1-दूर –कहीं दूर/ शशि पाधा
अँधेरे में टटोलती हूँ
बाट जोहती आँखें
मुट्ठी में दबाए
शगुन के रुपये
सिर पर धरे हाथों का
कोमल अहसास
सुबह के भजन
संध्या की
आरतियाँ
लोकगीतों की
मीठी धुन
छत पर रखी
सुराही
दरी और चादर का
बिछौना
इमली, अम्बियाँ
चूर्ण की गोलियाँ
खो-खो, कीकली
रिब्बन परांदे
गुड़ियाँ –पटोले
फिर से टटोलती हूँ
निर्मल स्फटिक- सा
अपनापन
कुछ हाथ नहीं आता
वक्त निगल गया
या उनके साथ सब चला
गया
जो चले गए
दूर--- कहीं दूर
किसी अनजान
देश में
और फिर
कभी न लौटे।
-0-
2-कुछ शब्द बोए थे - रश्मि विभा त्रिपाठी
जैसे अभाव के
अँधेरे में
हो सविता!
खेतों में किसान ने
जब बीज बोए
तैयार करने को फसल
दिया था जब खाद- पानी
तो गेहूँ की सोने-
सी बालियों की
चमक में
उसे ऐसी ही हुई थी
प्रतीति,
मैं नहीं जानती
मेरी भविता
मेरे अतृप्त जीवन
ने तो
मन की
बंजर पड़ी जमीन पर
अभी- अभी कुछ शब्द
बोए थे
भावों की खाद डालकर
अनुभूति के पानी से
सींचा ही था
कि देखा-
कल्पवृक्ष- सी
वहाँ उग आई कविता।
और ऐसा लगा
मुझको जो चाहिए
जीने के लिए
मेरे कहने से पहले
पलभर में वो सबकुछ
लाकर
मेरे हाथ पर रखने आ
गए पिता।
-0-
सुंदर कविताऍं , हार्दिक शुभकामनाऍं।
ReplyDeleteआदरणीया शशि दीदी की बहुत सुन्दर कविता।
ReplyDeleteहार्दिक बधाई 🌹💐
मेरी कविता को सहज साहित्य में स्थान देने हेतु आदरणीय गुरुवर की आभारी हूँ।
सादर
सुन्दर कविता Shashi ji
ReplyDeleteसुन्दर कविता रश्मि जी
ReplyDeleteअतीत का स्मरण कराती सुंदर कविता। हार्दिक बधाई शशि जी।सुदर्शन रत्नाकर
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावपूर्ण कविता। हार्दिक बधाई रश्मि जी । सुदर्शन रत्नाकर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविताएँ।
ReplyDeleteस्नेही शशि जी आपकी कविता मुझे बचपन , अपने अतीत की गलियों में ले गई । हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteप्रिय रश्मि विभा , बहुत सार्थक , सुंदर सृजन के लिए हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर हार्दिक बधाई सादर
ReplyDeleteआप दोनों की कविताएँ बहुत सुन्दर. शशि जी ने तो मुझे अपने बचपन में पहुँचा दिया. शशि जी और रश्मि जी को बधाई.
ReplyDeleteआप सभी आत्मीयजन की टिप्पणी की हृदय तल से आभारी हूँ।
ReplyDeleteसादर
दोनों ही रचनाएं बहुत सुंदर हैं।
ReplyDeleteआप दोनों को बहुत बहुत बधाई।
रश्मि , आपके शब्दों के कल्पवृक्ष को मैंने भी अनुभव किया| मैं भी बचपन में अपने पिता को अपनी कवितायेँ सुनाती थी| बहुत सा आशीष मिलता था मुझे| एक सकोमल अहसास दिलाने वाली रचना के लिए आपको बधाई| सभी स्नेही मित्रों ने मेरी रचना को सराहा, आप सब का धन्यवाद | सहज साहित्य में स्थान देने के लिए काम्बोज भैया का आभार|
ReplyDeleteआदरणीय शशि पाधा जी पावन नेह का यह निर्वात हम भी अपने मन में महसूस करते हैं लगता है माँ, नानी के साथ ही वो अपनापन, लाड़-दुलार, ममता हमें छोड़ गए हैं। मन को छू गई आपकी रचना।
ReplyDeleteरश्मि जी आपकी रिक्तता ने कल्पवृक्ष उगा दिया। बहुत सुंदर सृजन। वाह !
आप दोनों को बहुत-बहुत बधाई 💐💐
बीते हुए वक़्त की ख़ूबसूरत यादें ताज़ा करती आदरणीया शशि दीदी की कविता बहुत कुछ याद दिला गई!
ReplyDeleteप्रिय रश्मि की कोमल भाव लिए कविता... बहुत सुंदर!
~सादर
अनिता ललित
कविताएँ बहुत सुन्दर कविताएँ... शशि जी और रश्मि जी को बहुत-बहुत बधाई।
ReplyDeleteसुंदर कविताऍं
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