पथ के साथी

Sunday, November 12, 2023

1386

 

थोड़ा सा नेह

कमला निखुर्पा

 
भरा थोड़ा सा नेह

औ छलक उठा 

मन दीपक।

दिप-दिप जल उठी

सोई थी जो बाती।

लगन की लौ 

लहककर जल उठी 

लगने लगी 

हवा से होड़ 

जलने की 

बुझने की।

हवा चलती रही

दिया जलता रहा

नन्ही एक हथेली  

 करती रही ओट 

भरती रही नेह 

मन दीपक में।

7 comments:

  1. नन्ही हथेली करती रही ओट, भरती रही नेह... बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, आपकी लेखनी को नमन कमला जी!

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  2. बहुत सुन्दर कविता, बधाई कमला जी.

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  3. बहुत सुंदर कविता। बधाई कमला जी। सुदर्शन रत्नाकर

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  4. बहुत सुंदर

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  5. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...बधाई कमला जी।

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  6. आप सबका धन्यवाद । सहज साहित्य में मेरे भावों को स्थान देने के लिए भैया का आभार
    कमला निखुर्पा

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