1-कृष्णा वर्मा
न कोई कहा- सुनी
न शिकवा न कोई शिकायत
इक दूजे संग खेल रहे हैं
मैं और समय
वह अपनी ताक़त दिखाता है
और मैं अपना हौसला
कभी वह जीत जाता है तो कभी मैं
प्रशंसक हैं हम एक दूसरे के
मैं कितनी भी बना लूँ योजना
पर होता है सब
वक़्त के हिसाब से ही
मैं इतनी नहीं जो दिखाई देती हूँ
मेरे भीतर बहुत सी पुकारें हैं
जिसे कोई न सुन सका
कितनी इच्छाएँ कितने स्वप्न
और निहित हैं कई कमाल
ढेरों- ढेर सवाल
जिन्हें देना है जवाब
मैं लगी रही तुम्हें
बनाने और बचाने में
कभी तो देते मेरे
हौसलों को मान
बनी जवाब तुम्हारे हर सवाल का
तुम्हारी तन्हाइयों की साथी
तुम्हारे झुकाने पर झुकी
तुम्हारे रोकने पर रुकी
तुम्हें जिताने को हारी
कहीं नाम नहीं मेरा फिर
संग सारी उम्र गुज़ारी
तुम्हें तुम्हारे अपनों को अपनाया
किसी आस न उम्मीद पर
मैंने सारी मोहब्ब्तें वार दीं।
-0-
गौतमी पाण्डेय
1-सुनहरी
चिड़िया
फुदकती आ गई,
मेरी खिड़की से लगे पेड़ पर,
वह सुनहरी चिड़िया!
एक छोटी, सुंदर-सी
फुरगुद्दी!
थोड़ी श्याम और थोड़ी
हरी चिड़िया।
इस डाल से उस डाल पर,
ले हरित आभा भाल पर।
झुरमुटों से चहचहाती
अपने अस्तित्व को पुरज़ोर
तरीके से दर्ज कराती!
जीवन का उत्सव मनाती!
भार नहीं, कोई संग्रह नहीं,
कोई बोझ नहीं!
बस,
हर क्षण उत्सव!
हल्का होना,
हल्के हो जाना ही प्राप्य है,
एक वरदान है, जो
गति को ऊर्जित करता है।
उत्साह और स्फूर्ति लिए,
नाज़ुक, पतली टहनियों से
लटकती चिड़िया।
अपनी ही धुन में मगन
हर शाख पर मटकती चिड़िया।
आ गए कुछ कौवे!
इस थोड़ी सी हरियाली पर दावा करते,
अपने कर्कश स्वर से,
अपनी तथाकथित
शक्ति का दंभ भरते।
सिमटने लगी झुरमुटों में,
वह परी चिड़िया!
कौओं के आतंक से,
अपने घोंसले खोने के डर से,
उसी में छुपती,
वह डरी चिड़िया!
-0-
2-
मेरी आवाज़ के आगे
मेरी आवाज़ के आगे भी
क्या,
सुन सकते हो मुझे?
मेरे अंदाज़ के आगे भी
गुन सकते हो मुझे?
मैं,
मेरे शब्दों से आगे,
और मेरे रूप से परे हूँ...
क्या मेरे मौन से आगे भी,
पढ़ सकते हो मुझे?
मैं बरसूँ कभी तो ओस
और बिगड़ूँ तो हूँ तूफान...
क्या कभी मेरे जैसा ,
मुझसे ही, लड़ सकते हो मुझे?
कहा करते हो तुम-
"बोला और कुछ कहा भी करो"
"तुम्हारे साथ ही तो हूँ
तुम जहाँ भी रहो"
मगर क्या देख सकते हो
मुझे,
मेरे शब्दों से अलग?
समझ सकते हो तुम,
मुझको क्या इस सीमा से परे?
जैसे कभी ख़्वाबों की तरह
मैंने बुना था तुमको,
कई स्वप्नों के सैलाब
से चुना था तुमको।
क्या किसी ऐसे इक
सपने सा बुन सकते हो मुझे?
मेरी आवाज़ के आगे भी
क्या सुन सकते हो मुझे?
-0-
तीनों रचनाएँ मन में सवाल पैदा करती हैं और टीस भी. भावपूर्ण रचना के लिए कृष्णा जी एवं गौतमी जी को हार्दिक बधाई.
ReplyDeleteअहा ! बहुत दिनों बाद मन को सुकून देने वाली रचनाएँ पढ़ीं|उथल-पुथल के साथ संभावनाएं भी हैं | बहुत बधाई दोनों रचनाकारों को |
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविताऍं , दोनों को हार्दिक शुभकामनाऍं।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचनाएँ।
ReplyDeleteहार्दिक बधाई आदरणीय कृष्णा दीदी एवं गौतमी जी को।
सादर
बहुत सुंदर भावपूर्ण रचनाएँ। कृष्णा वर्मा जी एवं गौतमी पाण्डेय जी के हार्दिक बधाई। सुदर्शन रत्नाकर
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना...गौतमी जी को हार्दिक बधाई।
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