साथ हैं, तुम्हें पथ में रुकना नहीं है।
8
तुम समुद्र हो न?
कहाँ से आते हो?
इतना सारा प्यार
कहाँ से लाते हो!
कुछ तो बोलो
वाणी में वही मिश्री घोलो
9
मैं तुम्हारी रूह का ही एक हिस्सा हूँ
लघुकथा में ज्यों पिरोया एक किस्सा हूँ ।
10
पता नहीं कैसे हो त्राण?
तुझमें अटके मेरे प्राण।
-0-
बहुत सुन्दर! ❤️🌺
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteप्रेम के इस अंदाज़ को बेहतरीन शब्द आपने दिए हैं-बहुत सुंदर।
ReplyDeleteवाह ! कितनी सही बात कही "भीड़ और कोलहल, फिर भी अकेला मन"
ReplyDeleteManju Mishra ( www.manukavya.wordpress.com )
सर ! स्वाभाविक रूप में प्रेम को अभिव्यक्त किया है,इस कारण सौंदर्य निखर गया है। बहुत सुंदर लिखा है सर ,हार्दिक शुभकामनाऍं।
ReplyDeleteझरना मन का कह चला
ReplyDeleteबातें मन की कह चला
झरना मन का बह चला
Deleteबहुत ही संवेदनशीलता समायुक्त सृजन। हार्दिक बधाई सहित सादर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सार्थक 👏🏼👏🏼👏🏼👏🏼😂
ReplyDeleteबहुत गहरी बात कही!
जिस पल सोचा ढंग से जी लें,
तभी किसी ने पत्थर मारा,
कौन पाप मैंने कर डाला
सोच रहा है मन बेचारा।
कौन पाप मैने कर डाला
ReplyDeleteसोच रहा है मन बेचारा
बहुत सुंदर रचनाएं जीवन से जुड़ी
हार्दिक शुभकामनाएं
बहुत सुंदर, अंतर की गहराई से निकली भावपूर्ण अभिव्यक्ति। हार्दिक बधाई ।सुदर्शन रत्नाकर
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ReplyDeleteमैं तुम्हारी रूह का ही एक हिस्सा हूँ
लघुकथा में ज्यों पिरोया एक किस्सा हूँ ।... कोमल अनुभूतियों की सुन्दर अभिव्यक्तियाँ, संवेदना के गहन तल को छूती कविताएँ. हार्दिक बधाई 💐💐
बहुत ही सुन्दर 💐
ReplyDeleteमैं तुम्हारी रूह का ही एक हिस्सा हूँ
ReplyDeleteलघुकथा में ज्यों पिरोया एक किस्सा हूँ ।
सभी अनुभूतियों की अभिव्यक्ति अत्यंत सुंदर। हार्दिक बधाई आपको।
गहन अनुभूतियों की सहज अभिव्यक्ति मन को अभिभूत कर गई, आज के परिपेक्ष्य में कितना सटीक है.....
ReplyDeleteमहलों की रौशनी भटकाती हैं उम्रभर!
रह -रहकर हमें टपकता छप्पर याद आया।
सादर नमन
कमला निखुर्पा
"मैं तुम्हारी रूह का ही एक हिस्सा हूँ
ReplyDeleteलघुकथा में ज्यों पिरोया एक किस्सा हूँ"
अंतस की गहराई ने निकली भावाभिव्यक्ति। आपकी संवेदना सदा ही भावनाओं को स्पंदित करती है आदरणीय भैया। बहुत कम शब्दों में बहुत कुछ कहती लघु रचनाएँ।
नमन आपको और आपके सृजन को 🙏
- सुशीला शील स्वयंसिद्धा
बहुत ही भावपूर्ण सृजन।
ReplyDeleteआपकी लेखनी को नमन गुरुवर 🙏
सादर
वाह इतनी सुंदर और मार्मिक अनुभूतियां
ReplyDeleteसभी गुणीजन का हृदय से आभार!🙏🌷🌹
ReplyDeleteवाह खूबसूरत अनुभूतियाँ रची हैं भाई काम्बोज जी । अनेक बधाई और शुभकामनाएँ । सविता अग्रवाल “ सवि “
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अनुभूतियाँ. हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ भइया.
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ReplyDeleteकैसे मैं तेरा दुःख बाँटूँ
कैसे पाश दुःखों के काटूँ
निशदिन सोचूँ राह ना पाऊँ
पता नहीं किस द्वारे जाऊँ— संवेदना से भीगी हुई पंक्तियाँ । प्रत्येक पद्यांश में जीवन दर्शन की झलक है । बधाई भैया ।
बहुत भावपूर्ण रचनाएं 🙏
ReplyDelete--रीत
बहुत मार्मिक और संवेदनशील अभिव्यक्ति! धन्यवाद आदरणीय भाई साहब।
ReplyDeleteजिस पल सोचा ढंग से जी लें,
ReplyDeleteतभी किसी ने पत्थर मारा।
कौन पाप मैंने कर डाला
सोच रहा है मन बेचारा।
बहुत अच्छा लिखा है भैया 🙏
रचना
बहुत सारगर्भित रचना।सादर प्रणाम आदरणीय।
Deleteकितनी भावपूर्ण, मर्मस्पर्शी और सारगर्भित बातें हैं, बहुत बधाई व सादर प्रणाम स्वीकारें।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteहृदय स्पर्शी लिखा है आपने अंकल जी।
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई आपको।