प्रीति अग्रवाल
कितने वर्ष हो गए
ज़िन्दगी की ऊँची-नीची
पथरीली राहों पर
चलते चलते....
कितने मौसम बदल गए
कितने साथी बिछुड़ गए
कितने नए जुड़ गए...
मूल्यों की परिभाषा बदल गई
सिद्धांतों के परिधान बदल गए
नए ज़माने की मानो
चाल ही बदल गई...
पर मन के भाव...
वो अब भी वही हैं
अनुभूतियों की
अभिव्यक्ति तक की यात्रा
अब भी वही है
दुर्गम, और छोटी सी....
मन में ज्वार-भाटा उठता है
कुछ देर उथल- पुथल मचा
मंथन करता है,
फिर कलम को स्याही में डूबा देख
कुछ आश्वासन पाता है
अंततः कागज़ तक पहुँचकर ही
पूर्ण मुक्ति पाता है।
मन, इस सफर को
सहृदय, सहर्ष
बार-बार तय करता है,
बार-बार दोहराने की लालसा रखता है
अनन्त, अकल्पनीय संतुष्टि पाता है
और अभिव्यक्तियों का कारवाँ
यूँ ही बढ़ता जाता है।
-0-
और अभिव्यक्तियों का कारवाँ/यूँही बढ़ता जाता है...बहुत सुंदर भाव..अभिव्यक्तियों का कारवाँ यूँही बढ़ता रहे,आप यूँही सृजनरत रहें..शुभ एवं बधाई प्रीति जी।
ReplyDelete-0-
बिल्कुल सही कहा आपने प्रीति जी - पर मन के भाव.../ वो अब भी वही हैं / अनुभूतियों की / अभिव्यक्ति तक की यात्रा /अब भी वही है
ReplyDeleteबधाई आपको
अभिव्यक्ति का यह सुंदर कारवाँ नई रवानगी ले कर आगे बढ़ता रहे !
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिखा।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteहार्दिक बधाई आदरणीया प्रीति जी को।
पत्रिका में स्थान पाकर कितनी खुशी मिलती है, शब्दों में कहना मुश्किल। आदरणीय भाई साहब का हार्दिक आभार!
ReplyDeleteशिवजी भैया, पूर्वा जी, सुशीला जी, रश्मि जी, आप सब की स्नेहिल टिप्पणियां मेरी लेखनी को बल प्रदान करती हैं, आपका ह्र्दयतल से धन्यवाद!
बहुत सुंदर रचना...हार्दिक बधाई प्रीति।
ReplyDeleteसुन्दर भाव लिए, बेहतरीन रचना, हार्दिक शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना, बधाई प्रीति जी.
ReplyDeleteजेन्नी जी, भीकम सिंह जी और कृष्णा जी, आपके प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद!
ReplyDeleteसुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत पसंद आई यह रचना...मेरी बधाई
ReplyDelete