रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
मिला जो झोली भर -भर प्यार।
अभी तक मुझ पर रहा उधार।।
मैं क्या तुम्हें दूँ मीत मेरे
तुम्हीं से जीवित गीत मेरे।
मैं सदा तेरा ही कर गहूँ
सदा तेरे ही उर में रहूँ।
तुम हो नैया
तुम्हीं पतवार।
तुम्हीं हो प्राणों का
संचार।।
पाऊँ तो बस तुझको पाऊँ
और के द्वार कभी न जाऊँ।
बसे कण्ठ में गीत तुम्हारे
चुम्बन- चर्चित, मीत
तुम्हारे।
तैर जाऊँ जग- पारावार
दो जो नयनों का उजियार।।
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तैर जाऊँ जग-पारावार ••वाह ••बहुत सुन्दर सर ! हार्दिक शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteप्रेम - भावना की बहुत सुंदर अभिव्यक्ति। सुदर्शन रत्नाकर
ReplyDeleteअहा ! बहुत ही भावपूर्ण सुन्दर रचना
ReplyDeleteनमन गुरुवर
बहुत ही सुंदर, भावपूर्ण कविता।
ReplyDeleteहार्दिक बधाई आदरणीय गुरुवर को।
सादर
बहुत ही भावपूर्ण कविता,बहुत-बहुत बधाई आदरणीय भैया।
ReplyDeleteकोमल भावनाओं की सहज, सुंदर अभिव्यक्ति। धन्यवाद आदरणीय।
ReplyDeleteसचमुच प्यार मे उधार ही बना रहता है,उसे चुकाया नहीं जा सकता।बहुत सुंदर भाव।हार्दिक बधाई भाई साहब।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना गुरु जी।प्रेम की प्यारी अभिव्यक्ति समर्पण भावना से भरी पंक्तियाँ बेहद खूबसूरत। - पूनम सैनी
ReplyDeleteभावपूर्ण अभिव्यक्ति 🌹🌹
ReplyDeleteबहुत स्नेह भरी अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteआहा... अति सुंदर एवं कोमल अभिव्यक्ति...सर 🌹🙏. 🌹
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता
ReplyDeleteनेह अमृत से सिंचित रचना, भावों से सराबोर कर गई, बधाई भाई जी ..
ReplyDeleteबहुत उम्दा, सुंदर रचना
ReplyDeleteस्नेह से परिपूर्ण कविता... अतिसुंदर! हार्दिक बधाई आदरणीय भैया जी!
ReplyDelete~सादर
अनिता ललित
स्नेहसिक्त - प्रेमिल भाव से ओतप्रोत सुन्दर अभिव्यक्ति के लिये खूब बधाई ।
ReplyDeleteविभा रश्मि
ReplyDeleteनेह से परिपूर्ण बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDelete"तैर जाऊँ जग- पारावार"
वाह
भावों से अभिसिंचित रचना हार्दिक बधाई शुभकामनाएं
ReplyDeleteआप सबकी अमूल्य आत्मीयता और असीम स्नेहसिक्त टिप्पणियों के लिए बहुत अनुगृहीत हूँ। आशा करता हूँ कि सहज साहित्य के सभी रचनाकारों को आपका सदा प्रोत्साहन मिलेगा। काम्बोज
ReplyDeleteलौकिक अलौकिक दोनों ही अर्थों में व्यापकता गहनता लिये मधुर गीत आदरणीय .
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति...हार्दिक बधाई भाई साहब।
ReplyDeleteतुम मुझमें मैं तममें
ReplyDeleteफिर कैसा लेन-देन ?
उम्दा । सादर ।
वाह! बहुत सुन्दर प्रेमपूर्ण रचना, बधाई काम्बोज भाई.
ReplyDeleteआनंद आ गया इस मनोहारी रचना को पढ़कर
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