पथ के साथी

Tuesday, June 21, 2022

1218-तुम्हें क्या दूँ मीत मेरे

 रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

मिला  जो झोली भर -भर प्यार।
अभी तक मुझ पर रहा उधार।।


मैं 
क्या तुम्हें दूँ मीत मेरे
तुम्हीं से जीवित गीत मेरे।
मैं सदा तेरा ही  कर गहूँ
सदा तेरे ही उर में  रहूँ।

              तुम  हो नैया  तुम्हीं पतवार।

             तुम्हीं हो प्राणों का संचार।।


पाऊँ तो बस तुझको पाऊँ
और के द्वार कभी न जाऊँ।
बसे  कण्ठ में गीत तुम्हारे
चुम्बन- चर्चित, मीत तुम्हारे।

             तैर जाऊँ जग- पारावार
             दो जो नयनों का उजियार।।

-0-



 

 

25 comments:

  1. तैर जाऊँ जग-पारावार ••वाह ••बहुत सुन्दर सर ! हार्दिक शुभकामनाएँ ।

    ReplyDelete
  2. प्रेम - भावना की बहुत सुंदर अभिव्यक्ति। सुदर्शन रत्नाकर

    ReplyDelete
  3. अहा ! बहुत ही भावपूर्ण सुन्दर रचना
    नमन गुरुवर

    ReplyDelete
  4. बहुत ही सुंदर, भावपूर्ण कविता।
    हार्दिक बधाई आदरणीय गुरुवर को।

    सादर

    ReplyDelete
  5. बहुत ही भावपूर्ण कविता,बहुत-बहुत बधाई आदरणीय भैया।

    ReplyDelete
  6. कोमल भावनाओं की सहज, सुंदर अभिव्यक्ति। धन्यवाद आदरणीय।

    ReplyDelete
  7. सचमुच प्यार मे उधार ही बना रहता है,उसे चुकाया नहीं जा सकता।बहुत सुंदर भाव।हार्दिक बधाई भाई साहब।

    ReplyDelete
  8. बहुत ही सुन्दर रचना गुरु जी।प्रेम की प्यारी अभिव्यक्ति समर्पण भावना से भरी पंक्तियाँ बेहद खूबसूरत। - पूनम सैनी

    ReplyDelete
  9. भावपूर्ण अभिव्यक्ति 🌹🌹

    ReplyDelete
  10. बहुत स्नेह भरी अभिव्यक्ति।

    ReplyDelete
  11. आहा... अति सुंदर एवं कोमल अभिव्यक्ति...सर 🌹🙏. 🌹

    ReplyDelete
  12. बहुत सुंदर कविता

    ReplyDelete
  13. नेह अमृत से सिंचित रचना, भावों से सराबोर कर गई, बधाई भाई जी ..

    ReplyDelete
  14. बहुत उम्दा, सुंदर रचना

    ReplyDelete
  15. स्नेह से परिपूर्ण कविता... अतिसुंदर! हार्दिक बधाई आदरणीय भैया जी!

    ~सादर
    अनिता ललित

    ReplyDelete
  16. स्नेहसिक्त - प्रेमिल भाव से ओतप्रोत सुन्दर अभिव्यक्ति के लिये खूब बधाई ।

    ReplyDelete
  17. विभा रश्मि

    ReplyDelete
  18. नेह से परिपूर्ण बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
    "तैर जाऊँ जग- पारावार"
    वाह

    ReplyDelete
  19. भावों से अभिसिंचित रचना हार्दिक बधाई शुभकामनाएं

    ReplyDelete
  20. आप सबकी अमूल्य आत्मीयता और असीम स्नेहसिक्त टिप्पणियों के लिए बहुत अनुगृहीत हूँ। आशा करता हूँ कि सहज साहित्य के सभी रचनाकारों को आपका सदा प्रोत्साहन मिलेगा। काम्बोज

    ReplyDelete
  21. लौकिक अलौकिक दोनों ही अर्थों में व्यापकता गहनता लिये मधुर गीत आदरणीय .

    ReplyDelete
  22. बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति...हार्दिक बधाई भाई साहब।

    ReplyDelete
  23. तुम मुझमें मैं तममें
    फिर कैसा लेन-देन ?

    उम्दा । सादर ।

    ReplyDelete
  24. वाह! बहुत सुन्दर प्रेमपूर्ण रचना, बधाई काम्बोज भाई.

    ReplyDelete
  25. आनंद आ गया इस मनोहारी रचना को पढ़कर

    ReplyDelete